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लक्ष्मी खन्ना सुमन की रचनाएँ

मोर 

घटा देख मस्ताना मोर
खुश होता दीवाना मोर

राजा-सा सिर मुकुट सजा
लगता बहुत सुहाना मोर

सिर पर कृष्ण लगाते पंख
उनका मीत पुराना मोर

सकुचाते क्यों पैरों पर
तन पर क्या शरमाना मोर

उलट रूप से स्वर तेरा
गीत न ऊँचा गाना मोर

नाच ‘सुमन’-सा पंख उठा
मत कर कोई बहाना मोर

लड्डू

सुंदर गोल-मटोले लड्डू
अजी स्वाद के डोले लड्डू

ठस-ठस डब्बों में भर-भरकर
भैया जी ने तौले लड्डू

मजे-मजे से खाए दादी
ताजा-ताजा, पोले लड्डू

किशमिश, पिस्ते, बादामों के
बड़े-बड़े हैं गोले लड्डू

बरफी, पेड़ों से सस्ते हैं
मोतीचूर मझोले लड्डू

पूछा, क्या खाओगे बच्चों,
खुश-खुश सब ही बोले लड्डू

चम-चम वरकों में सज धजकर
‘सुमन’ लगें बड़बोले लड्डू

जै कन्हैया जी की

जै कन्हैया जी की
पूड़ी खाओ घी की

भाजी बहुत करारी
खत्म हुई है सारी

अब अचार से खाओ
वरना मौज मनाओ

रीता ठंडा पानी
गुस्सा करती नानी

हलवा नहीं बनाया
हमको भोज न भाया

नानी को फुसलाओ
पैसे उससे पाओ

मिलकर मौज मनाएँ
चाट पकौड़ी खाएँ

मक्खी 

लहरा अपने ‘पर’ मक्खी
उड़ती इधर-उधर मक्खी

हाथ उड़ाते जब उसको
धुनती अपना सर मक्खी

छूट गया जब मीठा तो
हाथ मले उड़कर मक्खी

कानों पास सुनाती है
भिन-भिन अपना स्वर मक्खी

जिस बच्चे का घर गंदा
देती उसको ज्वर मक्खी

हो खाना या हो कूड़ा
कहती खुला न धर मक्खी

‘सुमन’ बहारें क्या उसको
पेट रही बस भर मक्खी

मेरे जूते

स्कूल चलूँ जब, ये भी जाते
दोनों मुँह चमकाए
जुड़वाँ भाई जूते चलते
तालु जीभ दबाए

पैरों में डल साफ सड़क पर
बड़ी शान से चलते
पर कीचड़ से बच-बच निकलें
फिर भी उसमें सनते

कीचड़-धूल सने जब आए
सारा घर घबराए
इन जूतों को बहार रक्खो
मम्मी डांट लगाए

पालिश भी करता मैं इनकी
करता खूब सफाई
उधड़े जब आगे-पीछे से
मोची करे सिलाई

दौड़-दौड़ फुटबाल खेलता
मैं इनके बलबूते
बहुत ध्यान रखते पैरों का
मेरे अछे जूते

मूँगफली 

जाड़ों की येह मेवा ठहरी
बिकती गली-गली
बादामों की ‘मौसी’ ठहरी
खस्ता मूँगफली

होले-होले कड़-कड़ बोले
जब वह मुखड़ा खोले
खाई जिसने इक, वह खाता
सारी होले-होले

कम दामों पर मिलती है यह
लो जेबों में डालो
एक-एक कर खाते जाओ
छिलके मगर सँभालो

हरे नमक वाले चटनी की
साथ मिले जब पुड़िया
अंगुल इक से चाटोगे तो
स्वाद लगेगा बढ़िया

