Skip to content

Anand Kishore.jpg

तुम भी दुआ क्या करते

वास्ते ख़ुद के भी तजवीज़ दवा क्या करते
ज़ख़्म होते न अगर तुम भी दुआ क्या करते

दफ़अतन उनकी निगाहों से निगाहें थीं मिली
ऐसे मदहोश हुये और नशा क्या करते

जो भी होना था हुआ और भी होगा बेशक़
पहले होता भी अगर हमको पता, क्या करते

इतने ग़ुस्सा हो मगर बात है बिल्कुल छोटी
ख़ुद से होती जो अगर कोई ख़ता, क्या करते

झूट जो हमने कहा , जान बची लोगों की
आप से पूछते हैं आप भला क्या करते

दोष इतना था फ़क़त बाँट के रोटी खाई
करते हमको भी गिरफ़्तार, सज़ा क्या करते

दुश्मनों का जो बुरा हाल किया हमने है
नाम बदनाम न करते वो मेरा , क्या करते

कौन आनन्द है मिलता है कहाँ किस जानिब
जो ये मालूम भी होता तो बता क्या करते

दिल में मोहब्बत लेकर

इक दुआ लब पे लिये दिल में मोहब्बत लेकर
इश्क़ की राह पे चलता हूँ अक़ीदत लेकर

एक छोटी सी ख़ता मेरी भुलाई न गयी
तुम भी आते हो शबो रोज़ शरारत लेकर

लौट आया है वो बस्ती से मगर रोता हुआ
जाएगा फिर न वहाँ सच की हिमायत लेकर

अपनी मर्ज़ी से हर इक काम बशर करता है
मानता कोई नहीं आज नसीहत लेकर

बहरे हाकिम हैं , हुकूमत को कहाँ फ़ुर्सत है
जाएँ तो जाएँ कहाँ अपनी शिकायत लेकर

जब नहीं कोई गवाही तो करे क्या मुन्सिफ़
कोई तो आए अदालत में हक़ीक़त लेकर

सबने पैग़ामे मोहब्बत ही दिया दुनिया को
जो भी उस पार से आए हैं हिदायत लेकर

भीड़ लोगों की तेरे दर पे है मेरे मौला
हर कोई आता यहाँ अपनी ज़रूरत लेकर

दौर ‘आनन्द’ तकब्बुर का , दिखावे का है
कौन सुधरा है यहाँ कितनी भी ताक़त लेकर

क्या मुनासिब है दुश्मनी ही रहे

क्या मुनासिब है दुश्मनी ही रहे
दोस्ती की सदा कमी ही रहे

जिसको सुनकर के प्यार घटता हो
वो ख़बर काश अनसुनी ही रहे

दो घड़ी की बहार जी ले ज़रा
क्यूँ तेरी आँख में नमी ही रहे

ग़म को स्वीकार कर ख़ुशी से सदा
क्या ज़रूरी सदा ख़ुशी ही रहे

ग़म हो किस बात का मुहब्बत में
चाहे हिस्से में बेकली ही रहे

होश तुझको रहे , रहे बेशक़
मुझको ताउम्र बेख़ुदी ही रहे

तिश्नगी का मेरी मुदावा तू
तू मुहब्बत की बस नदी ही रहे

हम मनाएँ कभी मनाओ तुम
एक दूजे से यूँ ठनी ही रहे

मुझको ‘आनन्द’ मुफ़लिसी प्यारी
मुफ़लिसी में अगर ख़ुशी ही रहे

सामने इक ख़्वाब की दीवार थी

सामने इक ख़्वाब की दीवार थी
पर हक़ीक़त दूर उसके पार थी

कोई शीशा था वहाँ पत्थर कोई
हर किसी की ज़िन्दगी बेज़ार थी

रात भर बैठा रहा सर्दी में वो
धूप की उसको बड़ी दरकार थी

दौरे हाज़िर में है जैसे बर्फ वो
जो क़लम इक आग की तलवार थी

