Skip to content

बंदर का दरबार

बंदर राजा पान चबाए
बैठे हैं दरबार लगाए।
नीला सूट, बूट है काला,
सर पर पहने हैट निराला,
रेशम का रूमाल हाथ में,
टाई चुरा कहाँ से लाए।

भरी सभा में शान दिखाते,
नाड़ हिला आँखे मटकाते,
सिगरेट फूँक रहे हैं ऐसे
जैसे इंजन धूआँ उड़ाए।

खीं-खीं कर जब दाँत निपोरे,
मुँह से गिरे बदन पर डोरे,
मजा पान खाने का आया,
लाल पीक में खूब नहाए।

बिल्ली के मन में क्या आई,
दौड़ कहीं से शीशा लाई
बंदर जी के धरा सामने
अपनी छटा देख गुर्राए।

बैठे हैं दरबार लगाए,
बंदर राजा पान चबाए।

Leave a Reply

Your email address will not be published.