Skip to content

मधुसूदन साहा की रचनाएँ

मुर्गा मामा

मुर्गा मामा, मुर्गा मामा
भोरे-भोरे जगावै छौ
जखनी नीन सतावै छै
तखनी बाँग लगावै छौ

सूरज के उठला सें पहिनें
पूरब के जगला सें पहिनें
कुकडू कूँ के भोंपू सें
सब के नीन भागवै छौ।

तोरा नीन नै आवै छौं?
नानी की नै सुतावै छौं?
केना रोजे टाईम पर
ई ‘एलार्म’ बजावै छौ?

कलगी तोरोॅ चमकै छौं
मोर पंख रं दमकै छौं
एकरा तों चमकावै लेॅ
रोजे रंग लगावै छौ?

दादी, दादी दादी दे

दादी, दादी, दादी दे
पीठी पर तों लादी दे।

बस्ता रोजे बढ़ले जाय
ऊपरे-ऊपर चढ़ले जाय
नैका-नैका पोथी सब
बच्चा सिनी पढ़ले जाय

देभैं पैंट पुरनका तेॅ
कुर्त्ता उज्जर खादी दे।

फुर्ती जरा देखैलोॅ कर
पहिनें जरा नहैलोॅ कर
मम्मी-डैडी बीजी छै
तोंही जरा पढ़ैलोॅ कर

सर्दी-खोंखी रोकै लेॅ
घी में भुनलोॅ आदी के।

दादी, दादी, दादी दे
पीठी पर तों लादी दे।

मेला चल

चल रे मटरू मेला चल
देखभैं लोगोॅ रोॅ हलचल।

कहीं नौटंकी सरकस छै
कहीं तीर औ तरकस छै
कहीं बजावै बानर बीन
कहीं सिखावै गीत मशीन
घूमै लेॅ कठघोड़वा पर
उमड़ी पड़लै बुतरू-दल।

कहीं बजावै बेंगवा ढोल
सुगना बोलै मिठगर बोल

कहीं नगाड़ा बोलै छै
पर्दा जोकर खोलै छै
बाहर भालू नाच करै
भीतर मचलोॅ छै दंगल।

कहीं साँप फुफकारै छै
फन तुमड़ी पर मारै छै
बकरा खेल देखावेॅ छै
बकरी गाना गावेॅ छै

बस साँझ तक मेला छै
उठतै खेल तमाशा कल।

कौआ

कौआ रोजे जावे छै
सखरी-मखरी खावै छै।
कहियो बेठै छप्पर पर
कहियो नैका टप्पर पर
कहियो उतरी अंगना में
सुख-सन्देश सुनावै छै।

ठोचकोॅ मारै ढेरी में
भरलोॅ सूप-चँगेरी में
मौका मिलथैं मुनिया के
बिस्कुट तुरत उड़ावै छै।

कौआ बड़ा सयानोॅ छै
एक आँख के कानोॅ छै
साँझ-सबेरे आवी केॅ
काकी कॅे फुसलावै छै।

जखनी कौआ ‘काँव’ करै
काकी बाहर पाँव धरै
बौआ केॅ दुलरावै लेॅ
शायद काका आवै छै।

Leave a Reply

Your email address will not be published.