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अनुलता राज नायर की रचनाएँ

Anulata-Raj-Nair.jpg

सिंदूर 

किसी ढलती शाम को
सूरज की एक किरण खींच कर
मांग में रख देने भर से
पुरुष पा जाता है स्त्री पर सम्पूर्ण अधिकार|
पसीने के साथ बह आता है सिंदूरी रंग स्त्री की आँखों तक
और तुम्हें लगता है वो दृष्टिहीन हो गयी|
मांग का टीका गर्व से धारण कर
वो ढँक लेती है अपने माथे की लकीरें
हरी लाल चूड़ियों से कलाई को भरने वाली स्त्रियाँ
इन्हें हथकड़ी नहीं समझतीं,
बल्कि इसकी खनक के आगे
अनसुना कर देती हैं अपने भीतर की हर आवाज़ को….
वे उतार नहीं फेंकती
तलुओं पर चुभते बिछुए,
भागते पैरों पर
पहन लेती हैं घुंघरु वाली मोटी पायलें
वो नहीं देती किसी को अधिकार
इन्हें बेड़ियाँ कहने का|

यूँ ही करती हैं ये स्त्रियाँ
अपने समर्पण का, अपने प्रेम का, अपने जूनून का
उन्मुक्त प्रदर्शन!!

प्रेम की कोई तय परिभाषा नहीं होती|

औरत की आकांक्षा

बहुत तकलीफ देह था
ख़्वाबों का टूटना
उम्मीदों का मुरझाना
आकांक्षाओं का छिन्न-भिन्न होना

हर ख्वाब पूरे नहीं होते…
हर आशा और उम्मीद फूल नहीं बनती

सोच समझ कर देखे जाने चाहिए ख्वाब और पाली जानी चाहिये उम्मीदें….
सो अब तय कर दी है उसने
अपनी आकांक्षाओं की सीमा
और बाँध दी हैं हदें
ख़्वाबों की पतंग भी कच्ची और छोटी डोर से बांधी..

ऐसा कर देना आसान था बहुत
सीमाओं पर कंटीली बाड़ बिछाने में समाज के हर आदमी ने मदद की…
ख़्वाबों की पतंग थामने भी बहुत आये

औरत को अपना आकाश सिकोड़ने की बहुत शाबाशी मिली…

नागफनी 

आँगन में देखो

जाने कहाँ से उग आई है
ये नागफनी….
मैंने तो बोया था
तुम्हारी यादों का
हरसिंगार….
और रोपे थे
तुम्हारे स्नेह के
गुलमोहर…..
डाले थे बीज
तुम्हारी खुशबु वाले
केवड़े के…..
कलमें लगाई थीं
तुम्हारी बातों से
महके मोगरे की…….

मगर तुम्हारे नेह के बदरा जो नहीं बरसे…..
बंजर हुई मैं……
नागफनी हुई मैं…..

देखो मुझ में काटें निकल आये हैं….
चुभती हूँ मैं भी…..
मानों भरा हो भीतर कोई विष …..

आओ ना,
आलिंगन करो मेरा…..
भिगो दो मुझे,
करो स्नेह की अमृत वर्षा…
कि अंकुर फूटें
पनप जाऊं मैं
और लिपट जाऊं तुमसे….
महकती,फूलती
जूही की बेल की तरह…
आओ ना…
और मेरे तन के काँटों को
फूल कर दो…

चिड़िया

बीती रात ख्वाब में
मैं एक चिड़िया थी…
चिडे ने
चिड़िया से
माँगे पंख,
प्रेम के एवज में.
और
पकड़ा दिया प्यार
चिड़िया की चोंच में!
चिड़िया चहचहाना चाहती थी
उड़ना चाहती थी…
मगर मजबूर थी,
मौन रहना उसकी मजबूरी थी
या शर्त थी चिडे की,
पता नहीं…

नींद टूटी,
ख्वाब टूटा,
सुबह हुई…

मैं एक चिड़िया हूँ
सुबह भी
अब भी…

प्रेम का रसायन

जंगली फूलों सी लड़की
मुझे तेरी खुशबू बेहद पसंद है
उसने कहा था…

“मुझे तेरा कोलोन ज़रा नहीं भाता”
बनावटी खुशबु वाले उस लड़के से
मोहब्बत करती
लडकी ने मन ही मन सोचा….

