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प्रार्थना

माँ सरस्वती! बसॅ हृदय में
स्वीकार करॅ सुमन-चंदन।
चरण-कमल रॅ दास बनाबॅ।
सदा प्रार्थना शीश नमन।

जे कुछ देखियै, सच-सच लिखियै,
पाठक केॅ ले ली दर्पण।
कलम कसौटी बनै देश रॅ,
मातृभूमि रॅ अभिनन्दन।
हे माँ अपने कॅ सौ बार नमन।
चरण चंचरीक

-रचना, 10.97.2015

खुद्दी के खिचड़ी 

खुद्दी केॅ खिचड़ी बनाय देगे भुखिया!
खुद्दी केॅ खिचड़ी बनाय दे।
भिनसर केऽ गेलहम एखन के अयलियौ
खून पसीना एक्केऽ बनैलियौ।
ााप पितरॅ के गाली सुनैलियौ
छाती पर पत्थॅल धैरकेॅ बचलियौ
अबहूँ तॅ कुच्छो खिलाय दे।
खुद्दी केॅ खिचड़ी बनाय देगे भुखिया!
खुद्दी केॅ खिचड़ी बनाय दे।
कलौ करैक बेर राह हम देखलौं,
पता तोहर हम कनहूँ नैं पयलौं,
छाँक भर पानी पी काम पर पहुँचलौं,
झुकैत टगैत फटकार खूब सुनलौं,
ऐसन जीवन केॅ जराय दे!
खुद्दी केॅ खिचड़ी बनाय देगे भुखिया!
खुद्दी केॅ खिचड़ी बनाय दे।
गमछी फटल छै धीरे सें खोलिहें,
नीमक तीयौन के नामों नैं बोलिहें।
धीया-पूता केॅ केनहूँ मनैहियें
बचल-खुचल कुछो हमरो खिलैहियें
पानियें एखन पिलाय दे।
खुद्दी केॅ खिचड़ी बनाय देगे भुखिया!
खुद्दी केॅ खिचड़ी बनाय दे।

-वर्ष 6, अंक-8, मुंगेर जून, 1954

दुवे गो भुट्टा!

जल्दी सें भुट्टा पकाय दे गे सुगिया,
जल्दी सें भुट्टा पकाय दे।
करजा बीयान कैर मकै लगैलौं
भुखल पियासल दिन रात कमैलौं
मचना बनाय लड़कन से जोगैलौं
अबहूँ ते दिल के जुड़ाय ले।
जल्दी सें भुट्टा पकाय दे गे सुगिया,
जल्दी से भुट्टा पकाय दे।
भुट्टा दुवे गो, छ गो खबैया
बिसना, बुचिया ऊधम मचैया
बेंगना, बिमनी सेहो ते माँगतै
हमहीं तोंय भूख भुलाय दे।
जल्दी सें भुट्टा पकाय दे गे सुगिया,
जल्दी सें भुट्टा पकाय दे।
अचानक भयंकर बाढ़ जे अयलै
पकल मकै हाय सभे दहैलै
बाँकी बकाया कहाँ से चुकैवै?
कोनो उपाय अब बताय दे।
जल्दी सें भुट्टा पकाय दे गे सुगिया,
जल्दी सें भुट्टा पकाय दे।
रहबे कहाँ हाथ झोपड़ी में पानी,
ऊपर से पछिया हवा तूफानी
खैने बिना देह डोलब करै छै,
फुरती सें प्राणें गमाय दे।
जल्दी सें भुट्टा पकाय दे गे सुगिया,
जल्दी सें भुट्टा पकाय दे।

-मुंगेर वर्ष-6, अक्तूबर, 1954, अंक-12

घूरा

घूरा सुनगाय दे गे कोशिया,
घूरा सुनगाय दे।
सन-सन-सन-सन पछिया बहै छै
थर-थर-थर देह काँपव करै छै
लूल्ही लगल हय चलल न जाय छै
फुरती गरमाय दे।
घूरा सुनगाय दे गे कोशिया,
घूरा सुनगाय दे।
सिरमा तर में खैनी रखल छै
मिरजै में चुनौटी धरल छै
अगर जों तनियों चूना बचल होय
तनियें खैनी लटाय दे।
घूरा सुनगाय दे गे कोशिया,
घूरा सुनगाय दे।
ओढ़ना कहाँ से गमछी फटल छै
धोतियो में सौ सौ पेनी लगल छै
मिरजै के दोनों हत्थे उड़ल छै
फुरती सें बोरिये ओढ़ाय दे।
घूरा सुनगाय दे गे कोशिया,
घूरा सुनगाय दे।
भूखो लगल छै निन्दो न आवै
बाकी रुपैया के फिकिर सतावै
मुनिया, दुनिया कानव करै छौ
ठोक-ठाक कनहूँ सुताय दे।
घूरा सुनगाय दे गे कोशिया,
घूरा सुनगाय दे।

-मुंगेर दिसम्बर, 1954

डैनियाँ 

डैनियाँ खैलकै गे, मुदैनियाँ खैलकै गे।
एखनी तेॅ छौड़वा खेलबे करै रहै,
उछली कुदी केॅ भुंजा फाँकै रहै,
सोनियाँ बापें आभ्नैं रहै अंगा,
पीन्हीं केॅ झलकै गे।
डैनियाँ खैलकै गे, मुदैनियाँ खैलकै गे।
चौबटिया पर आखर गोबर केॅ चौका,
फूलसिनूर आरो बड़कागो लौका,
छौड़ाँ नाँघी अयलै बिहानैंह,
एखनी बड़का-बड़का फोका,
हाय-हाय-तड़पै गे।
डैनियाँ खैलकै गे, मुदैनियाँ खैलकै गे।
दॅर दुनियाँ में एक्के गो रहै,
आबे केनाँ दिबस गमैबै?
जोगेलिरासी नाशले हमरा,
आबे के कहतै खाय लेॅ दे हमरा?
हिरदै सालै गे।
डैनियाँ खैलकै गे, मुदैनियाँ खैलकै गे।
हे सोनियाँ माय कानला सें की हो थौं?
भगवान मानथौं फेरू हो थौं।
ओझा केॅ मगाबो धोंछी केॅ नचाबोॅ
आगू दिनों केॅ रास्ता बनाबोॅ
ऐहे करबै गे।
डैनियाँ खैलकै गे, मुदैनियाँ खैलकै गे।
भागी केॅ जैयती कहाँ बिगोड़ी,
ओझाँ देथैं भंडा फोड़ी,
सूपें बोढ़नी करभैं एकट्ठा।
तबेॅ होतै कलेजा ठंढा
खतमें करबै गे।
डैनियाँ खैलकै गे, मुदैनियाँ खैलकै गे।
बोंगन ओझाँ हाथ चलैल कै,
कटोरा नचैल कै, नाम कहल कै
बुचना मैयाँ बोलै केॅ कहतोॅ?
सुचनाँ लाठी चलाबैगे।
डैनियाँ खैलकै गे, मुदैनियाँ खैलकै गे।

-रचना-दुर्गापूजा/1955 मुंगेर, पुन‘ समय सुरभि अनंत, अंक-25 वर्ष…..

जहिना के तहिना

हम जहिना के तहिना गे ना।
आजादी के बहुत साल में बहिना गे।

जब-जब हमरा लगल बुखार,
तुलसी के काढ़ा तैयार।
डाक्टर बाबू बड़ा अजनबी,
नेता हम्मर ठगना गे।

आजादी के बहुत साल में बहिना गे,
हम जहिना के तहिना गे ना।

मुखिया जी सुखिया भै गेलखिन,
महल अटारी सेहो बनैलखिन।
हमर झोपड़िया कानै कपसै,
कहाँ कोय लोर पोछना गे।

आजादी के बहुत साल में बहिना गे,
हम जहिना के तहिना गे ना।

महँगी बढ़ल उपज नहि बढ़लै,
ठेठी हल के साथ न छुटलै।
बेरोजगार पढ़ल छथि घर में,
केना गढ़ायब गहना गे।

हम जहिना के तहिना गे ना।
आजादी के बहुत साल में बहिना गे,

एके सड़िया सब दिन पेन्हली,
साया आँगी आँख न देखली।
ढिबरी लिखल भाग में हमरा,
बिजली बारब सपना गे।

हम जहिना के तहिना गे ना।
आजादी के बहुत साल में बहिना गे,
हम जहिना के तहिना गे ना।
आजादी के बहुत साल में बहिना गे।

सुधुवा सब दिन गाय चराबै,
बिमली बकरी के टहलाबै।
करम जरल जतपिसनी बनली,
दिन बितैये कहुना गे।

हम जहिना के तहिना गे ना।
आजादी के बहुत साल में बहिना गे,
हम जहिना के तहिना गे ना।

-बरौनी संदेश, 20 जुलाई, 1981

चैत जबेॅ ऐलै

चैत जे ऐलै रामा मोॅन बौरै लेॅ
रहि-रहि देहिया में उठै हो जुआर।
आधी-आधी रतिया में कूके कोइलिया रामा
चिहुँकि-चिहुँकि उठे मनमा हमार।

पिया परदेशिया कहिके न ऐलै रामा,
पल-पल लागै रामा बड़का पहाड़,
पापी पपीहा बोले पलक्ष्ण पीऊ रामा,
सुनि-सुनि हिया में उठैहो हिलोर।

लिखि-लिखि पतिया पियबाकेॅ भेजूँ रामा
भरि-भरि अँखिया में लोर।
पिया निरमोहिया अजहूँ न ऐलै रामा,
भरल जवानी मारे रहि-रहि जोर।

चैत जे ऐलै रामा मोॅन बौरै लै,
रहि-रहि हिया में उठै हो हलोर।

-31 मार्च, 1982

अब नैं सहबोॅ 

बहुत सहलियॅ अबनैं सहबोॅ
पियबा तोहर मार।
बैनकेॅ अयलियॅ घोरॅ केॅ लछमी,
तैइयो ई व्यवहार?

