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माँ

माँ
तुम्हें पढ़कर
तुम्हारी उँगली की धर कलम
गढ़ना चाहता हूँ
तुम सी ही कोई कृति

तुम्हारे हृदय के विराट विस्तार में
पसरकर सोचता हूँ मैं
और खो जाता हूँ कल्पना लोक में
फिर भी सम्भव नहीं तुम्हें रचना
शब्दों का आकाश
छोटा पड़ जाता है हर बार
तुम्हारी माप से

माँ
तुम धरती हो।

आश्चर्य

भीष्म नहीं चाहते थे
परिवार का बिखराव
कृष्ण नहीं चाहते थे
एक युग की समप्ति
धृतराष्ट्र नहीं चाहते थे
राज-पतन
द्रौपदी नहीं चाहती थी-
चीर हरण।

इसके बावजूद
वह सब हुआ
जो नहीं होना था

आज हमारा न चाहना
हमारी चुप्पी में
चाहने की स्वीकृति ही तो है

तालियों से झर रही है शर्म
उतर रहे हैं कपड़े
और देख रहे हैं हम
आश्चर्य की शृंखला में
जुड़ते हुए अपने नाम।

सरकार हमर 

बेंदरा नाच नाचेथे संगी, अइसन हे सरकार हमर
आस जगाथे असवासन म लबरा हे सरकार हमर

का जिनगी के जीयई ल कहिवे, करलई होगे पेट के आज
सुरसा कस महंगाई बाढ़य घी कस भाव हे तेल के आज
मिंझरा जीनिस के भाव हे दुना, अइसन हाट बजार हमर

छोड़ के भागे खेत खार ल नौकरी खोजय दाऊजी देख
बिपत परे म बैंक के करजा बाढ़ी मांगय खाउजी देख
काठा बोके मुठा लुवत हन, अइसन खेती खार हमर

चाय-पानी के चले चलागन, चारो कोति अउ सबो जगा
ठगे के कतको नौकरी करथे, जा पइसा दे तंहूं ठगा
विकास धरागे गहना अब तो, अइसन भ्रष्टाचार हमर

टरक झंपाये मनखे उपर, रेल बिछलथे पटरी ले
देखव सुते हे सड़क बेवस्था, बस चलय बिन परमिट के
समधी भेंट पर रोज अभरथे, अइसन मोटर कार हमर

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