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शेर 

शिकवा किया था अज़ रहे-उल्फ़त, तंज़ समझकर रूठे हो
हम भी नादिम अपनी ख़ता पर, आओ, तुम भी जाने दो

शेर-1

(1)
अच्छा है डूब जाये सफीना1 हयात2 का,
उम्मीदो-आरजूओं का साहिल3 नहीं रहा।
(2)
अपने वो रहनुमा 4 हैं कि मंजिल तो दरकनार5,
कांटे रहे – तलब में बिछाते चले गए।
(3)
अपने ही दिल के आग में शम्अ पिघल गई,
शम्ए-हयात6 मौत के सांचे मे ढल गई।
(4)
इक फूल है अंदेशा नहीं जिसको खिजाँ 7का,
वह जख्म जिसे आप ने दामन से हवा दी।
(5)
इतना तो सोच जालिम जौरो-जफा8 से पहले,
यह रस्म दोस्ती की दुनिया से उठ जायेगी।

1.सफीना – नाव, नौका, किश्ती 2.हयात-जिन्दगी 3.साहिल – किनारा, तट। 4रहनुमा – मार्ग दिखाने वाला, प्रथ-प्रदर्शक 5. दरकनार – एक तरफ,अलग 6.शम्ए-हयात – जिन्दगी की शम्अ। 7.खिजाँ – पतझड़ की ऋतु 8जौरो-जफा – अत्याचार, अन्याय, जुल्मो-सितम

शेर-2

(1)
इश्क है इक निशाते1-बेपायाँ2,
शर्त यह है कि आरजू न हो।

(2)
उन लबों पै झलक तबस्सुम3 की,
जैसे निकहत 4में जान पड़ जाये।

(3)
अहले-हिम्मत5 ने हुसूले-मुद्दआ6 में जान दी,
और हम बैठे हुए रोया किये तकदीर को।

(4)
उनके आने की बंधी थी आस जब तक हमनशीं7,
सुबह हो जाती थी अक्सर जानिबे – दर8 देखते।

(5)
उनपै हँसिये शौक से जो माइले9 – फरियाद10 है,
उनसे डरिये जो सितम11 पर मुस्कुराकर रह गये।

1.निशात – आनन्द, खुशी 2.बेपायाँ – जिसका अन्त न हो, असीम, बेहद 3.तबस्सुम – मुस्कान, मुस्कुराहट, मन्दहास 4. निकहत – खुश्बू, सुगन्ध 5.अहले-हिम्मत – साहसी, हिम्मती 6. हुसूले-मुद्दआ – उद्देश्य की प्राप्ति 7.हमनशीं – साथ बैठने वाला, मित्र 8.जानिबे–दर – दरवाजे की ओर 9.माइल – आसक्त, आशिक, प्रवृत्त झुकाव रखने वाला, आमादा 10. फरियाद – (i) सहायता के लिए पुकार, दुहाई (ii) शिकायत, परिवाद (iii) आर्तनाद, दुख की आवाज (iv) नालिश, न्याय याचना। 11. सितम – जुल्म, अत्याचार

शेर -3

(1)
उस घड़ी देखो उसका आलम1,
नींद में जब हो आंख भारी।

(2)
कभी मौत कहती है अलहजर2, कभी दर्द कहता है रहम3 कर,
मैं वह राह चलता हूँ पुरखतर4 कि जहाँ फना5 का गुजर नहीं।

(3)
किससे कहिए और क्या कहिए, सुनने वाला कोई नहीं,
कुछ घुट-घुट कर देख लिया, अब शोर मचाकर देखेंगे।

(4)
किसी के काम न जो आए वह आदमी क्या है,
जो अपनी ही फिक्र में गुजरे, वह जिन्दगी क्या है?