मेहरबानी दोस्तो की, शुक्रिया
ज़िन्दगी दुश्वार है दुश्वार थी

हम कभी ‘आनन्द’ हारे थे नहीं
जिससे हारे, वक़्त की रफ़्तार थी

उसे सब ख़बर तो है 

मंज़िल की ओर जाने की कोई डगर तो है
क्या होगा रास्ते में उसे सब ख़बर तो है

पहले तो बेख़ुदी थी अभी नीमजाँ हुये
दी थी दवा जो आपने करती असर तो है

दिखती है इक लकीर सी ज़िन्दा धुऐं की फिर
लगता बुझी सी राख में जलता शरर तो है

देता वही निजात कड़ी धूप से सदा
बेशक़ तुम्हारी राह में छोटा शजर तो है

आदत है घूरने की बुरी पासबाँ में बस
अच्छी मगर है बात कि रखता नज़र तो है

बेचा नहीं ज़मीर , है किरदार शानदार
रोटी कमा ले सिर्फ़ कि इतना हुनर तो है

इतना भी कम नहीं है किसी दूसरे से तू
बेशक़ न देवता है मगर इक बशर तो है

‘आनन्द’ आफ़ताब मुक़द्दर में गर नहीं
लेकिन तेरे नसीब में रश्के क़मर तो है

जलते चराग़ों का 

समझता है न कोई ग़म यहाँ जलते चरागों का
निकल जाए भले ही दम यहाँ जलते चरागों का

ये पूछो उनसे जो रहते सदा से हैं अँधेरों में
हुआ रुत्बा ज़रा क्या कम यहाँ जलते चरागों का

फ़क़त बस रात में औक़ात है इनकी, कभी दिन में
नहीं लहराएगा परचम यहाँ जलते चरागों का

जलेगा कौन ख़ातिर दूसरों के इस ज़माने में
कोई होता नहीं बाहम यहाँ जलते चरागों का

इकट्ठा करके रक्खे हैं उजाले घर में अपने पर
हुनर कब जानते हैं हम यहाँ जलते चरागों का

जियो औरों की ख़ातिर, सीख ये ‘आनन्द’ मिलती है
तभी तो ज़िक्र है हरदम यहाँ जलते चरागों का

सियासत की है 

दिल के ज़ज़्बों को जगाकर के तिजारत की है
उसने अश्क़ों की कई बार सियासत की है

बेटियाँ , औरतें , बेघर या ग़रीबों के लिए
सिर्फ़ जुमलों को अदा करने की ज़हमत की है

क्लास दोयम के जो लोग हैं उनकी ख़ातिर
टैक्स पर टैक्स लगाने की भी ज़ुर्रत की है

दे दिया सबको भरोसा भी दिनों का अच्छे
कैसी तरकीब से लोगों की फ़ज़ीहत की है

जिनको रोटी न मयस्सर है किसी भी सूरत
उन ग़रीबों को दिया योग , हिमाक़त की है

अब तो कानून में बीवी को मिली आज़ादी
बाद शादी के करो कुछ भी, इजाज़त की है

दो जने साथ में , बालिग हैं तो सो सकते हैं
कैसे कुदरत से अलग जा के बग़ावत की है

दौरे हाज़िर में गिना करते हैं वोटों को फ़क़त
किसने “आनन्द’ कोई और सियासत की है

किसी नज़र में रही 

किसी के लब पे रही या किसी नज़र में रही
मगर ये प्यास मुहब्बत की हर बशर में रही

क़ज़ा के वास्ते इक होड़ है पतंगों में
इस एक बात से ही शम्अ हर ख़बर में रही

मैं सोचता हूँ , ये एहसास की मेरे , दुनिया
न जाने कब से तेरे ख़्वाब के असर में रही

