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ललित किशोरी की रचनाएँ

नैन चकोर, मुखचंद कौं वारि डारौं

नैन चकोर, मुखचंद ँकौं वारि डारौं,
वारि डारौं चित्तहिं मनमोहन चितचोर पै।

प्रानहूँ को वारि डारौं हँसन दसन लाल,
हेरन कुटिलता और लोचन की कोर पैर।

वारि डारौं मनहिं सुअंग अंग स्यामा-स्याम,
महल मिलाप रस रास की झकोर पै।

अतिहिं सुघर बर सोहत त्रिभंगी-लाल,
सरबस वारौं वा ग्रीवा की मरोर पै॥

लजीले, सकुचीले, सरसीले, सुरमीले से

लजीले, सकुचीले, सरसीले, सुरमीले से,
कटीले और कुटीले, चटकीले मटकीले हैं।

रूप के लुभीले, कजरीले उनमीले, बर-
छीले, तिरछीले से फँसीले औ गँसीले हैं॥

‘ललित किसोरी’ झमकीले, गरबीले मानौं,
अति ही रसीले, चमकीले औ रँगीले हैं।

छबीले, छकीले, अरु नीले से, नसीले आली,
नैना नंदलाल के नचीले और नुकीले हैं॥

यमुना पुलिन कुंज गह्वर की

यमुना पुलिन कुंज गह्वर की, कोकिल ह्वै द्रुम कूक मचाऊँ।
पद-पंकज प्रिय लाल मधुप ह्वै, मधुरे-मधुरे गुंज सुनाऊँ॥

कूकुर ह्वै ब्रज बीथिन डोलौं, बचे सीथ रसिकन के पाऊँ।
‘ललित किसोरी’ आस यही मम, ब्रज रज तज छिन अनत न जाऊँ॥

मोहन के अति नैन नुकीले 

मोहन के अति नैन नुकीले।
निकसे जात पार हियरा, के, निरखत निपट गँसीले॥

ना जानौं बेधन अनियन की, तीन लोक तें न्यारी।
ज्यों ज्यों छिदत मिठास हिये में, सुख लागत सुकुमारी॥

जबसों जमुना कूल बिलोक्यो, सब निसि नींद न आवै।
उठत मरोर बंक चितवनियाँ उर उतपात मचावै॥

‘ललित किसोरी’ आज मिलै, जहवाँ कुलकानि बिचारौं।
आग लगै यह लाज निगोडी, दृग भरि स्याम निहारौं॥

मन पछितैहौ भजन बिनु कीने 

मन पछितैहौ भजन बिनु कीने।
धन-दौलत कछु काम न आवै, कमल-नयन-गुन चित बिनु दीने॥१॥

देखतकौ यह जगत सँगाती, तात-मात अपने सुख भीने।
ललितकिसोरी दुंद मिटै ना, आनँदकंद बिना हरि चीने॥२॥

मुसाफिर रैन रही थोरी

मुसाफिर रैन रही थोरी।
जागु-जागु सुख-नींद त्यागि दै, होत बस्तु की चोरी॥

मंजिल दूरि भूरि भवसागर, मान क्रूर मति मोरी।
ललित किसोरी हाकिम सों डरु, करै जोर बरजोरी॥

अब का सोवै सखि 

अब का सोवै सखि। जाग जाग।
रैन बिहात जातरस-बिरियाँ, चोलीके बँद ताग ताग॥

जोबन उमँग सकल कर बौरी आन-कान सब त्याग त्याग।
ललितकिसोरी लूट अनँदवा, पीतमके गर लाग लाग॥

साधो, ऐसिइ आयु सिरानी 

साधो, ऐसिइ आयु सिरानी ।
लगत न लाज लजावत संतन, करतहिं दंभ छदंभ बिहानी॥१॥

माला हाथ ललित तुलसी गर, अँग-अँग भगवत छाप सुहानी।
बाहिर परम बिराग भजनरत, अंतस मति पर-जुबति नसानी॥२॥