(5)
कुछ दिन की और कश्मकशे6-जीस्त7 है ‘असर’,
अच्छी बुरी गुजरनी थी, जैसी गुजर गई।

1. आलम – स्थिति, दशा, हालत 2.अलहजर – बस करो, बचाओ 3. रहम – दया, कृपा, मेहरबानी, इनायत 4.पुरखतर – भीषण, भयानक, अत्यन्त खतनराक 5. फना – (i) मृत्यु, मौत (ii) विनाश, बर्बादी 6.कश्मकश – (i) खींचातानी, आपाधापी (ii) संघर्ष, लड़ाई (iii) दौड़धूप, पराक्रम 7. जीस्त – जिन्दगी

शेर-4

(1)
खुद ही सरशारे – मये- उल्फत1 नहीं होना ‘असर’,
इससे भर-भर कर दिलों के जाम छलकाना भी है।

(2)
खुद मेरी जौके-असीरी2 ने मुझे रखा असीर3,
उसने तो कैदे-मुहब्बत से किया आजाद भी।

(3)
खूगरे – दर्द4 हो अगर इन्सां,
रंज में भी मजा है राहत का।

(4)
खूने- हजार – हसरतो – अरमाँ के बावजूद,
उसकी नजर में हम न समाये तो क्या करें?

(5)
खूबिए-नाज5 तो देखो कि उसी ने न सुना,
जिसने अफसाना बनाया मेरे आफसाने को।

1.सरशारे-मये-उल्फत – मोहब्बत की मदिरा से लबालब या परिपूर्ण 2.जौके-असीरी – कैद होने या क़ैद में रहने का शौक 3.असीर – कैदी 4.खूगरे– दर्द – गम सहने का आदी 5खूबिए-नाज – नाजो-अदा या अभिमान की खूबी

शेर-5 

(1)
ख्वाब बुनिए, खूब बुनिए, मगर इतना सोचिए,
इसमें है ताना ही ताना, या कहीं बाना भी है।

(2)
गम नहीं तो लज्जते1-शादी2 नहीं,
बेअसीरी3 लुत्फे – आजादी नहीं।

(3)
गुलशन में जब कोई जा-ए-अमाँ 4न हो,
फिर क्यों बहार अपनी नजर में खिजाँ5 न हो।

(4)
हम कैद से रिहा हुए भी तो क्या हुआ,
जब गोशा-ए-चमन6 में नसीब आशियाँ न हो।

(5)
गुलों की गोद में जैसे नसीम7 आकर मचल जाए,
उसी अंदाज से उन पुरखुमार8 आंखों में ख्वाब आया।

1.लज्जत – (i) स्वाद, मजा (ii) आनन्द, लुत्फ 2.शादी – हर्ष, आनन्द 3.बेअसीरी – बिना कैद 4.जा-ए-अमाँ- वह स्थान जहाँ शान्ति या सुकून मिल सके 5. खिजाँ- पतझड़ 6. गोशा-ए-चमन – बाग का एक कोना 7. नसीम – ठंडी और धीमी हवा 8.पुरखुमार – नशे में चूर, मस्त

शेर-6 

(1)
घुट-घुट के मर न जाए तो बतलाओ क्या करे,
वह बदनसीब जिसका कोई आसरा न हो।

(2)
चाल वह दिलकश जैसे आये,
ठंडी हवा में नींद का झौंका।

(3)
छोड़ दीजे मुझको मेरे हाल पर,
जो गुजरती है गुजर ही जायेगी।

(4)
जज्ब कर ले जो तजल्ली1 को वह हुनर पैदा कर,
सहल है सीने को दागों से चरागाँ2 करना।

(5)
जब मिली आंख होश खो बैठे,
कितने हाजिरजवाब हैं हम लोग।

1.तजल्ली – नूर, रौशनी, आभा (चेहरे या मुखड़े की) 2. चरागाँ – जलते हुए चरागों की लहरें, रौशन

शेर-7

(1)
जबीने1-सिज्दा में कौनेन2 की वुसअत3 समा जाए,
अगर आजाद हो कैदे – खुदी4 से बंदगी5 अपनी।