सुना है , एक ही शोले से जल गया बीहड़
बला की आग, ये हैरत है, उस शरर में रही

अजीब बात है सूरज से ले रहा है जिया
वही जिया भी हुई सर्द जब क़मर में रही

हमेशा हार गया तुझसे , भूल जा इसको
बता कमी है वो क्या जो मेरे हुनर में रही

ये और बात है ‘आनन्द’ पा गए मंज़िल
हर एक सिम्त से मुश्किल मगर सफ़र में रही

दिलों में उजाला नहीं रहा

उल्फ़त का जब दिलों में उजाला नहीं रहा
अम्नो अमाँ चमन में ज़रा सा नहीं रहा

मंज़िल मिले या ख़ाक मुक़द्दर की बात है
नीयत पे रहनुमा की भरोसा नहीं रहा

वापस वो लौट आया है तन्हा न जाने क्यूँ
पूछा तो कह दिया कि इरादा नहीं रहा

टूटा वही है जो था मुक़द्दर का पासबाँ
अब आसमाँ में वो ही सितारा नहीं रहा

जब तक था उनका साथ सहर ही सहर रही
पर उनके बाद कुछ भी तो अच्छा नहीं रहा

कितना है प्यार उनसे कभी कह नहीं सके
अब फ़ासला है, कहने का मौका नहीं रहा

यूँ मुश्किलों का वक़्त गुज़ारा तो है मगर
लेकिन जो हमने चाहा था वैसा नहीं रहा

भूले हुए हैं लोग सभी , ये कमाल है
दुनिया में कोई शख़्स हमेशा नहीं रहा

‘आनन्द’ हमको नाज़ था जिसके वुजूद पर
सागर में जा मिला वो किनारा नहीं रहा

वो बेज़ुबाँ हो गया

दर्द आँखों से जब बयाँ हो गया
ग़म से वाकिफ़ मेरे जहाँ हो गया

वो ज़ुबाँ से तो कुछ नहीं बोले
उनके चेहरे से सब अयाँ हो गया

अश्क़ आँखों में इस क़दर ठहरे
दूर नज़रों से हर निशाँ हो गया

तोड़ डाला मेरा यकीं , उसको
जाने किस बात का गुमाँ हो गया

ये पता भी चला बिछड़ने पर
जाने कब से वो मेरी जाँ हो गया

इश्क़ की ये भी एक मंज़िल है
जिसने पाई वो बेज़ुबाँ हो गया

दिल भी ‘आनन्द’ ये बिना तेरे
बंद खाली पड़ा मकां हो गया

यक़ीन होता है

किसी पे , जाने बिना भी यक़ीन होता है
दिखे न , प्यार का धागा , महीन होता है

लिखा हुआ है अगर आपके मुक़द्दर में
क़रीब दिल के कोई हमनशीन होता है

उसी ने पार किया इश्क़ के समुन्दर को
वही जो इश्क़ में सारा विलीन होता है

वफ़ा ज़रा न मिलेगी यही है सच्चाई
उन्हों में चेहरा जिन्हों का हसीन होता है

नहीं हैं पास में सुख-चैन के कभी दो पल
वो आदमी तो जहाँ में मशीन होता है

नहीं है दौर वफ़ादारियों का अब यारों
वही भला है यहाँ जो कमीन होता है

कमाल है के गिनाता है ऐब जो सबके
समझ में ख़ुद की बड़ा वो ज़हीन होता है

यही सवाल है ‘आनन्द’ इन ग़रीबों की
नहींं करे जो मदद क्या कुलीन होता है

क्यूँ गुनहगार को भला कह दूँ 

क्यूँ गुनहगार को भला कह दूँ
कैसे क़ातिल को पारसा कह दूँ

दिल से यादें न उसकी जायेंगी
ज़िन्दगी भर की क्या सज़ा कह दूँ

साथ जीता हूँ दर्दे उल्फ़त के
है मज़ा ,क्या इसे दवा कह दूँ

राहे उल्फ़त को एक दुनिया का
दर्द का क्यूँ न रास्ता कह दूँ

दोस्त बनकर दिया मुझे धोका
कैसे फिर उसको हमनवा कह दूँ

रहनुमा क़ाफ़िले को लूटे ग़र
क्यूँ उसे फिर मैं नाख़ुदा कह दूँ

डूबकर इनमें होश खो जाये
तेरी आँखों को मयक़दा कह दूँ