पुरुष भेलौं तॅ शान नैं करियौ,
सुनियौ खोलिकेॅ काना।
गाली-गुप्ता अब नैं बकियौ
करियौ हमरोॅ मान।

अहाँ बिकलछी सवा लाख में,
तैपर दान दहेज।
अबकी बाबू देह बिकैथिन?
या बेचथिन दहलेज?

घरनी केॅ मुरगी नहिं बुझियौ,
दियो उचित स्थान।
नैं तॅ घौरॅ में उठत बबन्डर,
पगड़ी खसत धड़ाम।

काम-धाम कुछ करता नहियें
तैपर ऐत्ते शान।
पत्नी केॅ मरयादा करियौ
बनियौ नहीं गुलाम।

नैं तॅ हमहीं जैबॅ कचहरी
भेजबाय देबोॅ जेल।
तब देखबॅ केॅ मदद करैछॅ?
केॅ जीतै छै खेल?

-06.11.1992

अब नैं जरबोॅ 

बहुत जरै लेॅ, अब नैं जरबोॅ,
चुप्पे राखलेॅ, अब नैं रहबो।
सीना तान सामना करबोॅ,
अब नैं दहेज केॅ सुरसा भरबोॅ।

बाबूजी हो! धीरज राखि होॅ,
बीच-बीच में आबी जैहियॅ!
मैया हमरी मत घबड़ै हियें,
कभी-कभी भैया केॅ भेजिहें।

सोनी, मोनी! राखि हें याद,
कोय नैं सुन तौ कुछ फरियाद।
बाहूँ बल केॅ सदा भरोसा,
कोय नैं करतौ तभी फसाद।

सास-ससुर केॅ खूब समझैबेॅ
सेवा करबै विनती करबै।
तैइयो जों नैं मानथिन बात,
लिखलॅ छन कानबोॅ दिन-रात।

सैयाँ सें कहबै निरभीक,
रजबे चलॅ पुरनके लीक।
नैं तॅ जैबेॅ जेल तुरंत,
उलटे लाठी लगतॅ झीक।

देवरौह ननदी केॅ समझैबै,
नैं मानतै तेॅ खूब धमकैबै।
सबकेॅ सबक सिखैबै बढ़ियाँ,
अब नैं हम कमजोर की कनियाँ।

-09.11.1992

जेहल जैभोॅ

जैहिनें धीया अप्पन समझॅ,
तैहिनें धीया परिया।
तबकीयेॅ झरकायकेॅ मारभौ?
कीये चलै भौ छड़िया?

अप्पन बेटी दूध केॅ धोयल,
समधी के वदमशिया।
अनकर बेटी रंडी-मुंडी,
अप्पन कुन्ती-सीया?

बेटाँ करतन गुंडा गरदी,
लुटतन रेल, खजाना।
सास-ससुर लोॅग नखड़ा करतन,
करतन लाख बहाना।

सहनशीलता केॅ सीमा छै
सुनिलेॅ हे घरवाली।
दुल्हिन केॅ की करभौ बोलॅ?
बनधुन दुर्गा काली।

एगो बतिया मानोॅ हम्मर,
मिलजुल नव परिवार गढ़ोॅ।
सब समान बेटी या दुल्हिन,
अमन चैन केॅ राह बढ़ोॅ।

तिलक-दहेज केॅ खातिर कखनों
नैं करियौ तकरार।
नैं तॅ जेहल जैभौ एक दिन
उजड़त ई संसार।

-10.11.1992

तोंहीं बतलाबऽ

लोतपात, बारी झारी हे!
सब मुरझाबै छै,
अपराजिता, ओड़हुल, कनेर
हे! मुँह लटकाबै छै।
चीरामीरा, अमरूद, कटहल
खड़े-खड़े कहरै छै,
हमरो मोन बारी गेला सें हरदम हहरै छै!
आम, करौटन, गाछसुपारी कुछ नैं बोलै छै
बेला, गुलाब, नेमो गाछीं तेऽ
आँख नै खोलै छै।
की कहियै एकरा सबकेऽ हम तोहीं बतलाबऽ
औल बौल सबके मोन होय छै
तोंही बहलाबऽ।

-अंगिका लोक/जनवरी-सितम्बर, 2006

मोॅन नैं लागै छै

कैहिया करभौ गौना भौजी? होली आबै छै।
ढोलक झाल मंजीरा सुनिकेॅ मोॅन नैं लागै छै।

राधा बनिकेॅ नाचबै हम्हूँ,
बन्थिन कृष्ण कन्हैया।
सखी सहेली मिलकेॅ नाचबै,
नाचतै खूब ढोलकिया।

तोहर वाला पलंग देखकेॅ मोॅन ललचाबै छै।
कैहिया करभौ गौना भौजी? होली आबै छै।
ढोलक झाल मंजीरा सुनिकेॅ मोॅन नैं लागै छै।

टुकुर-टुकुर ताकै छै ताराँ
चान निहारै छै।
कुहू-कुहू बोली केॅ कोयली,
आग लगाबै छै।

केनाँक बनबै चिड़िया बोलेॅ पंख नैं लागै छै?
कैहिया करभौ गौना भौजी? होली आबै छै।
ढोलक झाल मंजीरा सुनिकेॅ मोॅन नैं लागै छै।

हमरा पास मोबाइल नैं छै
केनाँक करियै बतिया?
काँटा नाँकी दिन लागै छै,
सौतिन नाँकी रतिया।

कली फूल पर भौंरा गुन-गुन मोॅन उमगाबै छै।
कैहिया करभौ गौना भौजी? होली आबै छै।
ढोलक झाल मंजीरा सुनिकेॅ मोॅन नैं लागै छै।

-मुक्त कथन-वर्ष 31, अंक 29, 11 मार्च, 2006

झूमर 

बुला दे रे कागा मोरा ननदोई। ।3।
दे दूँगी तुमको कहेगा जोई सोई। ।2।

ननद मेरी छोटी बड़ अलबेली,
सजाबे रोज जूड़ा चंपा, चमेली।
ननदोई बिनु लागै सूनी हबेली;
रात नहीं सोये, दिन में खोई-खोई।

बुला दे रे कागा मोरा ननदोई। ।3।
दे दूँगी तुमको कहेगा जोई सोई। ।2।

फागुन महीना बड़ अलबेला,
ढोलक मंजीरा मचाबे बवेला,
चिहुँह-चिहुँह जागे सोये के वेला
कैसे समझाऊँ सिसक-फफक रोई,

