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विद्याभूषण ‘विभू’की रचनाएँ

घूम हाथी, झूम हाथी 

हाथी झूम-झूम-झूम,
हाथी घूम-घूम-घूम!
राजा झूमें रानी झूमें, झूमें राजकुमार,
घोड़े झूमें फौजें झूमें, झूमें सब दरबार!
झूम झूम घूम हाथी, घूम झूम-झूम हाथी!
हाथी झूम-झूम-झूम,
हाथी घूम-घूम-घूम!
धरती घूमें, बादल घूमें सूरज चाँद सितारे!
चुनिया घूमें, मुनिया घूमें, घूमें राज दुलारे!
झूम-झूम घूम हाथी, घूम झूम-झूम हाथी!
हाथी झूम-झूम-झूम!
हाथी घूम-घूम-घूम!!
राज महल में बाँदी झूमें, पनघट पर पनिहारी,
पीलवान का अंकुश घूमें, सोने की अम्बारी!
झूम झूम, घूम हाथी, घूम झूम-झूम हाथी!
हाथी झूम-झूम-झूम!
हाथी घूम-घूम-घूम!

-साभार: बालसखा, अक्तूबर 1940, 424

तुन तुन तुन 

तुन-तुन तूँ-तूँ तुन-तुन-तुन,
जल्दी-जल्दी इसको धुन!

तकिया तोशक और रजाई,
भरना मुझको सुन ले भाई!

भरूँ गुदगुदा इससे गद्दा,
जिस पर लेटें बड़के दद्दा!

रुई हुई
छुई-मुई
बड़ी नरम
लेटे हम
धुन-धुन-धुन
तुन-तुन-तुन
आजा भैया बाजा सुन,
तुन-तुन तूँ-तूँ तुन-तुन।

आँधी

सर-सर, सर-सर करती आई,
भर-भर, भर-भर करती आई,
हर-हर, हर-हर करती आई,
मर-मर, मर-मर करती आई,
आँधी-आँधी, आँधी-आँधी!

आँधी-आँधी आई धूल,
चारों ओर उड़ाई धूल,
आसमान पर छाई धूल,
काली-पीली लाई धूल,
आँधी आई, आँधी आई,
अम्माँ ने चट आग बुझाई,
बड़े जोर की आँधी आई,
कुछ भी देता नहीं दिखाई,
आँधी-आँधी, आँधी-आँधी!

चर-चर गिरी पेड़ की डाली,
नीचे से भागा बंगाली,
ओ हो उलटी बहती नाली,
उड़ता छप्पर, गिरती डाली,
आँधी-आँधी, आँधी-आँधी!

-साभार: ‘बबुआ’ विद्याभूषण ‘विभू’, 1949, 12-13

गेंदा

रंग निराला, गंध अनोखी
शोभा प्यारी-प्यारी,
गेंदा के हँसते ही सारी
हँस पड़ती फुलवारी!

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