Skip to content

रंग निराला रोटी का

पंडित जी ने खाई रोटी
उनकी बड़ी हो गई चोटी!
लालाजी ने खाई रोटी
उनकी तोंद हो गई मोटी!
बाबूजी ने खाई रोटी
उनकी कलम हो गई छोटी!
साधू जी ने खाई रोटी
उनकी चंपत हुई लंगोटी!
रोटी का है रंग निराला
बाबू, साधू, पंडित, लाला

सागर दादा

सागर दादा, सागर दादा,
नदियों झीलों के परदादा।
तुम नदियों को पास बुलाते,
ले गोदी में उन्हें खिलाते।
झीलों पर भी स्नेह तुम्हारा,
हर तालाब तुम्हें है प्यारा।

मेघ तुम्हारे नौकर-चाकर,
वे पानी दे जाते लाकर।
साँस भरी तो ज्वार उठाया,
साँस निकाली भाटा आया।
तुम सबसे हिल-मिल बसते हो,
लहरों में खिल-खिल हँसते हो!

हमारा संसार

ता-री, री-री, ता-रा, रा-रा,
नन्हा-सा संसार हमारा!
नन्हे अपने खेल-खिलौने,
हाथी ऊँट सभी हैं बौने।
नन्हे अपने मंदिर-मस्जिद,
नन्हा-सा अपना गुरुद्वारा!
ता-री, री-री, ता-रा, रा-रा!

अमर हमारी वानर सेना,
अन्यायी का करे चबेना।
हम में छोटा बड़ा न कोई,
अमर हमारा भाई-चारा!
ता-री, री-री, ता-रा, रा-रा!

आँधी आए चाहे पानी,
याद नहीं आएगी नानी।
चमकाएँगे आसमान में,
भारत माँ का भाग्य सितारा!
ता-री, री-री, ता-रा, रा-रा!

-साभार: पराग, जनवरी, 1978

Leave a Reply

Your email address will not be published.