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केहू कइसे बिचारे कटी जिन्दगी

केहू कइसे बिचारे कटी जिन्दगी,
का गजल के सहारे कटी जिन्दगी।
जिन्दगी, जिन्दगी, जिन्दगी, जिन्दगी,
रटते-रटते उधारे, कटी जिन्दगी।
भीख जिनगी के माँगत उमिरिया बितल,
केकरा-केकरा दुआरे कटी जिन्दगी।
शान से, रोब से, ताव से ई कटी,
आ कि दाँते चियारे कटी जिन्दगी।
घूर के आग लइकन से पूछल करे,
का ई लंगटे उधारे कटे जिन्दगी।
आदमी सत्य, संतान बानर के हऽ,
तब का लंका के जारे कटे जिन्दगी।
एगो बकरी चिघाड़त बिया बाघ से,
अब ई मरले आ मारे कटी जिन्दगी।

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