सुखसों ग्यान-ध्यान बरनत बहु, कानन रति नित बिषय कहानी।
ललितकिसोरी कृपा करौ हरि, हरि संताप सुहृद, सुखदानी॥३॥

लाभ कहा कंचन तन पाये 

लाभ कहा कंचन तन पाये।
भजे न मृदुल कमल-दल-लोचन, दुख-मोचन हरि हरखि न ध्याये॥१॥

तन-मन-धन अरपन ना कीन्हों, प्रान प्रानपति गुननि न गाये।
जोबन, धन कलधौत-धाम सब, मिथ्या आयु गँवाय गँवाये॥२॥

गुरुजन गरब, बिमुख-रँग-राते डोलत सुख संपति बिसराये।
ललितकिसोरी मिटै ताप ना, बिनु दृढ़ चिंतामनि उर लाये॥३॥

रे निरमोही, छबि दरसाय जा

रे निरमोही, छबि दरसाय जा।
कान चातकी स्याम बिरह घन, मुरली मधुर सुनाय जा।
ललितकिसोरी नैन चकोरन, दुति मुखचंद दिखाय जा॥
भयौ चहत यह प्रान बटोही, रुसे पथिक मनाय जा॥

दुनिया के परपंचों में हम

दुनिया के परपंचों में हम मजा नहीं कछु पाया जी।
भाई-बंधु, पिता-माता पति सबसों चित अकुलाया जी॥

छोड़-छाड़ घर, गाँव-नाँव कुल, यही पंथ मन भाया जी।
ललितकिसोरी आनँदघन सों अब हठि नेह लगाया जी॥

क्या करना है संपति-संतति, मिथ्या सब जग माया है।
शाल-दुशाले, हीरा-मोतीमें मन क्यों भरमाया है॥

माता-पिता पती-बंधु सब गोरखधंध बनाया है।
ललितकिसोरी आनँदघन हरि हिरदै कमल बसाया है॥

बन-बन फिरना बिहतर हमको रतन भवन नहिं भावै है।
लतातरे पड़ रहनेमें सुख नाहिन सेज सुहावै है॥

सोना कर धरि सीस भला अति तकिया ख्याल न आवै है।
ललितकिसोरी नाम हरीका जपि-जपि मन सचुपावै है॥

तजि दीनीं जब दुनिया-दौलत फिर कोईके घर जाना क्या।
कंद मूल-फल पाय रहैं अब खट्टा-मीठा खाना क्या॥

छिनमें साही बकसैं हमको मोतीमाल खजाना क्या।
ललितकिसोरी रुप हमारा जानै नाँ तहँ आना क्या॥

अष्टकसिद्धि नवनिद्धि हमारी मुट्ठीमें हरदम रहतीं।
नहीं जवाहिर, सोना-चाँदी, त्रिभुवनकी संपति चहतीं॥

भावै ना दुनियाकी बातैं दिलवरकी चरचा सहती।
ललितकिसोरी पार लगावैं मायाकी सरिता बहती॥

गौर-स्याम बदनारबिंदपर जिसको बीर मचलते देखा।
नैन बान, मुसक्यान संग फँस फिर नहिं नेक सँभलते देखा॥

ललितकिसोरी जुगुल इश्कुमें बहुतोंका घर घलते देखा।
डूबा प्रेमसिंधुका कोई हमने नहीं उछलते देखा॥

देखौ री, यह नंदका छोरा बरछी मारे जाता है।
बरछी-सी तिरछी चितवनकी पैनी छुरी चलाता है॥

हमको घायल देख बेदरदी मंद मंद मुसकाता है।
ललितकिसोरी जखम जिगरपर नौनपुरी बुरकाता है॥

मुरकि मुरकि चितवनि चित चोरै 

मुरकि मुरकि चितवनि चित चोरै।
ठुमकि चलन हेरि दै बोलनि, पुलकनि नंदकिसोरै॥

सहरावनि गैयान चौंकनी, थपकन कर बनमाली।
गुहरावनि लै नाम सबनकौ धौरी धूमर आली॥

चुचकारनि चट झपटि बिचुकनी, हूँ हूँ रहौ रँगीली।
नियरावनि चोरवनि मगहीमें, झुकि बछियान छबीली॥

