Skip to content

विष्णुकांत पांडेय की रचनाएँ

सुनिए थानेदार

फोन उठाकर कुत्ता बोला-
सुनिए थानेदार,
घर में चोर घुसे हैं, बाहर
सोया पहरेदार!
मेरे मालिक डर के मारे,
छिप बैठे चुपचाप,
मुझको भी अब डर लगता है
जल्दी आएँ आप!

जरा पिला दो पानी

चींटी ने वह चाँटा मारा
गिरा उलटकर हाथी,
सरपट भागे गदहे-घोड़े
भागे सारे साथी।
धूल झाड़कर हाथी बोला-
‘माफ करो हे रानी-
अब न कभी लड़ने जाऊँगा
जरा पिला दो पानी।’

चुप होने के पैसे चार

अम्माँ से ले पैसे चार,
मुन्ना जी पहुँचे बाज़ार।
टाफी बिकती है किस भाव,
दे दो पैसे-मिला जवाब।
दो दो मुझको दो टाफी,
दो टाफी ही है काफी।
लौटे जब मुन्ना जी घर,
टाफी एक जीभ पर धर।
लगे सोचने मन ही मन,
आया अहा, मधुर सावन।
टाफी एक रोप दूँ आज,
बन जाएगा अपना काज।
रोज पड़ेगी जल की धार
कभी झमाझम, कभी फुहार।
हरियाली होगी अब ओर,
अंकुर निकलेगा पुरजोर।
घर में हो टाफी का पेड़,
मिला करेगी टाफी ढेर।
हुई कई दिन तक बरसात,
जमी न टाफी खटकी बात।
एक रोज हो गए निराश,
तब आए अम्माँ के पास।
अम्माँ हँसी, हँसे सब लोग,
मुन्ना जी ने रच दी ढोंग।
चुप होने के पैसे चार,
लेकर फिर दौड़े बाज़ार।

उल्टा अखबार

गदहे ने अखबार उलटकर
नजर एक दौड़ाई,
बोला-गाड़ी उलट गई है
गजब हो गया भाई।
बंदर हँसकर बोला-देखो,
उल्टा है अखबार,
इसीलिए उलटी दिखती है
सीधी मोटर कार!

Leave a Reply

Your email address will not be published.