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सीख्यो सब काम धन धाम को सुधारिबे को 

सीख्यो सब काम धन धाम को सुधारिबे को ,
सीख्यो अभिराम बाम राखत हजूर मैँ ।
सीख्यो सरजाम गढ़ कोर किला ढाहिबे को ,
सीख्यो समसेर तीर डारे अरि ऊर मैँ ।
सीख्यो जँत्र मँत्र तँत्र ज्योतिष पुरान सबै ,
और कबिताई अन्त सकल सहूर मैँ ।
कहैँ कृपाराम सब सीखबो न काम एक ,
बोलिबो न सीख्यो सब सीख्यो गयो धूर मैँ ।

कृपाराम का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।

लोचन चपल कटाच्छ सर

लोचन चपल कटाच्छ सर, अनियारे विषपूरि.
मन मृग बेधें मुनिन के,जगजन सहत बिसूरि.

आजु सवारे हौं गई,नंदलाल हित ताल.
कुमुद कुमुदनी के भटू निरखे औरे हाल.

पति आयो परदेस तें,ऋतु बसंत को मानि.
झमकि झमकि निज महल में,टहलैं करै सुरानि.

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