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पंख जो होते

एक चिड़िया के बच्चे चार
उड़ गए देखो पंख पसार,
रस्ते में जो भूख लगी
उतरे वे सब बीच बजार।

बीच बजार पड़े दाने,
लगे तुरत वे उनको खाने,
आया तब तक एक शिकारी
उनको बंदी हाय, बनाने।

इतने में माँ चिड़िया आई,
दिया शिकारी उसे दिखाई,
झट उसने बच्चों को रोका
उड़ी संग ले उनको भाई!

रहा शिकारी मलता हाथ
ताक रहा था वह आकाश,
सोच रहा था अपने मन में
‘पंख मेरे भी होते काश!

-साभार: नंदन, मई 2002, 36

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