फिरकैयाँ लै निरत अलापन, बिच-बिच तान रसीली।
चितवनि ठिटुकि उढ़कि गैयासों, सीटी भरनि रसीली॥

चाँपन अधर सैन दै चंचल, नैनन मेलि कटारी।
जोरन कर हा हा करि मोहन, मुसकन ऐंड़ि बिहारी॥

बाँह उठाय उचकि पग टेरनि, इतै कितै हौ स्यामा।
निकसी नई आज तैं बनरिहु, मोरे ढिग अभिरामा॥

हरुवे खोर साँकरी जुवतिन, कहत गुलाम तिहारौ।
मिलियौ रैन मालती कुंजै तहँ पिक अरुन निहारौ॥

काहू झटक चीर लकुटीतें, काहू पगै दबावै।
काहू अंग परसि काहू तन, नैनन कोर नचावै॥

उरझत पट नूपुरसों पाछे झुकि झुकि कै सुरझावै।
ललितकिसोरी ललित लाड़िली दृग संकेत बतावै॥

मैं तुव पदतर रेनु रसीली 

मैं तुव पदतर रेनु रसीली।
तेरी सरवरि कौन करि सकै प्रेममई मूरति गरबीली॥

कोटिहु प्रान वारनें करिकै उरिनि न तोसों प्रीति रँगीली।
अपनी प्रेम छटा, करुना करि दीजै दान दयाल छबीली॥

का मुख करौं बड़ाई राई, ललितकिसोरी केलि हठीली।
प्रीति दसांस सतांस तिहारी, मोमें नाहिन नेह नसीली॥

कमलमुख खोलौ आजु पियारे

कमलमुख खोलौ आजु पियारे।

बिगसित कमल कुमोदिनि मुकलित, अलिगन मत्त गुँजारे।
प्राची दिसि रबि थार आरती लिये ठनी निवछारे॥

ललितकिसोरी सुनि यह बानी कुरकुट बिसद पुकारे।
रजनी राज बिदा माँगै बलि निरखौ पलक उघारे॥

अब कुलकानि तजे ही बनैगी

अब कुलकानि तजे ही बनैगी।
पलक ओट सत कोटि कलप सम, बिछुरत हिये कटारि हनैगी॥१॥

ललितकिसोरी अंत एक दिन, तजिबेई जब तान तनैगी।
फिर का सोच देहु तिल अंजुलि, लेहु अंक रसकेलि छनैगी॥२॥

लटक लटक मनमोहन आवनि

लटक लटक मनमोहन आवनि।
झूमि झूमि पग धरत भूमिपर गति मातंग लजावनि॥

गोखुर-रेनुअंग अँग मंडित उपमा दृग सकुचावनि।
नव घनपै मनु झीन बदरिया, सोभा-रस बरसावनि॥

बिगसति मुखलौं कानि दामिनी दसनावलि दमकावनि।
बीच-बीच घनघोर माधुरी, मधुरी बेन बजावनि॥

मुकतमाल उर लसी छबीली, मनु बग-पाँति सुहावन।
बिंदु गुलाल गुपाल-कपोलन, इंद्रबधू छबि छावनि॥

रुनन झुनन किंकिनि धुनि मानों हंसनिकी चुहचावनि।
बिलुलित अलक धूरि धूसरतन, गमन लोटि भुव आवनि॥

जँघिया लसनि कनक कछनी पै, पटुका ऐंचि बँधावनि।
पीताम्बर फहरानि मुकुतछबि, नटवर बेस बनावनि॥

हलनि बुलाक अधर तिरछौंही बीरी सुरँग रचावनि।
ललितकिसोरी फूल-झरनियाँ मधुर-मधुर बतरावनि॥

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