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जुगनू जमाती कैधौं बाती बार खाती

जुगनू जमाती कैधौं बाती बार खाती ,
प्राण ढूंढ़त फिरत घाती मदन अराती है ।
झिल्ली झननाती भननाती है बिरह ,
भेरी कोकिला कुजाती मदमाती अनखाती है ।
घटा घननाती सननाती पौन शिवनाथ ,
फनी फननाती ये लगत ताती छाती है ।
सावन की राती दुखदाती ना सोहाती ,
मोर बोलैँ उतपाती इत पाती हू न आती है ।

चंद की मरीची काम तोरि बिथराय दीनी

चंद की मरीची काम तोरि बिथराय दीनी ,
कैधौं हीरा फोरि कै कनूका धरि धरिगे ।
कैधौं काम मंदिर की झंझरी बनाई बिधि ,
कैधौं सोनजुही के पुहुप झरि झरिगे ।
कामिनी मनोरथ के आल बाल सिवनाथ ,
मैन के मतँग माते बेलि चरि चरिगे ।
अमल कपोलन पै दाग नहीं सीतला के ,
डीठि गड़ि गड़ि गई दाग परि परिगे ।

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