Skip to content

क़ामयाबी

‘हम होंगे क़ामयाब एक दिन’
यह ’एक दिन’
आशा के आकाश में टंगा
वह छलावा है
जिससे ठगे जा रहे हैं हम
हर बार, हर दिन

क़ामयाब उछालते हैं
यह नारा
और हमें
दिखलाते हैं सब्ज़बाग़
कामयाब होने का किसी दिन

क़ामयाबी भविष्य में नहीं
इसी वक़्त है
और है, इसी दिन

शब्द

कहने को
शब्द नहीं
यूँ ही नहीं
गढ़ा होगा मुहावरा

सचमुच
कुछ ऎसा होता है
जो शब्दों से कहने में
छूटता है

जब भी पाते हैं
कुछ ऎसा है
जो निःशब्द है
उसे शब्दों में कितना ही कहो
अनुभव में आता यही
वह छूट गया
जिसे कहने को
गढ़े थे शब्द

क़िताबें

कमरे में रखीं
क़िताबें
कुछ मित्रों की हैं
कुछ हैं पितरों की
आश्वस्त होता हूँ
मेरे पास
मित्र भी हैं
और हैं पितृ भी

जब चाहो
किसी को भी उठा लो
साथ रहो, सीखो, बातें करो

क़िताबों के मौन शब्द
उतना ही बोलते हैं
जितनी गूँज है
उनकी हमारे भीतर
मित्र भी साथ हैं इसी तरह
इसी तरह गूँजते हैं पितृ

ऊँचाई का तल

थोड़ा-थोड़ा
सब होना
क्या होना है?
कुछ भी तो नहीं
यूँ ही, बस, जी लेना है

गहरा जितना गया
वही उतना ऊँचा हुआ
सतह पर रहकर
किसी ने
कोई तल नहीं छुआ

गहरे और गहरे में
कोई हल है
वहीं कहीं
शायद
ऊँचाई का तल है

सँयुक्त

परस्पर विपरीत
संयुक्त है

रात के
कंधे पर सुबह
सुख के पीछे दुःख
फूल के साथ काँटे
मृत्यु से
नहीं बचाए रखा जा सकता जीवन

प्रेम-घृणा
सत्य-असत्य
ज्ञात-अज्ञात
मंगल-अमंगल
सेवा-शत्रुता
देव-दानव
किसी भी एक को बचाकर
नहीं बचाया जा सकता दूसरे को

प्रकाश की
परिधि
अंधेरे का घेरा है
जो भी है परस्पर
संयुक्त है
संयुक्त के सन्तुलन से
सधता है जीवन

Leave a Reply

Your email address will not be published.