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चंद शे’र

कोई और तर्ज़े-सितम सोचिये।
दिल अब ख़ूगरे-इम्तहाँ[1] हो गया॥

कब हुई आपको तौफ़ीके़-करम[2]
आह! जब ताक़ते फ़रियाद नहीं॥

करवटें लेती है फूलों में शराब।
हमसे इस फ़स्ल में तौबा होगी?

नहीं ऐ हमनफ़स! बेवजह मेरी गिरयासामानी।
नज़र अब वाकिफ़े-राज़े तबस्सुम होती जाती है॥

मेरी मज़लूम[3] चुप पर शादमानी[4] का गुमाँ क्यों हो?
कि नाउम्मीदियों के ज़ख़्म को बहना नहीं आता॥

तुझ से हयातो-मौत का मसअला हल अगर न हो।
ज़हरे-ग़मे-हयात पी मौत का इन्तज़ार कर॥

शब्दार्थ
  1. ऊपर जायें परीक्षा का अभ्यस्त
  2. ऊपर जायें कृपा करने का सामर्थ्य
  3. ऊपर जायें अत्याचार
  4. ऊपर जायें प्रसन्नता

चंद रुबाइयात 

मेरी बला को हो, जाती हुई बहार का ग़म।
बहुत लुटाई हैं ऐसी जवानियाँ मैंने॥
मुझीको परदये-हस्ती में दे रहा है फ़रेब।
वो हुस्न जिसको किया जलवा आफ़रीं मैंने॥

मेरी बेख़ुदी है उन आँखों का सदका़।
छलकती है जिन से शराबे-मुहब्बत॥
उलट जायें सब अक़्लो-इरफ़ाँ की बहसें।
उठा दूँ अभी पर नक़ाबे-मुहब्बत॥

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