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कविता विकास की रचनाएँ

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है शरारा ये मुहब्बत का, हवा मत देना 

है शरारा ये मुहब्बत का, हवा मत देना
जो सुलग ही गया दिल में तो दबा मत देना

जिनसे तहज़ीबों की सौगात मिली है तुमको
उनसे ही मान तुम्हारा है, गँवा मत देना

बाद मुद्दत के कहीं और ये दिल उलझा है
सो चुके ख़्वाबों को तुम फिर–से जगा मत देना

मेरे हमसाज़ करम इतना ही करना मुझपर
रहगुज़र में मिलें गर नज़रें फिरा मत देना

रक्खा है सबसे छुपा के तुम्हें अपने दिल में
कोई कितना भी कहे इसका पता मत देना

ज़िंदगी हमने गुज़ारी है ज़हर पी–पी कर
मरने का वक़्त जब आये तो जिला मत देना

लो तेरी हो गई दुनिया से अदावत करके
आग पर चलना पड़े तो भी दगा मत देना

तेरी यादें ही सबब हैं मेरे जीने का अब
खूबसूरत–से पलों को तू भुला मत देना

शाम ढलते ही तेरी याद जो घर आती है 

शाम ढलते ही तेरी याद जो घर आती है
एक ख़ामोशी मेरे दिल में उतर आती है

ज़िंदगी कब किसे मिलती है मुकम्मल यारों
कुछ न कुछ इसमें कमी सबको नज़र आती है

आँसुओं का ये समंदर है उमड़ पड़ता जब
तेरी यादों की वह तूफ़ानी लहर आती है

खौफ़ वहशत का है इस मुल्क में छाया ऐसा
शब रूमानी न सुहानी–-सी सहर आती है

टूट जाती हूँ कभी तो कभी जुड़ जाती हूँ
ज़ीस्त जब लाख झमेले लिये घर आती है

आइने पर है पड़ी धूल ज़माने-भर की
अपनी सूरत भी कहाँ साफ़ नज़र आती है

सच्चे दिल से तुम्हें आवाज़ है दे के जाना
इक सदा सच में तेरे दर से इधर आती है

झूम उठते हैं खुशी से ये शज़र पतझड़ के
बदलियों की जो उन्हें नभ से ख़बर आती है

खेत, पर्वत, पेड़, झरने अर समंदर देखकर

खेत, पर्वत, पेड़, झरने अर समंदर देखकर
रश्क होता है मुझे धरती के जेवर देखकर

नीर, नभ, सूरज, शशि, कचनार, केसर देखकर
सिर झुका जाता है मौला तेरे जौहर देखकर

आँख नम हो जाती है उजड़े घरों की बस्ती पर
बीता बचपन था जहाँ वह प्यारा नैहर देखकर

जो उगाती नफ़रतों की फस्ल हैं इस मुल्क में
रंज होता है नयी नस्लों के तेवर देखकर

था नया ही उड़ना सीखा एक गौरेया ने अभी
आज है सहमी हुई बिखरे हुए पर देखकर

उसकी ख़ामोशी पर मत जा, आग भी वह आब भी
दंग रह जाएगा एक तूफ़ान भीतर देखकर

एक मुद्दत हो गयी तुमको मिले, बातें किये
चंद पल रुक जाओ जी लूँ तुमको जीभर देखकर

कर ले पैदा खुद में जज़्बा मुश्किलों से लड़ने का
फिर न हट पायेगा पीछे, राह दूभर देखकर

दिल से दिल का इशारा हुआ

दिल से दिल का इशारा हुआ
ख़ूबसूरत नज़ारा हुआ

जब तलक दूर था, था, मगर
अब वह आँखों का तारा हुआ

देह माटी की मूरत लगी
मौत का जब इशारा हुआ

तेरी यादें ही सहलाती हैं
हिज़्र का जब भी मारा हुआ

जमती है अपनी दरियादिली
इसलिए सबका यारा हुआ

सारे जग से रहा जीतता
तुमसे ही पर हूँ हारा हुआ

माँ की बातों का पालन किया
ऐसे ही थोड़ी प्यारा हुआ

मान–सम्मान देता हो जो
बस वही बच्चा न्यारा हुआ

करके रुसवा मुझे ज़माने में

करके रुसवा मुझे ज़माने में
लग गए खुद को ही बचाने में

आदतों में मेरी तुम थे शामिल
वक़्त लंबा लगा भुलाने में

थक गईं इंतज़ार में आँखें
देर कर दी है तुमने आने में

थी बुलंदी पर मेरी शोहरत जब
इक हुए सब मुझे गिराने में

वो मनाएँ तभी मज़ा आए
अश्कों के मोती लुटाने में

इक अना साथ थी मेरे, वह भी
लो लुटा दी तुझे मनाने में

खेत, मेघ, दरया की बात अब पुरानी है

खेत, मेघ, दरया की बात अब पुरानी है
खोई गांवों ने अस्मत, थम गई रवानी है

अब न सजतीं चौपालें, पेड़ कट गए सारे
आम, नीम, पीपल की रह गई निशानी है

गांव में जो बसता था वह किधर गया भारत
आधुनिकता की आँधी ला रही विरानी है

हावी हो गया फैशन इल्म ओ हुनर पर अब
सर से पल्लू उतरा है, आँखों में न पानी है

स्क्रीन और गूगल ने, खेल छीने बच्चों के
बिन जिये ही बचपन को, आ गयी जवानी है

वो लुका-छिपी, गिल्ली–डंडा वाले दिन बीते
विडियो गेम का कोई अब हुआ न सानी है

बीच अलगू–जुम्मन के, दौर नफ़रतों का है
यार दोस्तों में अब, ख़ूब खींचातानी है

पोखरों में सूखा जल, हैं मवेशी खतरे में
उनको डाल संकट में खुद भी मुँह की खानी है

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