(2)
जिन खयालात से हो जाती है वहशत6 दूनी,
कुछ उन्हीं से दिले – दीवाना बहलते देखा।

(3)
जिन्दगी वक्फा7 है तेरे हिज्र8 का,
मौत तेरे वस्ल का पैगाम है।

(4)
जुल्फें बिखरी हुई हैं आरिज9 पर,
बदलियों में चराग जलता है।

(5)
जो दर्द से वाकिफ हैं वह खूब समझते है,
राहत में तुझे खोया, तकलीफ में पाया है।

1.जबीन – माथा, ललाट, भाल 2.कौनेन – दोनों संसार, यह संसार और ऊपरी संसार (यानी परलोक) 3.वुसअत – लंबाई-चौड़ाई,विशालता 4.खुदी – अहंकार, अहंभाव, यह भाव कि बस हमीं हम है, अभिमान, घमंड, गर्व 5.बंदगी- इबादत, पूजा 6.वहशत – पागलपन 7.वक्फा – (i) दो कामों के बीच में ठहराव का समय, विराम, इंटरभल (ii) विलंब, ठहराव 8. हिज्र – वियोग, विरह, जुदाई, फिराक 9.आरिज – गाल, कपोल

शेर-8

(1)
ताइरे-जाँ!1 कितने ही गुलशन तेरे मुश्ताक2 है,
बाजुओं में ताकते – परवाज3 होना चाहिए।

(2)
तुझको है फिक्रे-तनआसानी4 ‘असर’,
जिन्दगी कुर्बानियों का नाम है।

(3)
तुम्हारा हुस्न आराइश5, तुम्हारी सादगी जेवर,
तुम्हें कोई जरूरत ही नहीं बनने-संवरने की।

(4)
तूफाँ से खेलना अगर इन्सान सीख ले,
मौजों से आप उभरें, किनारे नये- नये।

(5)
तेरी अदायें दिल को लुभायें तो क्या करें,
आंखें न मानें देख ही जायें तो क्या करें।

1. ताइरे-जाँ- हे प्राण-पंछी, हे जीव रूपी पंछी 2. मुश्ताक – ख्वाहिशमंद, लालायित, इच्छुक 3. ताकते-परवाज – उड़ने की ताकत 4.तनआसानी – आरामतलबी, शारीरिक सुख 5. आराइश – सिंगार, सजावट, आभूषण

शेर-9

(1)
दिल को बर्बाद किये जाती है,गम बदस्तूर1 किये जाती है,
मर चुकीं सारी उम्मीदे, आरजू है कि जिये जाती है।

(2)
देखो न आंखें भरकर किसी के तरफ कभी,
तुमको खबर नहीं जो तुम्हारी नजर में हैं।

(3)
न जाने किधर जा रही है यह दुनिया,
किसी का यहां कोई हमदम नहीं है।

(4)
न जाने बात क्या है, तुम्हें जिस दिन से देखा है,
मेरी नजरों में दुनिया भर हसीं मालूम होती है।

(5)
न देखने की तरह हमने जिन्दगी देखी,
चिराग बुझने लगा जब तो रौशनी देखी।

1.बदस्तूर - पहले की तरह, यथावत, यथापूर्व



शेर-10 

(1)
ताइरे-जाँ!1 कितने ही गुलशन तेरे मुश्ताक2 है,
बाजुओं में ताकते – परवाज3 होना चाहिए।

(2)
तुझको है फिक्रे-तनआसानी4 ‘असर’,
जिन्दगी कुर्बानियों का नाम है।

(3)
तुम्हारा हुस्न आराइश5, तुम्हारी सादगी जेवर,
तुम्हें कोई जरूरत ही नहीं बनने-संवरने की।

(4)
तूफाँ से खेलना अगर इन्सान सीख ले,
मौजों से आप उभरें, किनारे नये- नये।

(5)
तेरी अदायें दिल को लुभायें तो क्या करें,
आंखें न मानें देख ही जायें तो क्या करें।

1. ताइरे-जाँ- हे प्राण-पंछी, हे जीव रूपी पंछी 2. मुश्ताक – ख्वाहिशमंद, लालायित, इच्छुक 3. ताकते-परवाज – उड़ने की ताकत 4.तनआसानी – आरामतलबी, शारीरिक सुख 5. आराइश – सिंगार, सजावट, आभूषण

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