पांव भर बैठने की जमीन यहां अब नहीं हो रही हैं सेंध्मारियां बगुले लौट रहे हैं देर रात अपने घोसले…
छनो भर खातिर उनुका लगे ना रहे कौनो टाट के मड़ई आ फूंस-मूंजन के खोंता ऊ चिरई ना रहन भा…
जहाँ तक सवाल है जहाँ तक सवाल है शोषितों के हाल का फँसे हुए सदियों से शोषकों के जाल में…
मोर घटा देख मस्ताना मोर खुश होता दीवाना मोर राजा-सा सिर मुकुट सजा लगता बहुत सुहाना मोर सिर पर कृष्ण…
ये सफ़र ज़ीस्त का आसान बनाने वाला ये सफ़र ज़ीस्त का आसान बनाने वालाकौन मिलता है यहाँ रिश्ते निभाने वालाहै…
और क्या इस शहर में धंधा करें ख़्वाब इतने हैं यही बेचा करें और क्या इस शहर में धंधा करें…
वन्दना वन्दना माँ! मुझे तुम लोक मंगल साधना का दान दो, शब्द को संबल बनाकर नील नभ सा मान दो।…
अर्थ खोते जा रहे हैं शब्द खोखे डुगडुगी हैं अर्थ खोते जा रहे हैं शौर्य की पनडुब्बियों को शेर खेते…
गंगा की पुकार एक सुर में राग ये छिड़ने दे मुझको मलिन मत होने दे बहने दे, बहने दे मुझे…
मेरे खिलौने मेरे खिलौने हैं अनमोल, कोई लंबे, कोई हैं गोल। कुत्ता, बंदर भालू, शेर, मिट्टी के ये पीले बेर।…