(इश्क के नाकाम होने की क्या यही वजह होगी??)

लड़का प्रेम में था
उस महुए के फूल जैसी लडकी के.
वो उसे पी जाना चाहता था शराब की तरह
लडकी को इनकार था खुद के सड़ जाने से…

लड़का उसे चुन कर
हथेली में समेट लेना चाहता था
हुंह…वो छुअन!
लड़की सहेजना चाहती थी
अपने चम्पई रंग को.

लड़का मुस्कुराता उसकी हर बात पर,
लड़की खोजती रही
एक वजह-
उसके यूँ बेवजह मुस्कुराने की…

(इश्क के नाकाम होने की वजहें बड़ी बेवजह सी होतीं हैं…)

प्रेम 

मैंने बोया था उस रोज़
कुछ,
बहुत गहरे, मिट्टी में
तुम्हारे प्रेम का बीज समझ कर.
और सींचा था अपने प्रेम से
जतन से पाला था.
देखो!
उग आयी है एक नागफनी…

कहो!तुम्हें कुछ कहना है क्या??

मौत 

1.

मौत कितनी आसान होती
अगर हम जिस्म के साथ
दफ़न कर पाते
यादों को भी…

2.

मौत कुदरत का तोहफा है
ये मिटा देती है
सभी दर्द…
उसके, जो मरा है…

3.

मौत अकसर भ्रमित होती है.
आती है उनके पास
जो जीना चाहते हैं…
और उन्हें पहचानती नहीं
जो जी रहे हैं मुर्दों की तरह.

4.

मौत जब किसी
पाक रूह को ले जाती है…
तब ज़रूर उसे
जी कर देखती होगी…

5.

मौत से मुझे
डर नहीं लगता
उसे लगता है डर
मेरी मौत से…

6.

मौत का दुःख
अकसर एक सा नहीं होता…
कौन मरा ?
कैसे मरा?
कब मरा?
पहले सब हिसाब किया जाता है…

अँधेरा

अंधेरे को मैंने
कस कर लपेट लिया
आगोश में
भींच लिया सीने से इस कदर
कि उसकी सूरत दिखलाई न पड़े.
पीछे खडी
कसमसाई सी रौशनी
तकती थी मुझे

अँधेरे से जल गयी लगती है रोशनी!!

मौसम का मिजाज़ खरा नहीं लगता 

मौसम का मिजाज़ खरा नहीं लगता
सावन भी इन दिनों हरा नहीं लगता.

एक प्यास हलक को सुखाये हुए है
पीकर दरिया मन, भरा नहीं लगता.

चमकता है सब चाँद तारे के मानिंद
सोने का ये दिल खरा नहीं लगता.

अपने ही घर में अनजान से हम
अपना सा कोई ज़रा नहीं लगता

हैवानों से भरी ये दुनिया तेरी है
कि कोई भी इंसा बुरा नहीं लगता.

सुनता नहीं वो मेरी, इन दिनों
कहते है जिसको खुदा,बहरा नहीं लगता.