गर्मा-गर्म कहाड़ी की ही
मैं लेकर घर आता
दीदी-मम्मी सबको देता
बाँट-बाँट कर खाता

मीत गधे

क्यों गुमसुम हो मीत गधे
गाओ मीठे गीत गधे

हो कुम्हार या हो धोबी
लो सबका मन जीत गधे

देख दुल्लत्ती को तेरी
सिंह हुआ भयभीत गधे

शिकन नहीं यह भूसा भी
है तुमको नवनीत गधे

गर्मी-सर्दी सबमें ही
छेड़ रहे संगीत गधे

क्या कलियाँ क्या ‘सुमन’ तुम्हें
हरी घास सुख नीत गधे

केले 

लो गुच्छे के गुच्छे केले
रसगुल्ले-से मीठे केले

लो लो चित्तीदार मुलायम
चीनी भरे बतासे केले

इधर-उधर मत फेंकों छिलके
फिसला वरन् गिराते केले

बच्चों की खातिर खुद पकते
हरी छाल के कच्चे केले

दादा-दादी, नाना-नानी
सबको अच्छे लगते केले

सूँड़ उठा दे बड़ी सलामी
जब हाथी को मिलते केले

ठेले से ले भागा बंदर
छील-छीलकर खाए केले

‘सुमन’ नहीं हर मौसम खिलते
पर हर मौसम मिलते केले

आइसक्रीम

पापा लाए आइसक्रीम
हमें सुहाए आइसक्रीम

ठंडी-ठंडी, मीठी-मीठी
पिघली जाए आइसक्रीम

गर्मी-सर्दी हर मौसम में
सबको भाए आइसक्रीम

‘चॉकबार’ , ‘पिस्ता’ या कप लूँ
समझ न आए आइसक्रीम

दीदी कहती ‘टूटी-फ्रूटी’
दादी खाए आइसक्रीम

पापा-मम्मी कुल्फी खाते
मगर रिझाए आइसक्रीम

‘सुमन’ सरीखे रंगो वाली
मन महकाए आइसक्रीम

चिड़िया 

मिल-जुलकर बतियातीं चिड़ियाँ
सुख-दुख हाल बतातीं चिड़ियाँ

लड़ती-भिड़ती, उड़-उड़ बचतीं
पर दाना चुग जाती चिड़ियाँ

एक साथ उड़, इक दम मुड़तीं
करतब खूब दिखातीं चिड़ियाँ

नर्म-मुलायम नया घोंसला
मिल-जुल खूब बनतीं चिड़ियाँ

बच्चो को चुन भुनगे दाने
सुन चूँ-चूँ खिलवातीं चिड़ियाँ

जरा पास जो इनके जाऊँ
जाने क्यों उड़ जाती चिड़ियाँ

‘सुमन’ सरीखे कोमल बच्चे
उड़ना उन्हे सिखाती चिड़ियाँ

चीनी

मीठी शक्कर चीनी
खाई छुपकर चीनी

रोटी मक्खन वाली
उसके ऊपर चीनी

पहले मिर्ची खाओ
फिर मुट्ठी-भर चीनी

मौका मिला चबाओ
कचर-कचर कर चीनी

खाओ तेज दवाई
फिर चम्मच-भर चीनी

ऊपर कड़क जलेबी
भीतर-भीतर चीनी

रसगुल्ला मुँह डाला
सरकी सर-सर चीनी

चम-चम हीरे-मोती
कितनी सुंदर चीनी

बिल्ली म्याऊँ-म्याऊँ

पूछ-पूछकर आती भीतर
‘मैं आऊँ मैं आऊँ’
क्या कसूर है चूहो, पूछे
बिल्ली ‘म्याऊँ-म्याऊँ’

मुझे हुई बदहजमी ऐसी
मांस नहीं है खाना
कहे डॉक्टर सिर्फ़ दूध से
मुझको काम चलाना

आओ-आओ प्यार तुम्हें दूँ
जी भरकर सहलाऊँ
अब मजबूरी में भी प्यारों
तुमको कभी न खाऊँ

बोले चूहे, ‘बिल्ली मौसी’
मत हमको बहकाओ
दूध मलाई तब खाओ जब
चूहे पकड़ न पाओ

खूब पता है काम तुम्हारा
स्वाँग तुम्हारा जानें
दाँत तेज नाखून कटीले
हैं जाने पहचाने

