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मेरे बाद आ

बदलेगा रंग शाम-ए-आलम
मेरे बाद आ
होगा ज़रा सा दर्द भी कम
मेरे बाद आ
तन्हाइयाँ भी अपनी हैं
अपनी हैं साअतें
ख़ुद-साख़्ता हैं सारे ये ग़म
मेरे बाद आ
ख़्वाबों के इस मुंडेर से देखा किए मुझे
ये और बात है कि हुई चश्म मेरी नम
नमनाकियों की बात ख़त्म
मेरे बाद आ
हरियालियों की भीड़
मगर दुख की काश्त है
बदलेगा रंग रंग-चर्ख़-ए-कुहन
मेरे बाद आ

नज़्म

नहीं मैं किसी यूनानी अल्मिए का
मरकज़ी किरदार नहीं
न ही मैं इस लिए बना था
मैं तो एक ख़ामोश तमाशाई हूँ

हज़ारों साल पत्थरों में जकड़े
किसी मरकज़ी किरदार की आँखें
जब शाहीन से नोचवाई जाती है
और जब वो दर्द से कराह कर कहता है
मैं तमाम प्यारे करने वालों के लिए एब कर्बनाक मंज़र हूँ
या सालहा-साल समुंदरों में भटकने वाले सय्याहों से
ख़ुदा जब उन के घर आने का दिन छीन लेता है
या जब कोई सरकश मरकज़ी यूनानी किरदार
अपने आबाई ख़ुदा से मुस्कुरा कर कहता है
तख़्लीक़ के बाद मुझ पर तुम्हारा कोई हक़ नहीं रहा
तो मैं अपने बग़ल वाले मासूम तमाशाई से
माचिक माँग कर अपना सिगरेट सुलगा लेता हूँ
ख़ुदा या ये लोग कितने बेवक़ूफ़ हैं

मुझे जिं़दगी का कोई तजरबा नहीं
शायद अपनी ग़लतियों को हँस कर भूलने के फ़ुक़्दान को तजरबा कहते हैं
या फिर शायद इसी इख़्तिलाज-ए-कम-तरी को
ज़ेहन के फ्रेम में बंद रखने को
शायद मुझे मालूम नहीं

ये सदी दर्द-ए-ज़च्गी से कराह रही है
और मैं तवारीख़ के शातिराना सेहन में
बैठा सोच रहा हूँ
मैं नहीं ये दुनिया ज़ईफ़ हो गई है
और जल्दी ही मर जाएगी
मगर मुअर्रिख़ मेरे बारे में क्या लिखेंगे

शहर 

शहर तो अपने गंदे पाँव पसारे दरिया के किनारे लेटा है
और तेरे सीने पर रेंगती हुई च्यूंटियाँ सूरज को घूर रही हैं
जब निस्फ़-दर्जन ग़ैर मुल्की हकीमों ने मुश्तकका तौर पर ऐलान किया
मरज़ संगीन हैं और ये बहुत जल्द ही मर जाएगा
तो किसी चेचक-ज़दा बच्चे के तरह तू ने उन्हें देखा और ख़ामोश हो रहा
ग़लीज़-बदकार बे-रहम
शहर लोग कहते हैं तू बदकार हैं
और मैं ने ख़ुदा है
सर-ए-शाम
तेरे रंग चेहरे वाली औरतें लड़खड़ाते नौ-जवानों को निगल जाती हैं
बे-रहम
जब रात गए तेरे दानिश-वर रिक्शा किए ख़ुद-कुशी करने जाते हैं
तो ख़ामोश रहता है

शहर में तेरी दीवाना कुन ख़्वाहिशों से बे-ज़ार हूँ
शहर में तू अपने गंदे लिबास कब उतारेगा
शहर लोग कहते हैं मरने के बाद मेरी हड्डी से बटन बनाएँगे
शहर तेरी दीवारों पर ये कैसी तहरीरें हैं
शहर मैं ने महीनों से अख़बार नहीं पढ़ा
शहर तू चाय में शक्कर डालना भूल गया है
और ये तेरे आँसुओं की तरह लग रही है
शहर मुझे नींद आ रही है थपक कर सुला दे

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