Skip to content

चंद्रपाल सिंह यादव ‘मयंक’की रचनाएँ

जादूगर अलबेला

छू, काली कलकत्ते वाली!
तेरा वचन न जाए खाली।
मैं हूँ जादूगर अलबेला,
असली भानमती का चेला।
सीधा बंगाले से आया,
जहाँ-जहाँ जादू दिखलाया।
सबसे नामवरी है पाई,
उँगली दाँतों-तले दबाई।
जिसने देखा खेल निराला,
जादूगर बंगाले वाला,
जमकर खूब बजाई ताली!

वह ही मंत्र-मुग्ध हो जाता,
पैसा नहीं गाँठ से जाता।
चाहूँ तिल का ताड़ बना दूँ,
रुपयों का अंबार लगा दूँ।
अगर कहो, तो आसमान पर,
तुमको धरती से पहुँचा दूँ।
ऐसे-ऐसे मंतर जानूँ,
दुख-संकट छू-मंतर कर दूँ,
बने कबूतर, बकरी काली।

चिड़िया रानी

चिड़िया रानी आओ ना,
अपना गीत सुनाओ ना,
मैं तो खाता हलवा-पूड़ी
तुम भी आकर खाओ ना।

चूहे राजा, बिल्ली मौसी

चूहे राजा हैं शैतान
चलते हरदम सीना तान,
इसीलिए तो बिल्ली मौसी
खींचा करती उनके कान!

कलकत्ते की गाड़ी

कलकत्ते से गाड़ी आई,
टाफी-बिस्कुट, केले लाई,
गाड़ी बोली ई-ई-ई
आहा, उसने सीटी दी।

मिस्टर पाल

मिस्टर पाल, मिस्टर पाल,
गए खेलने को फुटबाल।
नाटे, मोटे मिस्टर पाल,
उस दिन दिखला गए कमाल।
मारी शाट् उड़ा फुटबाल,
खुद भी गिरे उछलकर पाल।

Leave a Reply

Your email address will not be published.