हैं कुँवारी जो बेटियाँ घर में
मुफ़लिसी है गुनाह क्या कह दूँ

तेरी बातों में आ के मैं क्योंकर
आज ‘आनन्द’ को बुरा कह दूँ

कोई ख़्वाब सजाया जाये

पेशतर इससे के ये वक़्त भी ज़ाया जाये
रस्मे उल्फ़त को चलो मिल के निभाया जाये

इश्क़ ऐसा भी नहीं दिल से भुलाया जाये
ये वो दीपक है जिसे रोज़ जलाया जाये

बाद के रंजो अलम पहले से क्यूँ सोचें हम
राहे उल्फ़त पे क़दम हंस के बढाया जाये

आपका नाम जो लिक्खा है हमारे दिल पर
अब किसी तौर ये दिल से न मिटाया जाये

वक़्त की चाल का अन्दाज़ समझना होगा
इससे पहले के कोई ख़्वाब सजाया जाये

हम भटकते हैं शबो रोज़ किनारों पे यहाँ
उनसे उस पार से इस पार न आया जाये

डर है हमको कि मोहब्बत न कहीं रुस्वा हो
इसलिये नामे सनम लब पे न लाया जाये

ये नसीहत है , हिदायत भी है दुनिया वालो
भूलकर दिल न किसी का भी दुखाया जाये

ये दुआ रोज़ ही ‘आनन्द’ किया करते हैं
आग में ग़म की न अपना न पराया जाये

सहरा में तिश्ननगी अपनी

भटकती फिरती है सहरा में तिश्नगी अपनी
गुज़र रही है सराबों में ज़िन्दगी अपनी

मुहब्बतों के सफ़र में क़दम क़दम पे यहाँ
ग़मों की आग में जलती है हर ख़ुशी अपनी

ये और बात है क़िस्मत में हारना था लिखा
मगर न हमको थी उम्मीद हार की अपनी

हज़ार ऐब हज़ारों के हमने गिनवाये
लबों पे सबके है इस बार बस कमी अपनी

ग़मों का दौर भी काटा है हमने हंसकर के
गुज़र रही है मज़े से ये ज़िन्दगी अपनी

फ़क़त ग़ज़ल की बिना पर हमें सुना दी सज़ा
ग़ज़ल वो सच में मगर लाजवाब थी अपनी

हरेक लफ़्ज़ में ढाला है दर्द को अपने
हमें अज़ीज़ है ‘आनन्द’ शाइरी अपनी

इन्सां ख़ुदा हो गये 

मोम जैसे पिघलकर फ़ना हो गये
जबकि पत्थर के इन्सां ख़ुदा हो गये

कल तलक थे वो क्या आज क्या हो गये
प्यार के देवता बेवफ़ा हो गये

मौत की छाँव में क्यूँ पले ज़िन्दगी
बारी बारी से अपने जुदा हो गये

लाश मुन्सिफ़ के कमरे में मौजूद थी
क़त्ल के क्यूँ निशाँ गुमशुदा हो गये

आसमाँ पर ये सन्नाटा क्यूँ है भला
चाँद-तारे कहाँ अब फ़ना हो गये

दरमियाँ जब नहीं था कोई फ़ासला
रास्ते जाने फिर क्यूँ जुदा हो गये

पूछते ख़ुद से हैं हम यही बात इक
फ़र्ज़ ‘ आनन्द’ क्या सब अदा हो गये

कैसा ये ज़माना है

किरदार हुए बदतर कैसा ये ज़माना है
कलियों को चमन की अब ज़ालिम से बचाना है

कहते हैं बहारों से गुलशन को सजाएंगे
कलियाँ न हिफ़ाज़त से क्या ख़ाक सजाना है

लगता है ज़माने में ज़रदार का मक़सद ये
कमज़ोर को मुफ़लिस को बेबात दबाना है

ये आग शिकम की है मासूम झुलसते हैं
हाथों में कटोरा है इतना सा फ़साना है

दहक़ान के खेतों में उगते हैं फ़क़त फाके
रोटी है न पानी है छप्पर न ठिकाना है

क्या हाल है क्या गुज़री पूछा तो किसाँ बोले
वो ख़ाक ज़माना था ये ख़ाक ज़माना है

भूला है हरिक इन्सां तहज़ीब अदब इज़्ज़त
कहते हैं मगर फिर क्यूँ ये मुल्क बचाना है

इतना भी अगर समझा तो प्यार न छोडेगा
