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आँखी मा हमर धुर्रा झोंक दिये

आँखी मा हमर धुर्रा झोंक दिये,
मुड़ी मा थोप दिये मोहनी ।
अरे बैरी जानेन तोला हितवा ,
गंवायेन हम दूनों ,दूध -दोहनी ।।
पीठ ला नहीं तैंहर पेट ला मारके ,
करे जी पहिली बोहनी ।
फेर हाड़ा गोड़ा ला हमर टोरे,
फोरे हमर माड़ी कोहनी ।
गरीब मन के हित करत हौं कहिके,
दुनियॉं मा पीटे ढिंढोरा ।
तैं हर ठग डारे हमला रे गोरा ।।

पहिरे बर दू बीता के पागी जी

पहिरे बर दू बीता के पागी जी,
पीये ला चोंगी, धरे ला आगी जी ।
खाये ला बासी, पिये ला पेज पसिया ।
करे बर दिन -रात खेत मा तपसिया ।।
साधू जोगी ले बढ़के दरजा हे हमर,
चल मोर भइया बियासी के नांगर ।।

भूख मरत ईमान गली मा

भूख मरत ईमान गली मा मांगत भीख खड़े हे ।
बीच शहर बइमान सेठ के भारी महल अड़े हे ।
जनता के पइसा मा भइया नेतामन मजा उड़ावैं ।
अफसर पंखा तरी बइठ के दिन भर जीव जुड़ावै ।

यदि मैं भी चिड़िया बन पाता 

यदि मैं भी चिड़िया बन पाता!

तब फिर क्या था रोज़ मजे़ से,
मैं मनमानी मौज उड़ाता!

नित्य शहर मैं नए देखता,
आसमान की सैर लगाता!

वायुयान की सी तेजी से
कई कोस आगे बढ़ जाता!
रोज़ बगीचों में जा-जाकर
मैं मीठे-मीठे फल खाता!

इस डाली से उस डाली पर
उड़-उड़ करके मन बहलाता!

सूर्योदय से पहले जगकर
चें-चें करके तुम्हें जगाता!

सदा आलसी लोगों को मैं
चंचलता का पाठ पढ़ाता!

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