बुला दे रे कागा मोरा ननदोई। ।3।
दे दूँगी तुमको कहेगा जोई सोई। ।2।

-मुक्त कथन, वर्ष 31 अंक-29, 11 मार्च, 2006

उमतैली छै

बागमती उमतैली छै
बूढ़ी गंडक पगलैली छै,
करेह करै छै तांडव हो!
दौड़ऽ हो! बचाबऽ हो!
बाप रे-डुबलाँ।
ई रङ-बाढ़!!!
जिनगी में नैं देखलाँ।
गामों घरऽ में-माथा ऊपर पानी।
छपरऽ पर बैठी केऽ-
गाछी में लटकी केऽ-
पक्का से हुलकी केऽ-
बोले छै-बुढ़िया दादी/बुढ़िया नानी।
टीला, टभार पर/कुछ-कुछ बचलऽ छै
मतर वहाँ भी/हाय राम/ साँपोऽ सें-
बिच्छू सें-डसंलऽ छै।
उड़न खटोलाँ जब/खाय लेल गिराबै छै-
बलवान्हैं पाबै छै/दुबरा पछताबै छै।
बाबू सब, भैया सब/नाबोऽ सें आबै छै
हाथोऽ में पकड़ाबै छै।
मगर, झपटै छै देखी केऽ
बंदर, गीदड़, कुत्ता।
आबे की खबरऽ-हे भगवान!
कहाँ जाँव? आगू में साँप-
पीछू में बिरनी रॅ छत्ता।
आँखी हेजूर में/बस्ती के बस्ती साफ
पोता साफ, पेाती साफ
माया-बाप, बाबा साफ
भाय-भतीजा साफ।
कथी लेल बचलाँ?
कोय नैं रहलऽ साथ।
कुछ नैं बचलऽ हाथ।
बारी डूबलै/झारी डुबलै,
डूबलै फसल हजारी।
गरीब गुरुवा के/ किस्मत डूबलै-
डूबलै नाव मझधारी।
माल मवेशी/सब तेऽ भाँस लै-
भाँस लै हाय बकरिया।
कपड़ा लत्ता/सब कुछ भाँसलै;
भाँस लै लोटा थरिया।
कहाँ जाँव?/मोहीं बतलाबऽ-
सीतामढ़ी, मधुबनी, दरभंगा?
ओकरौह तेऽ/बाढ़ें गिलनें छै-
खुद्दे छै भूखा नंगा।
त्राहिमास
मुंगेर, सहरसा, रोसड़ा टापू;
बखरी आ खगड़िया।
सर्वनाश बेगूसराय केऽ
डूबलै हाय चपरिया।
प्यारा तेघड़ा/सोना बलिया।
उत्तर-दक्षिण/पूरब-पश्चिम
पीड़ित हाय बिहार।
अग्नि परीक्षा छै-/नीतीश केऽ
रहतै या/जैतै सरकार।

-अंगिका लोक/ अक्तूबर-दिसम्बर, 2007

कैहिनाँ घरऽ में बेटी देलौहऽ 

धी दामाद केऽ देतें रहभौ
कखनूँ नैं, नैं बोलथौं।
सास-ससुर केऽ कुछ नैं कहथौं
दुःखड़ा यहाँ सुनैथौं।
दुल्हाँ मुँह चमकैथौं हरदम/बेटी सें कहबैथौं।
कहाँ सें आनभेऽ तोंहें जानऽ
मुँह फलैनें रहथौं।
माय केऽ लागी कानथौं-पीटथौं
टिटुवाँ लोंर चुयैथौं।
कैहनाँ घॅरऽ में बेटी देलौहऽ मैया सें सुनबैथौं।
पैर पकड़ी केऽ कानथौं तोरऽ
माया जाल बिछैथौं।
बेटाँ कहथौं खूब लुटाबऽ दे थौं ताल बहुरियाँ।
खाना-पीना खाख सोहैथौं दोनों तरफ मरणइयाँ।

-अंगिका लोक/ अक्तूबर-दिसम्बर, 2007

मोॅन ललचाबै छै 

कैहिया शादी करभौ भौजी, होली आबै छै।
तोहर वाला पलंग देखिकेॅ मोॅन ललचाबै छै।

वरतुहार केॅ कमी न लेकिन,
सपना मधुर सगाई।
साले साल लगन बीतै छै,
कब बजतै शहनाई?

बाबू जी के मुँह पर ताला, भैया मोल लगाबै छै,
कैहिया शादी करभौ भौजी, होली आबै छै।

तों साँझैं सें बन कमरा में
हम दरबाजे पेट कुनियाँ।
सुन-सुन लागे खटिया हमरॅ,
तोहर चकमक दुनियाँ।

कहौ कान में भैया जी सें फागुन मोॅन बहकाबै छै।
कैहिया शादी करभौ भौजी, होली आबै छै।

मोल तोल छोड़ी दॅ भौजी।
सुन्नर कनियाँ आनोॅ।
नैं तॅ चुपके शादी करभौं,
हमरोॅ बतिया मानोॅ।

लालच में पड़ला केॅ कारण माय-बाप पछताबै छै।
कैहिया शादी करभौ भौजी, होली आबै छै।

-08.02.07

दिनकर परिक्रमा 

पावन गंगा तट पर शोभित,
दिनकर ग्राम सिमरिया छै।
बेगूसराय जनपद केऽ गौरव,
जग में नाम अमरिया छै।
क्रान्तिगीत केऽ सबल गवैया
हुनको ‘हुँकार’ अनोखा छै।
दुनिया में विख्यात ‘हिमालय’
‘कुरुक्षेत्र’ नाम चोखा छै।

‘रश्मिरथी’ के जोड़ कहाँ छ।
‘उर्वशी’ अलबेली छै।
स्वर्ग छोड़ी केऽ धरती रहली
सबदिन कथा छबीली छै।
मारऽ डुबकी ‘रसवन्ती’ में
सोलहो शृंगार जहाँ छै।
‘प्रण-भंग’ होय जयथौं भैया
सदा बहार वहाँ छै।

‘द्वन्द्व गीत’ से द्वन्द्व मिटाबऽ
जीवन-मरण विचारऽ।
‘विजय-संदेश’ पाबि केऽ मनुवॉ
जग में सफल कहाबऽ।
सबके आँख खोललकै।
‘देश विदेश’ लिखी के सचमुच
अद्भुत नाम कमैलकै।…

लम्बी कविता पढ़तैकेऽ?
सभ्भे नाम गिनैतैऽ केऽ?
बचलऽ खुचलऽ बादऽ में
बोलऽ याद दिलैतै केऽ?
दिनकर जीरऽ अमर सुनाम,
जबतक धरती चाँद ललाम।
संगी-साथी करऽ परिक्रमा
चरण-कमल में कोटि प्रणाम।

-अंगिका लोक/ जुलाई-सितम्बर, 2008

कहीं धूप कहीं छाया 

आजादी पैनें/आठ साल।
मतर/वेहे रङ
सटलऽ पेट/पिचकलऽ गाल।
बड़की-बड़की दाढ़ी,
धूरा गरदा सँ/भरलऽ बाल।
केकरा कहै छै साबुन?
कैन्हों रूमाल।
उघारे देह/धोतियो तार-तार।
पत्नी केऽ पुतली/नसीब कहाँ साया!!!
ईश्वर केऽ माया।
छपरोॅ पर/खोॅड़ नैं…
दुआरी पर/होॅर नैं।
बधनी जवान/खेत नै खलिहान।
केना करबै शादी?
कानै छै माय/कानै छै दादी।
छोड़ा सब मड़राबै छै/ रोजे धमकाबै छै।
मुखिया केऽ कहला सें/आगे लगाबै छै।
देखी लेऽ/मुखिया केऽ/गोले-गोल भोंट
टुह-टुह गाल/पक्का मकान।
घोड़ा/घोंड़सार/होण्डा चौपाल।
नेता रऽ बाते की/रंग बिरंगा कार,
मुट्ठी में सरकार।
पचमहला मकान/द्वारे दरवान।
मुहों में/बनारसी पान
रात केऽ बोतल/पंचसितारा होटल।
छूमछनन वाई/पत्नी पराई।
कहूँ नै/सुनवाही/के देथौं गवाही?
केकरऽ सस्तो जान? गुंडा रऽ पौवारह
कहरै छै/हहरै छै/भीतरे भीतरे/इन्सान।
दौड़ऽ हो/भगवान/दौड़ऽ हो/भगवान।

