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खुश रहो 

कहना बहुत आसान होता है
खुश रहो।
जो चला गया वह तेरा नहीं था
खुश रहो।
जीने के लिए एक पल प्यार काफी है
खुश रहो।
क्या हुआ पैसे कम है
खुश रहो।
जलने वाले जलते रहे
खुश रहो।
तकदीर में यही लिखा था
खुश रहो।
भूख लगी तो लगने दो
खुश रहो।
दुनिया की परवाह न कर
खुश रहो।
जीवनके पल है चार
खुश रहो।
रिश्ते नाते है सब बेकार
खुश रहो।
प्रेम का करो ना व्यापार
खुश रहो।
विश्वास पर करो ना प्रहार
खुश रहो।
क्षणभंगुर है यह संसार
खुश रहो।
कर्म करते रहो न यार
खुश रहो।

कहाँ हमारा गाँव हैं 

ना सुहानी शामहै
ना पीपल की छाँवहै
कहाँ हमारा गाँव है।
ना लगती चौपाडी
ना घूरा ना ठाँव है
कहाँ हमारा गाँव है।
ना लगती हटिया
ना मेला की चाव है
कहाँ हमारा गाँव है।
ना कोयल से सूर मिलता
ना कौआ की काँव-काँव है
कहाँ हमारा गाँव है।
ना बरसा में नहाते
ना चलाते कागज की नाव है।
कहाँ हमारा।गाँव हैं।
ना पर्व की चहलपहल
ना भोज भात की चाव है।
कहाँ हमारा गाँव है।
अपनो से मिलने जो जाते
नहीं मिलता कोई भाव है।
कहाँ हमारा गाँव है।

शहीदों का दर्द 

मै मारा तो गया
किन्तु लडते हुए मारा जाता
तो अलग बात थी।
जान तो देश के नाम थी
गोली सीने में लगती
तो अलग बात थी।
मुझे मारने वाले कमीनो
दो दो हाथ कर मरते
तो अलग बात थी।
अफसोस नहीं मरने का
समर भूमि में मरता
तो अलग बात थी।
कमीनो ने कायरता दिखाई
दस को मार कर मरता
तो अलग बात थी।
आँखों में बदला सीने में उबाल
मुंड-मुंड काटकर मरता
तो अलग बात थी।
हमारी सारी ट्रेनिंग बेकार गई
काबलियत दिखाटर मरता
तो अलग बात थी।
हे माते! मैं शहीद तो हुआ
किन्तु पाक को नापाक कर मरता
तो अलग बात थी।

हल्ला बोल

बेटी का होता अपमान
जहाँ होता नहीं सम्मान
हल्ला बोल।
गुरूजी देखो खैनी खाते
छात्रों से पान मंगवाते
हल्ला बोल।
गलती कर न शर्माते
दूसरो को ग़लत बताते
हल्ला बोल।
दूसरो को परेशान करते
लडकी देख छीटाकशी करते
हल्ला बोल।
अपनी करनी को छिपाते
दूसरो पर पंचायत करते

धत्त तेरे की 

मंदिर बने दस लाख की
स्थापना हुई साठ लाख की
सैकडो कमरे बनते देव का
गरीब को सोने का घर नहीं
धत्त तेरे की।

सारे फैसले ऊपर होते
हम सिर्फपालन करते
पाप पुण्य भी ऊपर लिखता
सारी क्रेडिट हम पर जाता।
धत्त तेरे की।
ईमानदारी से हम चलते

जीवन भर मेहनत करते
ठीक से घर नहीं चला पाते
बेईमानी से तरक्की पाते।
धत्त तेरे की।
मेहनत से सुन्दर घर बना
खून पसीने से उसे सजाया
प्यार के धागे से उसे पिरोया
तुफानो ने नेस्तानुवुद किया
धत्त तेरे की।
कवि मंच की अजब कहानी
जित कवि तत श्रोता बानी।
मंच पकडे तो छोडता नहीं
आपसी लडाई में नहीं है सानी।
धत्त तेरे की।
नेता की तो बात छोडो
उसकी नहीं है जात छोडो
दलबदलू तो फितरत उसकी
चापलूस नशा की बात छोडो।
धत्त तेरे की।
औरत की अजब कहानी
बच्ची सम्बुढी बेपानी।
कितना भी काम करे वह
फिरमी वह न एक समानी।
धत् तेरे की

मौसम बसंती

मौसम बसंती आया रे
आके बहूत लुभाया रे।

किवाड़ नहीं मैं लगाती हूँ
पिय लौट न जाएं घबराती हूँ
कान लगाए मैं रहती हूँ
आहट पर जग जाती हूँ

थपकी ने मुझे भरमाया रे
मौसम बसंती आया रे।
दुल्हन आज बनी है धरती
पर हरपल यह तडपती है

जब जब कोयल गाती है
तन-मन में आग लगाती है
रातों की नींद चुराया रे
मौसम बसंती आया रे।

मैं गांव चली 

लेकर सारे ख्वाब
मैं गाँव चली।
छोड़ सारे बिषाद
मैं अपने गाँव चली।

अमुआ की डाली
कोयल मतवाली
घुमने सारे बाग
मैं अपने गाँव चली।

खेतों की हरियाली
बैलगाड़ी सवारी
खेलने करिया झुमरी
मैं अपने गाँव चली।

दादा कि दुलारी
दादी की खमौनी
लेकर सारे स्वाद
मैं अपने गाँव चली।

धान की कटाई
लाई मुरही बेसाही।
देकर बदले में धान
मैं अपने गाँव चली।

जन्माष्टमी का मेला
कृष्णा झुले झुला
खाने जलेबी मिठाई।
मैं अपने गाँव चली।

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