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गिरिजादत्त शुक्ल ‘गिरिश’ की रचनाएँ

मैं न बनूँगा दादा जैसा

क्या कहती है माँ, दादा के
जितना बड़ा कभी हूँगा!
जो हो अपने को, उन जैसा
कभी न होने मैं दूँगा!
नहीं खेलते कभी खिलौने,
कलम चलाते रहते हैं!
क्या रखा है इन खेलों में,
हँसी उड़ाके कहते हैं!
और बता दो मेरी अम्माँ,
मुझे गोद लेगी कैसे!
सच कहता हूँ मैं न बनूँगा,
दादा हैं मेरे जैसे!

भारत कितना प्यारा है

यहीं हिमालय-सा पहाड़ है, यहीं गंग की धारा है,
जमुना लहराती है सुंदर, भारत कितना प्यारा है!
फल-फूलों से भरी भूमि है खेतों में हरियाली है,
आमों की डालों पर बैठी गाती कोयल काली है!
बच्चो! माँ ने पाल पोसकर तुमको बड़ा बनाया है,
लेकिन यह मत भूलो तुमने अन्न कहाँ का खाया है!
तुमने पानी पिया कहाँ का, खेले मिट्टी में किसकी?
पले हवा में किसकी बोलो, बच्चो! प्यारे भारत की!

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