-अंगिका लोक/ अप्रेल-जून, 2008

आँखीं आरू दिलोॅ में तोंहीं विराजै छऽ 

आँखीं आरू दिलोॅ में तोंहीं विराजै छऽ,
हम्में यहाँ तड़पै छी वहाँ तों गाजै छऽ।

चर्चा में बीतै छै बड़का गो दिन
यहाँ छटपटाय छी वहाँ की साजै छऽ।

कैहिनिों निर्मोही छऽ ममता नैं लागै छौं,
पकड़ला पर सपना में बहुत दूर भागै छऽ।

कहनें रिहौं कैहियो अकेला नैं छोड़िहऽ
सब कुछ भूलैलेहऽ, बोलै नैं बाजै छऽ।

टेलीफोन करलासें प्यास बढ़ी जाय छै,
मानलोॅ की जाय छै रही-रही खाजै छऽ।

सहलोॅ नै जाय छै बिछुड़ला रऽ धाह,
दवादारू तोंहीं मतर तोंहीं खूब ताजै छऽ।

-अंगिका लोक/ जनवरी-मार्च, 2008

समय खराब छै 

साबो!
ई रङ-
बनीं ठनीं केऽ
बहराबऽ नैं।
समय खराब छै,
गराँ में लपेटी के दुपट्टा,
छाती देखाबऽ नैं।
देखथैं, नजर गड़ैथौं,
मारथौं सुसकारी।
जों तों देभौ गारी-
मारथौं हुंहकारी।
कोय कुछ नैं बोलथौं।
आदमी-
जानवर सें भी-
बत्तर होय गेलऽ छै।
टुकुर-टुकुर ताकथौं।
उलटे मोनें कोॅन कहथौं-
आरो बनीं ठनीं केऽ चलऽ
बेशी बोलभौ तेऽ
लेथौं उठय।
राखथौं नुकाय,
जबतक मोॅन होयतै-
भुखलऽ भेड़िया नाँकी-
चीबैथौं गरम माँस।
गिड़गिड़ै बऽ कानबऽ
के सुनथौं?
ओकरऽ बाद हे साबो।
गरऽ दाबी देथौं।
मारी देथैं, फेकी देथौं।।
आदमी रूपऽ में-
हैबान बनी जैथौं।
यहाँ-
माय बापें छाती पीटथौं।
माथों धुनथौं।
तोंहें कुलहसाय कहलै भेऽ अलगे।
बाप-बाबा केऽ
पगड़ी गिरी पड़थौं।
कहाँ करोऽ नैं रहभेऽ।
हमहूँ छलिइयै-
तोरे रङ जवान,
हमरौह छलै-
तोरे रङ छाती।
आँचर कखनूँ नैं घसकै छलै।
केकरऽ मजाल कि-
मारी लियऽ कनखी?
आदमी-आदमी छेलै।
मिलला पर होय रहै भरोसऽ
आबेऽ तेऽ लागै छै डोरॅऽ।
चौकीदारें-राखै रहै इज्जत।
आबे तेऽ पुलिसबोऽ तहिनें छै।
कहाँ जैभो?
केकरा कहभौ?
तहिनैं छौं मुखिया-
तहिनैं छै नेतबा-तहिनैं सरकार।
खोलनें छै-पंचसितारा होटल।
पकड़ी केऽ कराबै छै-छेह व्यापार।
आबेऽ की बोलभेऽ?
आबेऽ की करभेऽ?
जानी के जात दे केऽ
दैवोऽ के दोष देना-नींकोऽ नैं।
घरहौं में रहला पर तेऽ-
करेजऽ धक-धक।
बहरैला पर बाते की?
बचलेहऽ तेऽ बड़ाभाग
गेली तेऽ छेबे करऽ।
साबो!
नैं लहराबऽ-घुँघर लऽ बाल।
नैं सजाबऽ गुलाबी गाल।
छोड़ी देऽ लगैबऽ काजल।
नैं लगाबऽ सेन्ट-नैं फुलेल।
छोड़ी देऽ लिपीसटिक-
छोड़ी देऽ मुसकब।
पकड़ी ले कान-
भजऽ भगवान।
छोड़ी देऽ पयल
उठाय लेऽ चप्पल
मारऽ मुऽह जरोनाँ पत्थल
तबेऽ सीखथौं।
लेकिन पहिने-
अपनाँ केऽ ठीक करऽ।
अपनाँ केऽ ठीक करऽ।
ई मुझौसा मरदें-
जात लेऽ लेथौं।
बच्ची रहऽ कि विकलांग,
बूढ़ी रहऽ कि जवान,
कुछ नैं बुझथौं।
राखिहौ केॅ घिनैथौं।
रे निगोड़ा।
आपनों-
काटी कऽ फेकी न दे।
मोॅन होय जैतौ शान्त।
नैं तऽ-
चुल्लू भर पानी में-
डूबी केऽ मरी जो।
डूबी केऽ मरी जो।
डूबी केऽ मरी जो।

-अंगिका लोक/ जनवरी-मार्च, 2008

कुच्छो नैं सूझै छै 

बुधना!
कबतक रहबे बेरोजगार?
चल पंजाब, दिल्ली।
सबकेॅ मिली जाय छै काम।
हमरौह मिली जैयतै।
यहाँ खैबे की?
केनाँ बनतौ मकान?
केनाँ होयतौ-
बेटी केॅ वियाह?
बेटाँ, बेटीं-
केनाँ पढ़तौ?
कहाँ से अयतौं कौपी-किताब?
सबतेॅ ऊपरे ऊपर-
उड़ी जाय छै।
गिनला, चुनला के-
मिली जायछै पोशाक।
लेकिन कागज भरी जायछै।
पता नैं-
केकरऽ-केकरऽ लिखी लै छै नाम।
मुखियाँ, मास्टरें-
सब गिली जायछै।
सरकारें दै छै-
कामों रऽ गारन्टी-
अखबारऽ में निकलै छै-
कामों रऽ दिन।
कत्तेऽ मिलतै मजदूरी?
सभ्भे कहा चल्ल जाय छै?
केतना बड़ऽ छै-
हाकिम, मुखिया आरो-
करमचारी रऽ पेट?
बाप रे!!
भरथैं नैं छै।
नेतबोॅ कुछ नैं बोलै छै।
आधऽ पेट खाय केॅ-
कबतक रहभैं?
हमरो हाल ऐहनें छै।
भुखनी माय भागलै नैहरऽ-
छोटकी बेटी केॅ लेलकै साथ-
आरो सभ्भे यहीं छै।
करियै कोन उपाय?
कच्छो नैं सूझै छै?
कुच्छो नैं सूझै छै?
कुच्छो नैं सूझै छै?

-16.07.08
अंगिका लोक, जुलाई-सितम्बर, 2015

कोय नैं सुनबैइया

कोसी केऽ कल-कल धारा हो,
कोय नै छै सुनबैइया।
कोसी केऽ खल-खल पारा हो,
कोय नैं छै रोकबैइया।

गप-गप-गप-गप गीली गेलै,
बाँस ताड़ बागीचा।
महल-झोपड़ी गीली गेलै
जाल माल गालीचा।

कहीं-कहीं पीपल गाछी पर
चूहा, साँप, बिलैइया।
कोसी केऽ कल-कल धारा हो,
कोय नै छै सुनबैइया।
कोसी केऽ खल-खल पारा हो,
कोय नैं छै रोकबैइया।

हाथी, घोड़ा, ऊँट लापता,
गदहा पैते थाह?
गीदड़, कुत्ता किकिआय मरलै
कीट, पतंग तबाह।

मेमना, बछिया भाँसी गेलै
साथे धेनू गैइया।
कोसी केऽ कल-कल धारा हो,
कोय नै छै सुनबैइया।
कोसी केऽ खल-खल पारा हो,
कोय नैं छै रोकबैइया।

गिलटवाला गहना डूबलै
गौना वाला पेटी।
लोटा, थरिया, छप्पर भाँसलै
साथे गुड़िया बेटी।

बेटा कहाँ, बाप कै ठां छै?
कोय नै छै बतबैइया।
कोसी केऽ कल-कल धारा हो,
कोय नै छै सुनबैइया।
कोसी केऽ खल-खल पारा हो,
कोय नैं छै रोकबैइया।

कोसी नें धारा बदली केऽ
लेलकै सबके प्राण।
साठ साल तक सुतलऽ रहलै
इंजीनियर बेइमान।

नेतबाँ हुलकै आसमान सें
चमड़ी के नोंचबैइया।
कोसी केऽ कल-कल धारा हो,
कोय नै छै सुनबैइया।
कोसी केऽ खल-खल पारा हो,
कोय नैं छै रोकबैइया।

बचलऽ खुचलऽ पक्का पर हो
कटलौ कत्ते रात।
भूख प्यास केऽ नाम नैं बोलऽ
ऊपर सें बरसात।

युगयुग जीयै सेना हम्मर
राहतसँ मिलबैइया।
कोसी केऽ कल-कल धारा हो,
कोय नै छै सुनबैइया।
कोसी केऽ खल-खल पारा हो,
कोय नैं छै रोकबैइया।

भाषणबाजी सुनतें सुनतें
पाकलऽ दोनों कान।
छीना-छपटी राशन-पानी,
बेच हाय ईमान।

एक चनाँ सें भाँड़ नैं फूटै
सुनलेऽ बाबू भैइया।
कोसी केऽ कल-कल धारा हो,
कोय नै छै सुनबैइया।
कोसी केऽ खल-खल पारा हो,
कोय नैं छै रोकबैइया।

नकसा में खोजै छी बाबू!
आपनों-आपनों गाँव।
पाँच जिला में कहाँ-हेरैलै?
कहाँ में धरबै पाँव?

कहाँ में मिलतै? तो हीं बताबऽ
मँगनी में खोजबैइया
कोसी केऽ कल-कल धारा हो,
कोय नै छै सुनबैइया।
कोसी केऽ खल-खल पारा हो,
कोय नैं छै रोकबैइया।

-अंगिका लोक/ जनवरी-मार्च, 2009

ठुनकै छै 

पत्नी ठुनकै छै आनै लेल साड़ी, साया, चोली।
बाग बगीचा कोयल कू-कू आबै छै होली।

आम गाछ में मंजर मह-मह,
लीची मंजर मतवाली।
रही-रही भौंरा मँडराबै,
संभव की रखवाली?

