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सबने देखा 

पेड़ जब शीश नवाते हैं
पात जब गौरव पाते हैं,
हवा सिंहासन पर चढ़कर
सवारी लेकर आती है।
हवा को सबने देखा है।

पतंग जब ऊपर चढ़ती है
ठुमकती है, बल खाती है,
हवा तब घुटनों पर झुककर
गीत आशा का गाती है।
हवा को सबने देखा है।

तितलियाँ चंचल उड़ती हैं
गुलाबों पर मँडराती हैं,
हवा तब वासंती होकर
गीत यौवन का गाती है।
हवा को सबने देखा है।

शाख कलियों से लदती है
और जब हौले हिलती है,
हवा तब खिलती-मुसकाती
सभी से मिलने आती है!
हवा को सबने देखा है।

-साभार: नंदन, सितंबर, 1999, 30

रंग जमाया

हुआ मिठाई का सम्मेलन,
संचालक था काला जामुन।
सजी-धजी थी खूब इमरती,
हँस-हँस सबसे बातें करती।
मचा रहा था हल्ला-गुल्ला,
लुढ़क-लुढ़क करके रसगुल्ला!

बर्फी आई थी इतराती,
साथ जलेबी रस टपकाती।
बालूशाही सोच रही थी,
बैठी खुद को कोस रही थी।
‘होगी कोई जुगत भिड़ानी,
बनूँ मिठाई की मैं रानी।’

किन्तु वाह गाजर का हलवा,
हलवे का था ऐसा जलवा।
उसने अपना रंग जमाया,
सबसे पहला नंबर पाया!

-साभार: नंदन, दिसंबर, 1990, 30

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