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अपना दीवाना बना कर ले जाए

अपना दीवाना बना कर ले जाए
कभी वो आए और आ कर ले जाए

रोज़ बुनियाद उठाता हूँ नयी
रोज़ सैलाब बहा कर ले जाए

हुस्न वालों में कोई ऐसा हो
जो मुझे मुझ से चुरा कर ले जाए

रंग-ए-रुख़्सार पे इतराओ नहीं
जाने कब वक़्त उड़ा कर ले जाए

किसे मालूम कहाँ कौन किसे
अपने रास्ते पे लगा कर ले जाए

‘आफ़ताब’ एक तो ऐसा हो कहीं
जो हमें अपना बना कर ले जाए

अस्ल हालत का बयान ज़ाहिर के साँचों में नहीं 

अस्ल हालत का बयान ज़ाहिर के साँचों में नहीं
बात जो दिल में है मेरे मेरे लफ़्ज़ों में नहीं

इक ज़माना था के इक दुनिया मेरे हम-राह थी
और अब देखूँ तो रास्ता भी निगाहों में नहीं

कोई आसेब-ए-बला है शहर पर छाया हुआ
बु-ए-आदम-ज़ाद तक ख़ाली मकानों में नहीं

रफ़्ता रफ़्ता सब हमारी राह पर आते गए
बात है जो हम बुरों में अच्छे अच्छों में नहीं

अपने ही दम से चराग़ाँ है वगरना ‘आफ़ताब’
इक सितारा भी मेरी वीरान शामों में नहीं

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