महुआ तर में जानी नाचै, गाबै मधुर रंगोली।
पत्नी ठुनकै छै आनै लेल साड़ी, साया, चोली।
बाग बगीचा कोयल कू-कू आबै छै होली।

पेंट-सर्ट माँगै छै बेटाँ,
बेटीं सलवार कुरती।
बहुत देर नैं करि हौ पापा!
चल्लोॅ आबोॅ फुरती।

कलकत्ता सें लेने अयहियौ रंग-अबीर केॅ झोली।
पत्नी ठुनकै छै आनै लेल साड़ी, साया, चोली।
बाग बगीचा कोयल कू-कू आबै छै होली।

मंदी सें छटनी होय गेलै,
करियै कोन उपाय?
सबके आशा मिट्टी मिलतै,
अब की करियै भाय?

लाज लगै करजा माँगे में व्यंग्य बाण ठिठोली।
पत्नी ठुनकै छै आनै लेल साड़ी, साया, चोली।
बाग बगीचा कोयल कू-कू आबै छै होली।

पूआ पूड़ी केनाँक छनतै?
ताकतै टुक-टुक बुतरू।
खाली पेट सुहैतै बोलॅ
दरबाजा पर घुँघरू?

कोन मुँह परदेशी जयतै, खुलतै मुँह सें बोली?
पत्नी ठुनकै छै आनै लेल साड़ी, साया, चोली।
बाग बगीचा कोयल कू-कू आबै छै होली।

-मुक्त कथन, वर्ष 34, अंक 29, 07 मार्च, 2009

भौजी हार लै

झुमका लेल भौजी ठुनकै छै
भैया कुछ नैं बोलै छै।
मंदी सें छटनी भेॅ गेलै,
ई रहस्य नैं खोलै छै।

कहनें रहथिन ई होली में,
लेकेॅ अयबॅ झुमका।
साथे साथ पकैबै पूआ,
साथ लगैबै ठुमका।

भौजी तानाँ मारै हमरा,
झूट्ठा तोहरा भैइया।
दीवाली गेलै होली अयलै,
अब घोॅर अयथुन कैहिया?

फोन लगाय केॅ बात कराबॅ,
अबनैं माँगबै झुमका।
होली में मुँह बोली बनबै
साथ लगैबै ठुमका।

-मुक्त कथन, वर्ष-34, अंक-29, 07 मार्च, 2009

तड़पाबै छौं

हो देवर जी! फोन लगाबॅ भैया घोॅर नैं आबै छौं।
की सौतिन संग रंगोली में नाचै, कूदै, गाबै छैं?

सौंसे रात पपीहा बोलै,
दिनभर कूकै कोइलिया।
ढोलक झाल मंजीरा सुनिकेॅ
हम्में पगली बाबरिया।

सावन सुनसुन, आसिन गुमसुम, फागुन में तड़पाबै छौं।
हो देवर जी! फोन लगाबॅ भैया घोॅर नैं आबै छौं।

कलकतिया साजन केॅ साथें,
सखी सहेली नाचै छै।
रात-रात भर कथा कहानी-
रंग बिरंगरॅ बाँचै छै।

एक अभागिन हम दुनिया में ममता नैं उसकाबै छौं।
हो देवर जी! फोन लगाबॅ भैया घोॅर नैं आबै छौं।

-मुक्त कथन, वर्ष-34, अंक-29, 07 मार्च, 2009

गढ़बै नया बिहार 

हिली-मिली केऽ आबऽ हमसब गढ़बै नया बिहार,
अमन चैन केऽ वंशी बजतै, होयतै नित त्योहार।

खेत-खेत हरियाली झुमतै
सरसों, गेहूँ बाली।
भुट्टोॅ देतै ताव मूँछ पर,
बजाय-बजाय के ताली।

बसमतिया चावल के तसमै चलतै धुवाँधार।
हिली-मिली केऽ आबऽ हमसब गढ़बै नया बिहार,
अमन चैन केऽ वंशी बजतै, होयतै नित त्योहार।

बिजली बत्ती भक-भक करतै
छुक-छुक चलतै रेल।
आसमान में उड़बै हम्हूँ
जीतबै सब्भे खेल।

बाग-बगीचा कोयल कू-कू, भ्रमर फूल गुंजार।
हिली-मिली केऽ आबऽ हमसब गढ़बै नया बिहार,
अमन चैन केऽ वंशी बजतै, होयतै नित त्योहार।

कपड़ा लत्ता कमी न रहतै,
नैं दहेज रऽ नाम।
रामराज केऽ सपना पूरा
करतै हर इन्सान।

जल सें, थल सें, आसमान सें करबै फिर व्यापार।
हिली-मिली केऽ आबऽ हमसब गढ़बै नया बिहार,
अमन चैन केऽ वंशी बजतै, होयतै नित त्योहार।

मुन्ना निर्भय पढ़ी केऽ अयतै,
पूआ-पूड़ी घरऽ में खैयतै।
मुनियाँ इसकुल कॉलेज जयतै,
साइकिल, मोटर खूब चलैतै।

घर दरबाजा चकमक करतै, रहतै सदाबहार।
हिली-मिली केऽ आबऽ हमसब गढ़बै नया बिहार,
अमन चैन केऽ वंशी बजतै, होयतै नित त्योहार।

मुखिया, अफसर काम करैथिन,
घूस घास केऽ नाम मिटैथिन।
मंत्री गाँव-गाँव में घुमथिन।
गले-गले मिल दुःख सुख सुनथिन

डी.एम., एस.पी. देथिन हमरौह सुन्दर सन उपहार।
हिली-मिली केऽ आबऽ हमसब गढ़बै नया बिहार,
अमन चैन केऽ वंशी बजतै, होयतै नित त्योहार।

पी.एम., सी.एम. धरती चलथिन,
साथ-साथ विधायक, एम.पी.।
पुलिस, सिपाही ड्योटी करता,
कोय नैं करतन चम्पी।

प्रजातंत्र रऽ बजतै डंका, देखतै भर संसार।
हिली-मिली केऽ आबऽ हमसब गढ़बै नया बिहार,
अमन चैन केऽ वंशी बजतै, होयतै नित त्योहार।

-अंगिका लोक/ जुलाई-सितम्बर, 2010

रात हिमालय दिन शिमेला

रात हिमालय दिन शिमेला।
थर-थर काँपै गुदरा विमला।

पछिया अर्जुन तीर जकाँ,
अश्वसथामा रंग हमला।

चक्की गुमसुम, चुल्हा ठंडा,
बेलना कहीं, कहीं चकला।

टाटी टुटलऽ छलनी छप्पर,
बर्फ ओस, ऐंठै कल्ला।

धरती लारऽ, ऊपर कथरी,
धोती जरजर, एक्के पल्ला।

धूर कहाँ? कहाँ छै कम्बल?
गाँव नगर, छुछ्छे हल्ला।

सेना साजऽ दुखिया सबकेॅ
पकड़ऽ नेतावा रऽ गल्ला।

-25.01.11
अंगिका लोक, जुलाई-सितम्बर, 2015

कटतै केनाँ रात हे!

पिया परदेश अबहूं नैं अयलै कटतै केनाँ रात हे!
होली बितलै दीवाली बितलै, बीती गेलै बरसात हे।

दिन तेऽ काम धाम में बीतै
साँझ दियै में साँझ हे।
घड़ी दू घड़ी सास ननद में
हम्हीं अभागिन बाँझ हे।

कत्तेऽ/गिनियै तारा बोलऽ दिन में झंझावात हे।
पिया परदेश अबहूं नैं अयलै कटतै केनाँ रात हे!

पूस माघ हड्डी में जाड़ा
कट-कट बाजै दाँत हे।
पछिया-पवन बड़ा निर्मोही
काटै भूखलऽ आँत हे।

टप-टप टपकै ओस देह पर चाँद लगाबै घात हे।
पिया परदेश अबहूं नैं अयलै कटतै केनाँ रात हे!

लू लागै वैशाख जेठ में
आँगन बरसै आग हे।
विरह जराबै भीतरे भीतर
हमरऽ जरलऽ भाग हे।

आखिर अषाढ़ मेघ सें कहलौं दिल केऽ सब्भे बात हे।
पिया परदेश अबहूं नैं अयलै कटतै केनाँ रात हे!
होली बितलै दीवाली बितलै, बीती गेलै बरसात हे।

-अंगिका लोक/ जुलाई-सितम्बर, 2011

सबसें आजिज

ऊपर आसमान रऽ छत छै,
नीचें वर्षा तूफानी।
खट-खट-खट दाँत बजै छै
हे भोला औघड़ दानी।

हाय! मचान के नीचे नेमना
वहीं खड़ी बछिया बकरी।
घरनी के गोदी में रघुवा
ऊपर सें गुदड़ी कथरी।

प्रजातंत्र के इहे रूप छै
कहीं महल कहीं ठठरी।
वर्षा सूखा सबसें आजिज
कड़ी धूप, भीषण बदरी।

अरब-खरब सरकार लुटाबै,
यहाँ कहाँ फूटी कौड़ी?
सटल पेट आँखों नैं सुझै
केनाँ करौं दौड़ा-दौड़ी?

