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मैं गाँधी बन जाऊँ

माँ, खादी का कुर्ता दे दे, मैं गाँधी बन जाऊँ,
सब मित्रों के बीच बैठ फिर रघुपति राघव गाऊँ!

निकर नहीं धोती पहनूँगा, खादी की चादर ओढूँगा,
घड़ी कमर में लटकाऊँगा, सैर सवेरे कर आऊँगा!

मैं बकरी का दूध पिऊँगा, जूता अपना आप सिऊँगा!
आज्ञा तेरी मैं मानूँगा, सेवा का प्रण मैं ठानूँगा!

मुझे रुई की पूरी दे दे, चर्खा खूब चलाऊँ,
माँ, खादी की चादर दे दे, मैं गाँधी बन जाऊँ!

-साभार: बालगीत साहित्य (इतिहास एवं समीक्षा), निरंकारदेव ‘सेवक’, 183

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