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रति रैन विषै जे रहे हैँ पति सनमुख

रति रैन विषै जे रहे हैँ पति सनमुख,
तिन्हैँ बकसीस बकसी है मैँ बिहँसि कै।
करन को कँगन उरोजन को चन्द्रहार,
कटि को सुकिँकनी रही है कटि लसि कै।
कालिदास आनन को आदर सोँ दीन्होँ पान,
नैनन को काजर रह्यो है नैन बसि कै।
एरी बैरी बार ये रहे हैँ पीठ पाछे यातेँ,
बार बार बाँधति हौँ बार बार कसि कै।

कालीदास का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।

गढ़न गढ़ी से गढ़ी,महल मढ़ी से मढ़ी 

गढ़न गढ़ी से गढ़ी,महल मढ़ी से मढ़ी,
बीजापुर ओप्यो दलमलि सुघराई में.
कालीदास कोप्यो वीर औलिया आलमगीर,
तीर तरवरि गही पुहुमि पराई में.
बूँद ते निकसि महिमंडल घमंड मची,
लोहू की लहरि हिमगिरि की तराई मे.
गाडि के सुझंडा आड़ कीनी बादसाह तातें,
डकरी चमुंडा गोलकुंडा की लराई में.

चूमौं करकंज मंजु अमल अनूप तेरो 

चुमौं करकंज मंजु अमल अनूप तेरो,
रूप के निधान कान्ह!मो तन निहारि दै.
कालीदास कहै मेरे पास हरै हेरि हेरि,
माथे धरि मुकुट, लकुट कर डारि दै.
कुँवर कन्हैया मुखचन्द को जुन्हैया चारु,
लोचन चकोरन की प्यासन निवारि दै.
मेरे कर मेंहदी लगी है,नंदलाल प्यारे!
लट उलझी है नकबेसर संभारि दै.

हाथ हँसि दीन्हों भीति अंतर परसि प्यारी

हाथ हँसि दीन्हों भीति अंतर परसि प्यारी,
देखत ही छकी मखि कन्हर प्रबीन की.
निकस्यो झरोखे माँझ बिगस्यो कमल सम,
ललित अँगूठी तामें चमक चुनीन की.
कालीदास तैसी लाल मेहँदी के बूंदन की,
चारु नख चंदन की लाल अँगुरीन की.
कैसी छबि छजति है छाप औ छलान की सु,
कंकन चुरीन की जड़ाऊ पहुँचीन की.

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