लम्बोदर मुखिया हाकिम रऽ
कान बहिर आँखी पथरी।
लगातार वर्षा सें बाबू
सड़ी गेलै पौरकऽ चचरी।

सावन शिव के मास कहै छै
हुनियें देथिन तनियें ध्यान।
बेड़ा पार लगैथिन सबके
दुखिया रऽ केवल भगवान।

-अंगिका लोक/ जुलाई-सितम्बर, 2011

महँगाई के मार 

महँगाई के मार भयंकर कोय नैं छै रोकबैइया
सुरसा नाँकी रोज बढ़ै छै नै हनुमान छोटबैइया।

करूवा तेल सूँघना दुर्लभ
कहाँ से पड़तै लोहिया?
चावल दाल अजनाश लगै छै
गुमसुम चुल्हा कोहिया।

सब्जी आसमान में लटकै कचुओ बीस रूपैइया।
महँगाई के मार भयंकर कोय नैं छै रोकबैइया
सुरसा नाँकी रोज बढ़ै छै नै हनुमान छोटबैइया।

मिर्च मसाला नाँव नैं बोलऽ
सीधे दू सौ टकिया।
तेल फुलेल सपना में आबै
बुझलऽ गरीबकेऽ डिबिया।

मनमोहन सरकार निकम्मी ‘बुश’ के झाल बजबैइया।
महँगाई के मार भयंकर कोय नैं छै रोकबैइया
सुरसा नाँकी रोज बढ़ै छै नै हनुमान छोटबैइया।

अजी सेठ केऽ पौ बारह छै
मालामाल व्यापारी।
नेता बैठलऽ पंच महल में।
दोनो पाँव पसारी।

ठहरऽ सबक सिखैबै अबरी, कोय नै छै बचबैइया।
महँगाई के मार भयंकर कोय नैं छै रोकबैइया
सुरसा नाँकी रोज बढ़ै छै नै हनुमान छोटबैइया।

-अंगिक लोक/ अक्तूबर-दिसम्बर, 2012

नया साल?

नया साल उनखा लेल छीकै जिनखा पास रूपैया।
जंगल जायकेऽ धूम मचैतै, नाचतै ता-ता थैया।

भूखना भूखनी केऽ की मालूम
नया साल कहिया अयतै?
बिना लगन कऽ गाँव नगर में-
ढोल ढाक, बाजा बजतै।

सटलऽ पेट, बदन अधनंगा, हवा चलै पछवैया।
नया साल उनखा लेल छीकै जिनखा पास रूपैया।

लाल कार्ड केऽ पैसा मुश्किल,
पीला कार्ड मनमोहना।
ढीका पट्टा, काम नदारद,
खाली हाथ न गहना।

भूमिहीन, छप्पर डमखोला, बिकलै बकरी गैया।
नया साल उनखा लेल छीकै जिनखा पास रूपैया।

सरकारी झुनझुना लुहावन,
मगन ठगन अधिकारी।
सरजमीन पर कुछ नैंपाबऽ,
मगरमच्छ व्यापारी।

टुक टुक कब तक ताकभौ बोलऽ बहना, बाबू भैया?
नया साल उनखा लेल छीकै जिनखा पास रूपैया।
जंगल जायकेऽ धूम मचैतै, नाचतै ता-ता थैया।

-मुक्त कथन, 12 जनवरी, 2013

केनाँ के करबै!

बुधनी बड़ी सयानी घर में केनाँके करबै शादी?
बहुत गरम बाजार वरऽ केॅ कपसै मैइया दादी।

हुरकुच्चै बुधनी बापऽ केऽ
खौजै लागी लड़का।
कहाँ जाँव, केकरा सँ कहियै!
बिकट सवाल छै बड़का।

हारी पारी लौटे हरदम खर्चा के बर्बादी।
बुधनी बड़ी बयानी घर में केनाँके करबै शादी?
बहुत गरम बाजार वरऽ केॅ कपसै मैइया दादी।

खेत पथार नामे केऽ हमरा
नैं बथान पर बरदा।
बकरी गैया एगो दूगो
डमखोलाकेऽ परदा।

बेटाँ बालाँ राजा समझै, चाहै छै शहजादी।
बुधनी बड़ी बयानी घर में केनाँके करबै शादी?
बहुत गरम बाजार वरऽ केॅ कपसै मैइया दादी।

घर बाहर खतरे खतरा छै,
बेटी जहाँ सयानी।
की गरीब, की पैसा वाला,
एक्के राम कहानी।

जब दहेज के दानव मरतै, अयतै दुनिया आह्लादी।
बुधनी बड़ी बयानी घर में केनाँके करबै शादी?
बहुत गरम बाजार वरऽ केॅ कपसै मैइया दादी।

-अंगिका लोक/ जुलाई-सितम्बर, 2013

जागऽ

जागऽ हमरऽ संग-साथी, जागऽ हमरऽ भैया।
टुकुर-टुकुर ताकतें रहभौ तेऽ डूबथौं अपनें नैया।

नेतबा धोखेबाज,
पुलिसबा भक्षक।
अफसर शाहंशाह
किरनियाँ तक्षक।

फन कूटै लेल कदम बढ़ाबऽ भूलीजा मंतरिया।
जागऽ हमरऽ संग-साथी, जागऽ हमरऽ भैया।
टुकुर-टुकुर ताकतें रहभौ तेऽ डूबथौं अपनें नैया।

डाक्टर साहब जोंक।
क्लीनिक पचमहला।
पहिनें लेथौं फीस,
नहला पर दहला।

दरद बढ़ैथौं चीरथौं पेट, छोड़थौं कैंची सूइया।
टुकुर-टुकुर ताकतें रहभौ तेऽ डूबथौं अपनें नैया।
जागऽ हमरऽ संग-साथी, जागऽ हमरऽ भैया।

फास्ट फूड पर मारामारी
गुमसुम चुल्हा-चक्की।
सैर, सिनेमा हरदम चाही।
अग्रिम टिकट पक्की।

गदा भीमसन तभिये चलथौं, द्रोपदी सन भनसिया।
टुकुर-टुकुर ताकतें रहभौ तेऽ डूबथौं अपनें नैया।
जागऽ हमरऽ संग-साथी, जागऽ हमरऽ भैया।

-अंगिका लोक/ जुलाई-सितम्बर, 2013

की-की मिलतै?

नया साल में की-की मिलतै, बतलाबॅ भैया?
धोती कुरता, गमछी याकि दरबाजा गैया।

भक-भक बिजली घोॅर में बरतै,
भागतै धुप अंधेरा।
कथरी फेंक रेजाई ओढ़बै,
जागबै रोज सबेरा।

धरनी साड़ी पहिन थिरकतै, नाचबै ता-ता थैया।
नया साल में की-की मिलतै, बतलाबॅ भैया?

गठ्ठा, गुठ्ठी सड़कनै रहतै,
दौड़तै मोटर गाड़ी।
दोनों साँझ चुल्हा गरमैतै,
बाँटबै पान सुपाड़ी।

टुनमाँ, टुनियाँ मुरख नैं रहतै देतै सभैं बधैया।
नया साल में की-की मिलतै, बतलाबॅ भैया?

पीला लाल कार्ड नैॅ रहतै,
हरियर केॅ उड़तै झंडा।
अमर चैन केॅ वंशी बजतै,
अपराधी केॅ फुटतै भंडा।

मंत्री, संतरी साफ सूथरा निर्भय बहना भैया
नया साल में की-की मिलतै, बतलाबॅ भैया?

-22.12.2013

वासंती गीत

आम बगीचा मंजर महमह मन बहकाबैछै।
फूल-फूल पर तितली भौंरा नाचै-गाबै छै।।

रात-रात भर महुआ टपकै,
मधु वरसाबै छै।
पवन चलै गमकौआ जखनी
तन तरसाबैछै।

विरहिन केॅ सौतिन कोइलियाँ आग लगाबै छै।
आम बगीचा मंजर महमह नाचौ-गाबै छै।।

झूमी-झूमी गेहूँ बाली
दिल हरसाबै छै।
सरसों तीसी सजी-धजी केॅ
देखोॅ रास रचाबै छै।

वंशी टेरै कुँवर कन्हैया, गोपी नाल बजाबै छै।
आम बगीचा मंजर महमह नाचै-गाबै छै।।

परदेशी के मन बौराबै
झटपट के टिकट करावै छै
होयतै कोय अभगले भैया।
ऐमें घोॅर नैं आबै छै।

चारो तरफ गजब मस्ती छै, नयना नेह लगाबै छै।
आम बगीचा मंजर महमह नाचै-गाबै छै।।

-अंग गौरव/ 25.03.2014

केकरा कहियै मनोऽ रऽ बतिया तोरा छोड़ी केॅ 

केकरा कहियै मनोऽ रऽ बतिया तोरा छोड़ी केॅ?
केकरा कहियै मनोऽ रऽ खिसिया तोरा छोड़ी के?

