ये जग ही तो धर्मशाल है।
है सराय ये सोच मुसाफिर रहना दो दिन क्या खयाल है।
इक आवे, आवे इक जावे, ना कोई रहा न रहने पावे,
फिर मुटाव मन क्यूं करता है, आज गया कोई जाय काल है।
कायम यहां मुकाम नहीं है सुबह यहां तो शाम कहीं है,
करता क्यो तकरार किसी से दुखदाई ये तो कुचाल है।
हाथ जौर चल यार सभी से चले चलो कर प्यार सभी से,
वरना लोग कहे था खोटा ये तो जुलमी जगत जाल है,
कहे शिवदीन समझ ना आवे क्या कमाल है ! ये कमाल है।
लगन लागी ना अन्तर पट में
लगन लागी ना अन्तर पट में।
दर्शन केहि विधी होय, राम बैठे है तेरे घट में।
तन की चोरी, मन की चोरी, करती रहती सुरता गोरी,
कैसे मिले, मिले वह सतगुरू, सुरता रहती हट में।
दिल तो खोल, बोल हरि मुख से, रहना चाहे जो तू सुख से,
कपट छांडिमन, मंत्र को रट रे, लगजा सुखमय तट में।
कहा करे गुरू ज्ञान बतावे, अपने शिष्य जनों को चावे,
शिष्य न समझे लगा हुआ वो, तोता की सी रट में।
कहे शिवदीन व्यर्थ दिन खोये, आलस में भर भर कर सोये,
गुरू चरणों में चित्त न देवे, पडा रहे सठ खट में।
राम का घर है कितनी दूर
राम का घर है कितनी दूर।। राम…
मारग जटिल पार नहीं पावूं।
कदम कदम पे ठोकर खावूं।
हो गया दम काफूर।। राम….
जो हमको कोउ राम मिलादे।
उनके घर की राह बतादे।
वही गुण में भरपूर।। राम…
मन मेरा उन्हीं से लागे।
विरहनि जैसे निशि दिन जागे।
चित्त रहे चरण में चूर।। राम…
संत सनेही सांचे अपने।
शिवदीन देख अनुभव के सपने।
वह घर है मशहूर।। राम….
घर गोप्यां क चोरी करता
घर गोप्यां क चोरी करता।
सांची कहिज्येा, कहि द्योनां, चौरी भी बरजोरी करता।
श्री राधेजी सरमां जाता, पर थे चोर-चोर दही खाता,
नंद यसोदा के गम बैठ्यो, गोप्यां का वे पांव पकरता।
गुवाल बाल भी डुक्का देता, हारयां भी ब मुक्का देता,
पर थे चोरी छोड़ सक्या नां खाता माखन डरता-डरता।
वृज का लोग बाग सब सहता, तुमको चोर चोर सब कहता,
नाम धराया धन्य कन्हैया, मौर मुकुट माथे पर धरता।
पुर्ण ब्रह्म शिवदीन कन्हैया, पार लगाना मेरी नैया,
वेद भेद पाया ना तेरा, भक्त जनों का तू दुःख हरता।
दिल को बहलाना न आया
दिल को बहलाना न आया दिल ना बहलाया गया।
दिल की दिलवर दिल ही जाने दर्द खाया ना गया।।
लाखों उठाये दर्द हम बेदर्द के हमदर्द बन।
तुम ही कह दो प्रेम प्रीतम मैं सताया ना गया।।
और जख्मों से कलेजे दर्द बढता ही रहा।
इसलिए महाराज दर्दे दिल दबाया ना गया।।
जिन्दगी इन्सान की आबाद करना है तुम्हें।
आबाद के गाने बनाकर गीत गाया ना गया ।।
गाने बनाये अनगिनत तुमको सुनाने के लिये।
शिवदीन सदमों से बराबर ही सुनाया ना गया।।
घनश्याम हमारी आँखों में
घनश्याम हमारी आंखों में, हम आंखें में घनश्याम के हैं।