क्या ले के हुआ पैदा क्या साथ में जाना है

‘आनन्द’ अगर चाहे बाँटे भी तो क्या बाँटे
जब रंजो अलम जैसा दामन में ख़जाना है

हम भी पत्थर को आइना कहते 

ख़ुद को पागल, या हादसा कहते
इश्क़ जब हो गया तो क्या कहते

शोख़ , कमसिन बड़े हसीन हैं वो
उनकी नादानियों को क्या कहते

हम अगर बोलते भी महफ़िल में
आप से कुछ अलग ज़रा कहते

देख लेते जो आपका चेहरा
हम भी पत्थर को आइना कहते

रूह में वो समा गये मेरी
कैसे हम फिर भी फ़ासला कहते

आप आये नहीं थे महफ़िल में
आप होते तो कुछ नया कहते

फ़ैसला हक़ में आपके होता
कम से कम आप जो हुआ कहते

ग़म नहीं, ख़ुद को पारसा वो कहें
ग़म यही , हमको बेवफ़ा कहते

दिल से ‘आनन्द’ आपको चाहा
ये हक़ीक़त है और क्या कहते

मोम को पत्थर बताइये

किसने कहा कि मोम को पत्थर बताइये
छोटी सी पिन को आप न ख़न्जर बताइये

सहते रहे हो आप अगर आज तक सितम
ख़ामोश क्यूँ रहे हो ये खुलकर बताइये

कहने को जीतने का सभी को है चाव पर
किसको हुआ ख़िताब मयस्सर बताइये

क़ातिल कोई छिपा है इन आँखों में आपकी
हाथों में किसके आप का ख़न्जर बताइये

झूटी ख़बर न दीजिए मंज़िल की आप यूँ
बिन जाए ही वहाँ का न मन्ज़र बताइये

मिलता है इस सवाब का ईनाम दोस्तो
भटके हुओं को रास्ता जाकर बताइये

होना है क्या, लिखा न लकीरों के जाल में
हाथों को देखकर न मुक़द्दर बताइये

देखा था आसमाँ में, उछाला गया था जब
फेंका था किसने आप ये पत्थर बताइये

‘आनन्द’ दीजिये न हवा झूट को कभी
लेकिन सदाक़तों को बराबर बताइये

बाँसुरी

महफ़िल में जब मिली हैं निगाहों की बाँसुरी
थिरकी है अपने आप ही साँसों की बाँसुरी

मिलकर गले से रोये थे मुद्दत के बाद जब
आती है याद आज भी बाँहों की बाँसुरी

ये और बात कोई निभाया नहीं गया
बजती रही है रोज़ ही वादों की बाँसुरी

चैनो सुकून हिज्र में मिलता नहीं हमें
नींदों को दूर ले गई आहों की बाँसुरी

तेरी कमी खली है बहुत ज़िन्दगी में तब
जब जब सुनी है चाँद की, तारों की बाँसुरी

लाचार बोलता है या बीमार कुछ कहे
लगती हमें अजीब कराहों की बाँसुरी

महवे ख़याल आपके ‘आनन्द’ हो गये
बजने लगी है आप की यादों की बाँसुरी

फ़ासला रह गया 

दोनों के दरमियाँ फ़ासला रह गया
मैं उसे , वो मुझे देखता रह गया

एक दिन आएगा ये तुम्हें भी समझ
दूर क्या हो गया पास क्या रह गया

कितनी बातें हुईं आप से रात भर
फिर भी लगता है कुछ अनकहा रह गया

ये हुआ है असर क़ुर्बतों का तेरी
कोई होने से पत्थर ज़रा रह गया

बात से जब वो अपनी मुकर भी गये
फिर ज़ुबाँ का भरोसा भी क्या रह गया

साज़िशें मेरे अपनों की थीं इस क़दर
क्या हुआ मैं यही सोचता रह गया

देखकर मुझको ज़िन्दा वो बोला नहीं
उसका मुंह बस खुला का खुला रह गया

रास्ता जब भटकने लगा कारवाँ
ढूँढ़ते सब कहाँ रहनुमा रह गया

आज बरसी है ‘आनन्द’ के ख़्वाब की
और कहने को बाक़ी भी क्या रह गया

Leave a Reply

Your email address will not be published.