ताम जाम जेकरा लेल सबकुछ ऊ दुनिया सें बाहर।
ई देखी केॅ जीना मुस्किल आपनों माथा फोड़ी केॅ।

लाख बुझाबडऽ वें की बुझथौं लड़का हुयै की लड़की।
फुकथौं फाकथौं कुछ नैं पूछथौं जे आनथौं लोढ़ी केॅ।

घर परिवार जाय चूल्ही में ओकरा कथी लऽ चिन्ता?
लेकिन मांगथौं हरदम बेदम राखलौह जोड़ी केॅ।

कहाँ नौकरी? हम्में की करियै? उलटे घौंस जमैथौं,
बड़ा कठिन समझाना छै हो, बहरा कोढ़ी केॅ।

भूली जा आदर अनुशासन देथौं नपका तूरें,
जीना छौं तेॅ सीखऽ रहना तन-मन मोड़ी केॅ।

-17 जून, 2014

चलें फुरती सें माय

चलें फुरती सें माय!
गेहूँवाँ केॅ दैयाँ ओसाय ले।
आग सन धूपोॅ में देहो तबै लौं,
माँग चाँग बरोॅ के जोड़ी जुटै लौं,
नूनूकही बाबू कही दिनभर घुमै लौं,
खूँटी गड़ल गोड़ खून बहै लौं।

दुनियाँ नयी अब बसाय ले,
चलें फुरती सें माय!
गेहूँवाँ केॅ दैयाँ ओसाय ले।

भेलै सबेरा पूरवा बहै छै,
देखू पीपल के पात डोलै छै।
कुहू-कुहू मधु कोयल कूकै छै,
तन-मन प्राण भाय सम्भे हरै छै।

जरा जल्दी सें दौरा उठाय ले,
चलें फुरती सें माय!
गेहूँवाँ केॅ दैयाँ ओसाय ले।

दुनियाँ नयी हम कहाँ सें बसैबै?
बाँकी रूपैया केना हम चुकैबै?
रोज महाजन केॅ प्यादा आबै छै,
थारी, लोटा, घोॅर, छप्पर छीनै छै,

एकरे केन्हूँ बचाय ले,
चलें फुरती सें माय!
गेहूँवाँ केॅ दैयाँ ओसाय ले।

-15.05.1969

अंगोरा सन धूल 

जेठरॅ दुपहरिया में
पछिया बतास चलै।
आग कॅ अंगोरा लागै
धरती रॅ धूल।
आग सन धूल, अंगोरा सन धूल।

ताल रे तलैया में,
फटलै दरस्बा जी।
नदी विरहिनयाँ रॅ
बड़ी दूर कूल।
आग सन धूल, अंगोरा सन धूल।

छर-छर पसीना चलै,
मनमा बेकल लागै
सूखै छै करेजा रॅ
भैया हो भूल।
आग सन धूल, अंगोरा सन धूल।

घैला रॅ पानी अजी!
प्यास बढ़ाबै दूना।
बिनयाँ डुलाना लागै
विलकुल भूल।
आग सन धूल, अंगोरा सन धूल।

वन के पखेरू सब
नीड़बा में ऊँधौ झूपै।
छाँह पीपलबा के-
तनी अनुकूल।
आग सन धूल, अंगोरा सन धूल।

जेठ केॅ दुपहरिया सें
मत घबडाबॅ भैया!
खिलतै अखड़वा में
सोना रॅ फूल।
आग सन धूल, अंगोरा सन धूल।

-26.07.1969

घनघोर घटा 

घटा घनघोर उमड़ै हो।
मन-मयूर छम-छम-छम नाचै,
रून झुनुन-झुमुन पैजनियाँ बाजै।
सूखी धरती ताल तलैया

मन-मन भीजै हो,
घटा घनघोर उमड़ै हो।

ढोल झाल घुँघरू बजबाबोॅ,
हल तैयार फार पिटबाबोॅ।
पालोॅ उठाय चलै चरका जब,

हिरदै हरसै हो,
घटा घनघोर उमड़ै हो।

सावन मास पूरवा जब डोलै,
रोपनी मधुर गीत में झूमै।
”जल्दी रोप, चलें घोॅर जल्दी,

मनमा थिरकै हो,
घटा घनघोर उमड़ै हो।
-26.07.1969

की-की होय छै?

नया साल में की-की होय छै बतलाबॅ भैया?

की ओकरा में रोटी मिलतै?
धोती लेल रुपैइया।
छप्पर केॅ छौनी होय जयतै,
मिलतै जरसी गैया।

दीदी केॅ शादी होय जैतै, नाचबै ता-ता थैया।
नया साल में की-की होय छै बतलाबॅ भैया?

की जाड़ा में कम्बल मिलतै?
मायके मिलतै साड़ी।
लालकार्ड हमरौ ह मिल जैते,
अलमुनियम बाला हाँड़ी।

बाबूजी केॅ अंगो मिलतै, रोज कमाय लेल नैया
नया साल में की-की होय छै बतलाबॅ भैया?

कीवै में ढिबरी नैं रहतै?
भक-भक करतै बिजली।
कादो वाला सड़क नैं रहतै,
पोखर मारबै मछली।

इस कुल जाय के मौका मिलतै, करबै हम्हूँ पढ़ैइया
नया साल में की-की होय छै बतलाबॅ भैया?

की मोटर साइकिल अबनैं चढ़थिन?
मुखिया जी हम्मर।
की सूमो, बेलेरो चढ़थिन?
हिलतन नहीं कमर।

की हुनका अब महल अटारी, भनसा लेल रसोइया?
नया साल में की-की होय छै बतलाबॅ भैया?

-मुक्त कथन, 26 जनवरी, 2008

आग केॅ हवाला होय केॅ बचनाय मुश्किल छै 

आग केॅ हवाला होय केॅ बचनाय मुश्किल छै।
शीशा घोॅर कतना सुरक्षित कहनाय मुश्किल छै।

बुढ़ापा वरदान, छीकै, अभिशाप कखनूँ नैं।
नयका पीढ़ी केॅ साथ-साथ चलानाय मुश्किल छै।

बहुरिया फास्ट फुड केॅ दीवानी निकलैय।
दोनों साँझचुलहा जलानाय मुश्किल छै।

खास परिवार पश्चिम केॅ पहचान छीकै।
भारत में सिक्का जमानाय मुश्किल छै।

पछियारी-रंग में जे रंगले भैया।
ओकरा दिल-दिमाग में बसानाय मुश्किल छै।

भारत असकल्ले इतिहास लिखनें अयलै।
जब ताँय साँस चलतै, ओकरा घटानाय मुश्किल छै।

-13.10.2010

चार गो मुक्तक

1.
दिवाली ओकरोॅ छै,
जेकरा जेबी रुपैइया।
बाँकी के रात भर
भोंकै छै सूईया।

2.
होली ऊ की खेलतै?
जेकरा रंग नैं पिचकारी।
देखी के ललचै छै,
बोलै छै मोॅन-मारी।

3.
देहॅ पर बसतर नैं
हाथोॅ में अबीर-झोली।
बें, की, केनाँ खेलतै?
तोंहीं बोलॅ होली।

4.
परब तेहवार आबै छै,
गरीबॅ कोॅ सताबै छै।
बनियाँ बैकालें
एक केॅ तीन भँजाबै छै।

-रचना-समय-समय पर, 2013

पहाड़ लागै छै

एक्को घड़ी आपनें बिना पहाड़ लागै छै।
सूनीं महलिया में सिंघो के दहाड़ लागै छै।।

थर-थर देह काँपै छै,
फेफड़ो अजी हाँफै छै।
मोॅनों खूब्बे अकुलाय छै,
कोय कहाँ बहलाय छै?

रही-रही घोड़ा रॅ लताड़ लागै छै।
एक्को घड़ी आपनें बिना……दहाड़ लागै छै।

पैर ठीक रहलॉ सें
बूली लरी ऐतियाँ।
सूखी सहेली सें
बोली-बाजी लेतियाँ।

जीते जी भारी सुखाड़ लागै छै।
एक्को घड़ी आपनें बिना……दहाड़ लागै छै।

खाना पीना होयतै छै,
सेवा टहल मिलथैं छै।
नूनूँ साथ सुतथैं छै,
गीतनाद सुनथैं छै।

अकेली समैया मतुर दम-पछाड़ लागै छै।
एक्को घड़ी आपनें बिना पहाड़ लागै छै।
सूनीं महलिया में सिंघो के दहाड़ लागै छै।

हुनका बिना

तनियें देर केॅ देरी विशेष लागै छै।
थोड़बे दूर केॅ दूरी विदेश लागै छै।

की बोलियै हाल अप्पन,
बोललॅ नैं जाय छै।
आरो बिना बोलनें अजी!
रहलो नैं जाय छै।

गोड़ बिना जिनगी कलेश लागै छै।
तनियें देर केॅ देरी…..विदेशलागै छै।

हुनका बिना चैन कहाँ?
हुनका बिना रैन कहाँ?
हुनका बिना शैन कहाँ?
हुनका बिना बैन कहाँ?