सरकार हमारे हो तुम तो, हम दास बने बिन दाम के हैं।।
घनश्याम…
हम तो चरणों के चाकर हैं, तुम मालिक तन मन धन के हो।
सर्वस्व तुम्हारे अर्पण है, हम आशिक तेरे नाम के है।।
घनश्याम…
दुनियां के तुफानों से न डरें, न हटेंगे तेरे इन कदमों से।
इन कदमों पर बलिहारी हुए, वाकिफ न और अंजाम के है।।
घनश्याम…
पल भर न जुदा तुम हो हम से, और हम न जुदा तुम से होंगे।
यह प्रकट प्रेम रहे अन्दर में, ना ग्राहक धन अरु धाम के हैं।।
घनश्याम…
शिवदीन सहारे तेरे हम, और दुनियां से मतलब क्या है।
दुनियां न हमारे काम की है, न हम दुनियां के काम के है।।
घनश्याम…
इन्ही दर्दों की गलियों में
इन्ही दर्दो की गलियों में दर्द हम खाया करते हैं।
बिचारे व्याकुल इस दिल को कभी समझाया करते हैं।
लिखा किस्मत में तेरे है तडफना जिन्दगी सारी,
तसल्ली देने के खातिर गीत यह गाया करते है।
कहना है नहीं बिल्कुल किसी से दर्द की बातें,
अरे दिल तू ही रख दिल में जो आंटे आया करते है।
हकीमों सूफी सन्तों को दिखाई नब्ज भी जाकर,
न जाना मर्ज कोई भी, यों ही दुख पाया करते है।
शिवदीन दिल के माजरे को, दिल ही में रखना,
इसी दिल के ही परदे में , कभी मुस्काया करते है।
मान रे ! मान मान, मन मान
मान रे! मान मान, मन मान।
कैसे भी तो मान मनन कर, धर मन उर में ध्यान।
क्या आनंद दुनियां में हेरे, राम नाम ले सांझ सवेरे,
परमानंद हृदय में खोजो, हैं अन्दर भगवान । (घट-घट में भगवान)
एक बार सौ बार हेरकर, खोज हृदय में नहीं देर कर,
मिल जायेंगे ब्रह्म राम हैं, सत्य करो पहचान।
लगा प्रीत कबहूं ना छूटे, राम नाम रस क्यूं ना लूटे,
जनम जनम आनंद मिलेगा, करो राम गुण गान।
शिवदीन सतगुरू प्यार देरहे, सब सारन का सार देरहे,
काया माया छलकर सबका, हर लेती है प्रान।
कानन में बोलि रहे
कानन में बोलि रहे गैयन के गोलन में,
मोर मुकुट माथे देख चन्द्रमा लजाय जात।
ऐसी छबि जांकी कबि बरनन करेगो कहाँ,
सारद मति थाकी वेद ब्रह्मा गुण गाय जात।
कहे शिवदीन दीनबन्धु जग जाने तुम्हे,
दीनबन्धु होके क्यूँ मोको भरमाय जात।
याते लर्ज-लर्ज कहूँ अर्ज तो सुनोहीगे,
आवो क्यूँ ना प्राणनाथ प्राण अकुलाय जात।
होरी खेल रहे नंदलाल
होरी खेल रहे नंदलाल, मारे भर-भर पिचकारी ।
ब्रज बालाएँ भीगी रंग में, भीगी राधा की सारी ।
भरे कड़ावा रंग-रंग के, भीगे साथी कृष्ण संग के,
नंद यशोदा के शुभ द्वारे, धूम मची भारी ।
ब्रज वृन्दावन बना सुहाना, मीत प्रीत का गा रहे गाना,
सुर ब्रह्मादी देखन आए, आए हैं त्रिपुरारी ।
संत सज्जनों का उर हरषा, करें इन्द्र फूलन की वरषा,
अमृत बूँद झरे झरना ज्यू, नाचे ब्रज की नारी ।
राधा कृष्ण गुलाल लाल से, राधा खेले नंदलाल से,
