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जार को बिचार कहा गनिका को लाज कहा

जार को बिचार कहा गनिका को लाज कहा ,
गदहा को पान कहा आँधरे को आरसी ।
निगुनी को गुन कहा दान कहा दारिदी को ,
सेवा कहा सूम को अरँडन की डार सी ।
मदपी की सुचि कहा साँच कहा लम्पट को,
नीच को बचन कहा स्यार की पुकार सी ।
टोडर सुकवि ऎसे हठी ते न टारे टरे ,
भावै कहो सूधी बात भावै कहो फारसी ।

टोडर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।

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