आगू में रहला सें हुलेश लागै छै।
तनियें देर केॅ देरी….विदेश लागै छै।

बोलला बतियैलासें
दिन कटी जाय छै।
दुख सुख सुनैलासें
दरद घटी जाय छै।

कटियो टा बिछुड़ना परदेश लागै छै।
तनियें देर केॅ देरी विशेष लागै छै।
थोड़बे दूर केॅ दूरी विदेश लागै छै।

रचना-जून, 2014, अंगिका लोक, जुलाई-सितम्बर, 2015

विद्यापति सँ 

अहाँक केवल
मिथिला सीमा में बांधब
अन्यायथीक
कूपमंडुकता थीक।

भारत के कण-कण में
अहाँकै गीत गुंजित अछि।
मास्को, वाशिंगटन, लंदन
शोध में लागल अछि।

अहाँक गीतक स्वर
सुरसरीक माध्यम सँ
समुद्रक लहर-लहर में
ब्याप्त अछि।

तें हेतु-
अहाँक केवल भारत सीमा में बांधब
सेहो अन्याये थीक।
अहाँ विश्वभर में लीन-
विश्वव्यापी छी।

हे महाकवि।
जब धरि सृष्टि अछि,
तबधरि अहाँक गति
हमर धरोहर अछि।
कोकिलक प्रणाम स्वीकार करु।

-बरौनी संदेश, 24 नवंबर, 1975

चन्द्र-जेता सँ 

ज्वालामुखी रहैत
चाँद शीतल छथि
मुदा हिमालय आ
सागर सँ भरल भू?
आगि सन धीपल।
मानव-मानव में मेल नहि
टाका लेल उलटे हम दानव
सुनु कान खोलि चन्द्र जेता सब
चाँद पर गेने की भेल?
जँ छूटल नहिं धरती केर कानब!

-स्वदेश वाणी, 1967, वैद्यनाथ देवघर, सं.प. अब झारखंड

अहाँ नहिं अयलियै (विरहक-पत्र)

हमरा पठाय रहि गेलियै ये!
अहाँ नहं अयलियै।
एकठाम रहैत मोन ऊबल अहाँकऽ,
भानस करैत त मोन थाकल अहाँकऽ;
गाम जाय लेल हठ कैलियै ये!
अहाँ नहिं अयलियै।
सोलह बरीस सँसंगे रहलियै,
दुःख सुखकेर दिल संगे गमलियै,
आय किये तनियों हटलियै ये!
अहाँ नहिं अयलियै।
किछु दिन में अहाँ अयबै, जनैत छी,
तें आँगुर पर दिन हऽम गिनैत छी।
एतबो किये तड़पैलियै ये!
अहाँ नहिं अयलियै।
छ-टा धीया-पूताह हमरा के देलियै
नींक जकाँ राखबै सेहो कहलियै।
सातम के संगे रखलियै ये!
अहाँ नहिं अयलियै।
धऽर सें बिदाकाल अहाँ मोनपारियौ,
के-के-ढाढ़ रहैथि संग में चारियौ;
कधी लेल अहाँ काँनलियै ये?
अहाँ नहिं अयलियै।
अहाँक बिना सून एतऽ लगै अछि,
भीतरे भीतर मोन हमर काँनै अछि।
कोनाँ अहाँ रहिगेलियै ये!
अहाँ नहिं अयलियै।

-17.11.1977

सफलताक शिखर

गुलाबक फूल,
तोड़बाक हैतु,
हाथ बढ़ैबै तऽ
आँगुर में काँट
अवश्ये चूमत।
सफलताक शिखर
पहुँचबाक लेल
मुसीबत क पहाड़
पार करैइए पड़त।

-28.05.1985

बड्ड अभिशाप 

दुलहा बाबू रूसल वैसल,
चाही हीरो होण्डा।
नैं खैता, नैं कुरूर करता,
नैं बनता मुँछ मुंडा।

घोॅरवाली केॅ बजा कहलथिन,
हमरा लोॅग जनि अययौ।
मोटर साइकिल नैं देथिन तेॅ,
अब नैं अयबन कहियो।

मेऽ, बाबू, भैया सँ कहियौन,
हम नैं लेबेन गौना।
पापा हम्मर किछु नैं करथिन,
हम जों धरबेन भौना।

कटल गाछ सन बाबू खसला,
मायक हाथ सँ उड़लेन तोता।
भैया निर्निमेष भॅगेलखिन,
लगलेन उजड़ैत अप्पन खोता।

उठल बयार भयंकर धेंरि में,
अब की करबै हाय रौ बाप?
आगाँ कुआँ, पाछाँ खाई,
बेटी भेनें बड्ड अभिशाप।

-19.11.1992

मुगदैर मारू

नर-पिशाच नाचै अछि देखू,
ता-ता-ता-ता थैया।
पीबै छथि शोणित कनियाँ केर
बड्ड जुलुभ ई भैया।
पहिनें माँगलेन हीरो होण्डा,
पाछाँ रंगीन टी. भी.।
अंखा, पंखा, फीरिज से हो,
अब कोना कऽ जी.बी.?
मासे-मासे एत्ते टाका,
चलतेन कोनाँ गाड़ी?
करजा काठि पठौनें छी कंहुनाँ,
बेटी लेल दुइ साड़ी।
खेत बिकागेल, घोॅर बिकागेल,
आओर बिकायल, बछिया।
थारी, लोटा नैं अछि किछुओ,
नैं बाबाकेर गछिया।
तूहीं बताबह कोनाँ बचाबी?
ई हालत में धीया।
मुगदैर मारु नर पिशाच केॅ,
करियौ छीया-छीया।

-17.11.1992

हैऽत कोना कें?

बिना पाईकऽ हैऽत कोनाक भैया कन्यादान,
एऽह फिकिर में नींद न होय अछि सूखल जाय अछि प्राण।

सोन सनक बेटी सयानी अछि,
पढ़वा में नीक मुदा लजानी अछि।
घरक काज में ततबे प्रवीण,
की कहू साक्षत गुण खानी अछि।

वरक बाप मुदा बनल छथि टाका लेल नादान।
बिना पाई…..सूखल जाय अछि प्राण।

टी.भी. लागत मोपेड लागत
बाजे छथि बहन ऽय।
वर बरातक खर्चा लागत
जानिलियौ निश्चय।

एक लाख पढ़वा लेल राखू या रचता मकान।
बिना पाई….सूखल जाय अछि प्राण।

वरक भविष्य ज्योतिषी कहता
डा. अभियन्ता याकि किसान?
आनक खेत कतेदिन रहितेन?
या लिपता खलिहान?

मगर शान टाटा बिड़ला केर खाय उधारक पान।
बिना पाई….. सूखल जाय अछि प्राण।

कतैय जाय किछु बुझिनैं पड़ै अछि
धीरज राखू बहुत बजै छथि।
मुदाकथा होय हलका फुलका
एको जनभाय कहाँ बजै छथि?

औल बौल में रात बितैयऽ गिनैत तारा चान।
बिना पाई….. सूखल जाय अछि प्राण।

घर बैशी हरिनाम जपै छी,
बम भोलाकें भाँग गछै छी।
औघड़दानी लाज बचेता,
हुनके निशिदिन नाम भजै छी

वरक बाप कें तांडव रोकू दियौ अहाँ सब ध्यान।
बिना पाई…. सूखल जाय अछि प्राण।

-27.09.1985

बनब पिशाचिन

नाचि रहल अछि प्रेत दहेजक,
बाजै अछि हरमुनियाँ
तिलक केर गीत-नाद भॅरहल अछि
मुदा सिसकै छथि कनियाँ।

बापकऽ पढ़ौलथिन चीठी,
”देहकेर लेहू सुखागेल,
पीठ सँ सेटि गेल पेट।
समीप अछि बाबूजी जीवनक खेल।“

”खेल पथार तॅ पहिनें बिकायेल,
अब जनि बेचू देह।
मोन पड़ै अछि रातदिन,
मेय, दीदी, भैया केर नेह।

परंच एक टा बात कहि दैत छी,
लगा लेब ”फाँसी“ बनब ”पिशाचिन“
सास, ससुर ननद सभ्भकेॅ लेब ”प्राण“
सुख सँ नै रहती ई घोॅर में ”सौतिन“।

-17.11.1992

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