कहे शिवदीन छटा क्या बरणू, जय श्रीराधा प्यारी ।
लाल रंग बरसत चारों ओर
लाल रंग बरसत चारों ओर।
नंदगोपाल राधिका जय-जय, नांचे नंद किशोर।
वृंदावन बृजधाम धाम में, शुभ वसंत बस रही श्याम में,
हरियाली छाई मनमोहन, देखो तो हर ठौर।
वृजबाला गोपी व गवाला, रंग रंग का ओढ़ दुसाला,
यमुना तट पर गायरहे सब, होकर प्रेम विभोर।
लहरों में श्यामा लहराई, बंसी श्यामा श्याम बजाई,
कहे शिवदीन रसिक जन साधू, मधुरे बोले मोर।
रंग गुलाल उडाने वारे, श्रीराधा के हो तुम प्यारे,
पूरण ब्रह्म रसिला कृष्णा, मन मोहक चित चोर।
अगनित जग से चले जा रहे
अगनित जग से चले जा रहे।
कर विवेक देख तो मनडा, बुरे जा रहे भले जा रहे।
कायम नहीं मुकाम जगत में, भजले रे मन राम जगत में,
नाता संत सजन का सच्चा, विघ्न अनेकों टले जा रहे।
राम नाम शुभ नाम निरंतर, सत्य नाम सियाराम हरि हर,
बेटा पोता काम न आवे, अंत आंख दो मले जा रहे।
धनबल जनबल व्यर्थ अकलबल, तनबल झूंठा जाय सकलबल,
राम नाम बल पार लगावे, बाकी योधा हिले जा रहे।
कहे शिवदीन समझ मन मेरा बनिहों संत चरन का चेरा,
राम नाम हिरदय धरि देखो, खलजन फांसी घले जा रहे।
कुकर्म करे मानव पावत है नाना दुःख
कुकर्म करे मानव पावत है नाना दुःख,
सुकर्म के करे ते सुख मिलता नर घनेरा है।
तीरथ पुन्य दानन से करता सनमान सत्य,
धन्य धन्य मानव यही भाग्य का सवेरा है।
करता सतसंग संग, भक्ति का चढाय रंग,
राम नाम लेने से भागे भ्रम अंधेरा है।
कहता शिवदीन राम मिलता विश्राम राम,
सतगुरु का लाल बने चरणन का चेरा है।
राम नाम अमृत है, पीकर भक्त अमर भये
राम नाम अमृत है, पीकर भक्त अमर भये,
धन्य धन्य जनम तांको, बहुत ही सरानो है।
प्रीत राम नाम से, जीत्यो मन जीत लियो,
राम नाम जपो भक्त, राम को कहानो है।
झंझट जग जाल मिटे, राम नाम लेने से,
ममता और माया व्यर्थ, मन को लुभानो है।
कहता शिवदीन, दीनबन्धु भज राम राम,
जीवन सुधार फेर आनो है न जानो है।
कर्म, धर्म, योग, यज्ञ, तीर्थ व्रत दान पुन्य
कर्म, धर्म, योग, यज्ञ, तीर्थ व्रत दान पुन्य,
मंत्र, तंत्र वेदपाठ स्वर से सुनाये हैं।
राज पाट द्रव्य धाम, नाम भी कमाय लेत,
विद्या बलवान बली जगत में कहाये हैं।
कुटम्ब और बान्धव प्रीत गीत गाय रहे,
कहां लो बखानो सुन्दर नारी भी लुभाये हैं।
कहता शिवदीनराम एते सुख सुख नाहीं,
सुख तो स्नेही सत्य राम गुन गाये है।
गणिका गज गीध अजामिल से
गणिका गज गीध अजामिल से,
तुम तारि दियो सुनि मैं भी लुभायो।
सुनि और कथा बहु पापी तरे,
धुन्धकारी के हेतु विमान पठायो ।
बड़ पापी से पालो पड्यो अब है,
मोहे तारि उबारि क्यो देर लगायो।
शिवदीन कहे इन बातन को,
सुनि के श्रवना शरणागत आयो।