दिल में हो रंजिश अगर तो

दिल में हो रंजिश अगर तो
दूरियां बढ़ जाती हैं,
कैसे थामे हाथ उनके
मुट्ठियाँ कस जाती हैं…

हो खलिश बाकी कोई तो
कुछ न बाकी फिर रहा,
एक तिनके की चुभन भी
आँख नम कर जाती है…

तेरे कूचे से जो लौटे
दस्तक दोबारा दी नहीं,
गर उठायें फिर कदम तो
बेड़ियाँ डल जाती हैं…

चोट खायी एक दफा तो
ज़ख्म फिर भरते नहीं
वक्त कितना भी गुज़रता
इक कसक रह जाती है…

हों जुदा हम तुमसे या के
राहें तुम ही मोड़ लो,
टूटे जो रिश्ते अगर तो,
चाहतें मर जातीं हैं…

मोहब्बत 

1.

स्नेह की मृगतृष्णा
मिटती नहीं…
रिश्तों का मायाजाल
कभी सुलझता नहीं.
तो मत रखो कोई रिश्ता मुझसे
मत बुलाओ मुझे किसी नाम से…
प्रेम का होना ही काफी नहीं है क्या ??

2.

सबसे है राब्ता
मगर तुम कहाँ हो..
मेरी भटकती हुई निगाह को
कोई ठौर तो मिले…

3.

वहम
शंकाएं
तर्क-वितर्क
गलतफहमियाँ
सहमे एहसास…
लगता है मोहब्बत को रिश्ते का नाम मिल गया.

4.

ऐसा नहीं कि
जन्म नहीं लेती
इच्छाएँ अब मन में
बस उन्हें मार डालना सीख लिया है..
शुक्रिया तुम्हारा.

5.

न मोहब्बत
न नफरत
न सुकून
न दर्द…
कमबख्त कोई एहसास तो हो
एक नज़्म के लिखे जाने के लिए..

6.

सर्दियाँ शुरू हुईं
धूप का एक टुकड़ा
उसने मेरे क़दमों पर
रख दिया…
आसान हो गयी जिंदगी.

7.

न पलकें भीगीं
न लब थरथराये
न तुम कुछ बोले
न हमने सुना कुछ अनकहा सा…
मोहब्बत करने वाले क्या यूँ जुदा होते हैं?

8.

तेरा इश्क
साया था पीपल का
बस ज़रा से झोंके से
फडफडा गए पत्ते सारे…

9.

जब से दिल
मोहब्बत से खाली हुआ
सुकून ने घर कर लिया…

शिकायत परिंदों से…

मेरे हाथ से छिटक कर
प्रेम बिखर गया है
सारे आकाश में…
देखो सिंदूरी हो गयी है शाम
तेरी यादों ने फिर दस्तक दी है
हर शाम का सिलसिला है ये अब तो…
कमल ने समेट लिया
पागल भौरे को अपने आगोश में
आँगन में फूलता नीबू
अपने फूलों की महक से पागल किये दे रहा है
उफ़! बिलकुल तुम्हारे कोलोन जैसी खुशबू…
पंछी शोर मचाते लौट रहे हैं
अपने घोसलों की ओर.
उनका हर शाम यूँ चहचहाते हुए लौटना
मुझे उदास कर देता है.
देखो बुरा न मानना….
मुझे शिकायत तुमसे नहीं
इन परिंदों से है…
ये हर शाम
अनजाने ही सही
तुम्हारे न लौट आने के ज़ख्म को हरा कर देते हैं..

स्वेटर 

आँखें खाली
ज़हन उलझा
ठिठुरते रिश्ते
मन उदास…
सही वक्त है कि उम्मीद की सिलाइयों पर
नर्म गुलाबी ऊन से एक ख्वाब बुना जाय!!

माज़ी के किसी सर्द कोने में कोई न कोई बात,
कोई न कोई याद ज़रूर छिपी होगी
जिसमें ख़्वाबों की बुनाई की विधि होगी,
कितने फंदे, कब सीधे, कब उलटे…

बुने जाने पर पहनूँगी उस ख्वाब को
कभी तुम भी पहन लेना..
कि ख़्वाबों का माप तो हर मन के लिए
एक सा होता है|
कि उसकी गर्माहट पर हक़ तुम्हारा भी है…

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