एक अमूर्त चित्र मुझे आकृष्ट कर रहा है।
एक अस्पष्ट दिशा मुझे खींच रही है ।
एक निश्चित भविष्य समकालीन अनिश्चय को जन्म दे रहा है ।
(या समकालीन अनिश्चय एक निश्चित भविष्य में ढल रहा है ?)
एक अनिश्चय मुझे निर्णायक बना रहा है ।
एक अगम्भीर हँसी मुझे रुला रही है ।

एक आत्यन्तिक दार्शनिकता मुझे हँसा रही है ।
एक अवश करने वाला प्यार मुझे चिन्तित कर रहा है ।
एक असमाप्त कथा मुझे जगा रही है ।
एक अधूरा विचार मुझे जिला रहा है ।
एक त्रासदी मुझे कुछ कहने से रोक रही है ।
एक सजग ज़िन्दगी मुझे सबसे कठिन चीज़ों पर सोचने के लिए मजबूर कर रही है ।
एक सरल राह मुझे सबसे कठिन यात्रा पर लिए जा रही है ।

भूलना नहीं है

यह अन्धेरा
कालिख़ की तरह
स्मृतियों पर छा जाना चाहता है ।
यह सपनों की ज़मीन को
बंजर बना देना चाहता है ।

यह उम्मीद के अंखुवों को
कुतर देना चाहता है ।
इसलिए जागते रहना है,
स्मृतियों की स्लेट को
पोंछते रहना है ।

भूलना नहीं है
मानवीय इच्छाओं को ।
भूलना नहीं है कि
सबसे बुनियादी ज़रूरतें क्या हैं और क्या हैं हमारे लिए
ग़ैरज़रूरी, जिन्हें लगातार
हमारे लिए सबसे ज़रूरी बताया जा रहा है ।

भूलना नहीं है कि
अभी भी है भूख और बदहाली,
अभी भी हैं लूट और सौदागरी और महाजनी
और जेल और फाँसी और कोड़े ।

भूलना नहीं है कि
ये सारी चीज़ें अगर हमेशा से नहीं रही हैं
तो हमेशा नहीं रहेंगी ।

भूलना नहीं है शब्दों के
वास्तविक अर्थों को
और यह कि अभी भी
कविता की ज़रूरत है
और अभी भी लड़ना उतना ही ज़रूरी है ।

हमें उस ज़मीन की निराई-गुड़ाई करनी है,
दीमकों से बचाना है
जहाँ अँकुराएँगी उम्मीदें
जहाँ सपने जागेंगे भोर होते ही,

स्मृतियाँ नई कल्पनाओं को पंख देंगी
प्रतिक्षाएँ फलीभूत होंगी
योजनाओं में और अन्धेरे की चादर फाड़कर
एकदम सामने आ खड़ी होगी
एक मुक्कमल नई दुनिया ।

शहीदों के लिए

ज़ि‍न्‍दगी लड़ती रहेगी, गाती रहेगी
नदियाँ बहती रहेंगी
कारवाँ चलता रहेगा, चलता रहेगा, बढ़ता रहेगा
मुक्ति की राह पर
छोड़कर साथियो, तुमको धरती की गोद में ।

खो गए तुम हवा बनकर वतन की हर साँस में
बिक चुकी इन वादियों में गन्‍ध बनकर घुल गए
भूख से लड़ते हुए बच्‍चों की घायल आस में
कर्ज़ में डूबी हुई फसलों की रंगत बन गए

ख्‍़वाबों के साथ तेरे चलता रहेगा…

हो गये कुर्बान जिस मिट्टी की ख़ातिर साथियो
सो रहो अब आज उस ममतामयी की गोद में
मुक्ति के दिन तक फ़िज़ाँ में खो चुकेंगे नाम तेरे
देश के हर नाम में ज़ि‍न्‍दा रहोगे साथियो

यादों के साथ तेरे चलता रहेगा…

जब कभी भी लौट कर इन राहों से गुज़रेंगे हम
जीत के सब गीत कई-कई बार हम फिर गाएँगे
खोज कैसे पाएँगे मिट्टी तुम्‍हारी साथियो
ज़र्रे-ज़र्रे को तुम्‍हारी ही समाधि पाएँगे

लेकर ये अरमाँ दिल में चलता रहेगा…

आँखों में हमारी नई दुनिया के ख़्‍वाब हैं 

दुनिया के हर सवाल के हम ही जवाब हैं
आँखों में हमारी नई दुनिया के ख़्‍वाब हैं ।

इन बाजुओं ने साथी ये दुनिया बनाई है
काटा है जंगलों को, बस्‍ती बसाई है
जांगर खटा के खेतों में फसलें उगाई हैं
सड़कें निकाली हैं, अटारी उठाई है
ये बाँध बनाए हैं, फ़ैक्‍टरी बनाई है
हम बेमिसाल हैं हम लाजवाब हैं
आँखों में हमारी नई दुनिया के ख़्‍वाब हैं ।

अब फिर नया संसार बनाना है हमें ही
नामों-निशाँ सितम का मिटाना है हमें ही
अब आग में से फूल खिलाना है हमें ही
फिर से अमन का गीत सुनाना है हमें ही
हम आने वाले कल के आफताबे-इन्‍क़लाब हैं
आँखों में हमारी नई दुनिया के ख्‍़वाब हैं ।

हक़ के लिए अब जंग छेड़ दो दोस्‍तो
जंग बन के फूल उगेगा दोस्‍तो
बच्‍चों की हँसी को ये खिलाएगा दोस्‍तो
प्‍यारे वतन को स्‍वर्ग बनाएगा दोस्‍तो
हम आने वाले कल की इक खुली क़िताब हैं
आँखों में हमारी नई दुनिया के ख्‍़वाब हैं ।