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कविता की मौत

मस्तिष्क की विराट्
शून्यता को चीरकर
विचार
जन्म पाते हैं।
शब्दों की देहरी
चढते-चढते
संवादों से
मुठभेड कर
दम तोड जाते हैं।
और फिर
दिनदहाडे
एक कविता की
मौत हो जाती है।

नई कविता की तलाश

भाषा के नए-नए
खाकों में ढलकर
टूटे शब्द
संकेतों / प्रतीकों
के नए-नए
अर्थ में बदलकर
भावना के सागर में
डूबते मन को
टूटते जन को
कुछ पल / क्षण को
ग्रीष्म स्नान
की
ताजगी देकर
रेतीली हवाओं में
लू बनकर
उड जाते हैं।
और ! फिर
कल्पना के कारखाने में
भाषा के सज्जाकार मस्तिष्क
शब्दों को जोड-तोडकर
छन्दों को तरोड-मरोडकर
लग जाते हैं
एक नई कविता की
तलाश में।

कविता 

कविता का ‘क’,
‘ख’, ‘ग’
खग बन गया है
‘वि’
विवश है
और ‘ता’
तालियाँ
तलाश रहा है।
कविता बन रही है।
कविता बिगड रही है।

मानवता की कब्र

आज
मानवता की कब्र पर
नैतिकता का
मुर्दा
जलेगा !
मित्र !
तुम भी आना,
चार कविता सुनाना
चालीस तालियाँ
ले जाना।

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