राम भरोस

मोटे-ताजे रामभरोसे
खा जाते दस-बीस समोसे

फिर वे खाते गर्म जलेबी
मम्मी सबके पैसे देगी

चादर ताने फिर सो जाते
पापा कानों पकड़ उठाते

चलो साइकिल अभी उठाओ
जाओ झटपट सब्जी लाओ

करो काम कुछ करो पड़ाई
वरना होगी बहुत हँसाई

पहले अपना वजन घटाओ
ज्यादा खेलो, थोड़ा खाओ

चन्दा मामा 

किसे देखकर चंदामामा
रहते हो मुस्काते
किसकी खातिर रूप अनोखा
रोज़ बदलकर आते

मैं ऊपर से देखूँ सुंदर
बच्चे भोले-भाले
मीठे बोल सुनूँ मैं उनके
देखूँ खेल निराले

बच्चों को कुछ और रिझाने
बादल में छुप जाऊँ
छुपन-छुपाई खेलूँ उनसे
मन सबका हर्षाऊँ

पतला, मोटा, गोल बना मैं
धावल दूध बरसाता
देख मुझे मुस्काते बच्चे
तो मैं भी मुस्काता

रसगुल्ला

छुटका-मुटका, गोरा-गोरा रसगुल्ला
मीठा-मीठा, रोला-पोला रसगुल्ला

‘सूखे-सूखे लड्डू-पेड़े औ’ बरफी
छेनेवाला रस का डोला रसगुल्ला

गर्म जलेबी, गर्म है गाजर का हलुवा
पर ‘मैं’ ठंडा-ठंडा बोला रसगुल्ला

दीवाली में गूँजिया कि तो धूम मची
पर मम्मी ने साथ परोसा रसगुल्ला

सी-सी मिर्ची वाली चाट लगी अच्छी
पर फिर खाया सबने मोटा रसगुल्ला

आइसक्रीम खिलाई सबको पापा ने
पर दादी ने माँगा पोला रसगुल्ला

बूढ़ों को बच्चो को अच्छा लगें ‘सुमन’
खुश-खुश खाएँ छोरी छोरा रसगुल्ला

कोयल

मीठा गाना गाती कोयल
बन-बन रस छलकाती कोयल

कूह-कूहु के सुंदर स्वर में
मीठी तान सुनाती कोयल

काली-काली देखी भाली
उड़-उड़ आती-जाती कोयल

कौवे के घर पाले बच्चे
उसको खूब छकाती कोयल

मन मतवाली बड़ी निराली
उपवन को चहकाती कोयल

बौर खिले जब आम बगीचे
डाल-डाल हर्षाती कोयल

आओ मिलकर खेलें-गाएँ
सखी को ‘सुमन’ बुलाती कोयल

मीठा गाना गाती कोयल
बन-बन रस छलकाती कोयल

कूह-कूहु के सुंदर स्वर में
मीठी तान सुनाती कोयल

काली-काली देखी भाली
उड़-उड़ आती-जाती कोयल

कौवे के घर पाले बच्चे
उसको खूब छकाती कोयल

मन मतवाली बड़ी निराली
उपवन को चहकाती कोयल

बौर खिले जब आम बगीचे
डाल-डाल हर्षाती कोयल

आओ मिलकर खेलें-गाएँ
सखी को ‘सुमन’ बुलाती कोयल

मम्मी मेरी सुंदर

घर की रानी बड़ी सयानी
अपनी बात चलाए
रोज सवेरे उठकर मम्मी
गुस्सा-प्यार जताए

बढ़िया केक मिठाई जाने
रक्खे कहाँ छुपाकर
थोड़ी-थोड़ी ही खानी है
वह कहती मुस्काकर

काम सभी का करतीं लेकिन
थोड़ा रौब जमातीं
मेरी गलती पर वह मुझको
धीरज से समझातीं

मैले कपड़ो को जब धोतीं
कहतीं यह झल्लाकर
कैसे कीचड़ मिट्टी आते
ये जनाब लगवाकर

वह मेरा उत्साह बढ़ातीं
मुझे पढ़ातीं जगकर
और सफलता पर इतरतीं
मम्मी मेरी सुंदर

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