मत ग़ज़ब कर छोड़ दे ग़ुस्सा सजन
आ जुदाई ख़ूब नहीं मिल जा सजन.

बे-दिलों की उज़्र-ख़्वाही मान ले
जो कि होना था सो हो गुज़रा सजन.

तुम सिवा हम कूँ कहीं जागे नहीं
पस लड़ो मत हम सेती बेजा सजन.

मर गए ग़म सीं तुम्हारे हम पिया
कब तलक ये ख़ून-ए-ग़म खाना सजन.

जो लगे अब काटने इख़्लास के
क्या यही था प्यार का समरा सजन.

छोड़ तुम कूँ और किस सीं हम मिलें
कौन है दुनिया में कोई तुम सा सजन.

पाँव पड़ता हूँ तुम्हारे रहम को
बात मेरी मान ले हा हा सजन.

तंग रहना कब तलक गुंचे की तरह
फूल के मानिंद टुक खिल जा सजन.

‘आबरू’ कूँ खो के पछताओगे तुम
हम को लाज़िम है इता कहना सजन.

फिरते थे दश्त दश्त दिवाने किधर गए

फिरते थे दश्त दश्त दिवाने किधर गए
वे आशिक़ी के हाए ज़माने किधर गए.

मिज़ग़ाँ तो तेज़-तर हैं व लेकिन जिगर कहाँ
तरकश तो सब भरे हैं निशाने किधर गए.

कहते थे हम कूँ अब न मिलेंगे किसी के साथ
आशिक़ के दिल कूँ फिर के सताने किधर गए.

जाते रहे पे नाम बताया न कुछ मुझे
पूछूँ मैं किस तरह कि फ़ुलाने किधर गए.

मैं गुम हुआ जो इश्क़ की रह में तो क्या अजब
मजनून ओ कोह-कन से न जाने किधर गए.

प्यारे तुम्हारे प्यार कूँ किस की नज़र लगी
अँखियों सीं वे अँखियों के मिलाने किधर गए.

अब रू-ब-रू है यार नहीं बोलता सो क्यूँ
क़िस्से वो ‘आबरू’ के बनाने किधर गए.

रहता है अबरुवाँ पर हाथ अक्सर

रहता है अबरुवाँ पर हाथ अक्सर ला-वबाली का
हुनर सीखा है उस शमशीर-ज़न ने बेद-माली का.

हर इक जो उज़्व है सो मिसरा-ए-दिलचस्प है मौजूँ
मगर दीवान है ये हुस्न सर-ता-पा जमाली का.

नगीं की तरह दाग़-ए-रश्क सूँ काला हुआ लाला
लिया जब नाम गुलशन में तुम्हारे लब की लाली का.

रक़ीबाँ की हुआ ना-चीज़ बाताँ सुन के यूँ बद-ख़ू
वगरना जग में शोहरा था सनम की ख़ुश-ख़िसाली का.

हमारे हक़ में नादानी सूँ कहना ग़ैर का माना
गिला अब क्या करूँ उस शोख़ की मैं ख़ुर्द-साली का.

यही चर्चा है मजलिस में सजन की हर ज़बाँ ऊपर.
मेरा क़िस्सा गोया मज़मूँ हुआ है शेर हाली का.

तुम्हारा क़ुदरती है हुस्न आराइश की क्या हाजत
नहीं मोहताज ये बाग़-ए-सदा-सर-सब्ज़ माली का.

लगे है शीरीं उस को सारी अपनी उम्र की तलख़ी
मज़ा पाया है जिन आशिक़ नें तेरे सुन के गाली का.

मुबारक नाम तेरे ‘आबरू’ का क्यूँ न हो जग में
असर है यू तेरे दीदार की फ़र्ख़ुंदा-फ़ाली का.

तुम्हारा दिल अगर हम सीं फिरा है 

तुम्हारा दिल अगर हम सीं फिरा है
तो बेहतर है हमारा भी ख़ुदा है.

हमारी कुछ नहीं तक़सीर लेकिन
तुम्हीं कूँ सब कहेंगे बे-वफ़ा है.

हुए हो इस क़दर बे-ज़ार हम सीं
कहो हम नीं तुम्हारा क्या किया है.

किसू सीं मत मिलो माशूक़ हो कर
ग़लत है हम नीं तुम सीं कब कहा है.

वो झूठा है कहा है जिन नीं तुम से
मिलो जिस सीं तुम्हारा दिल मिला है.

उसे यूँ मना करना पहुँचता है
तुम्हारे साथ जिस का दिल लगा है.

फ़क़त इक दोस्ती है हम को तुम सीं
हमें यूँ मना करना कब रवा है.

फ़क़त इख़्लास में इता अकड़ना
सितम-गर बे-वफ़ा ये क्या अदा है.

मगर दीन-ए-मुरव्वत में तुम्हारे
यही कुछ दोस्त-दारी की जज़ा है.

तुम्हारी इक लहर लुत्फ़ ओ करम की
हमारे दर्द कूँ दिल के दवा है.

ग़रीबों की मोहब्बत की अगर क़द्र
अपस के दिल में बूझो तो भला है.

वगरना पीत आख़िर की हमारी
सुनो समझो के जान-ए-मुद्दआ है.

तुम्हारे साथ मैं क़दमों लगा हूँ
मुझे यूँ टाल देना कब बजा है.

फ़क़त सय्याद दिल ख़ूब-सूरती नईं
करम है मेहर-बानी है वफ़ा है.

अबस बे-दिल करो मत ‘आबरू’ को
मुसाफ़िर है शिकस्ता है गदा है.

उस ज़ुल्फ़-ए-जाँ कूँ सनम की बला कहो

उस ज़ुल्फ़-ए-जाँ कूँ सनम की बला कहो
अफ़आ कहो सियाह कहो अज़दहा कहो

क़ातिल निगाह कूँ पूछते क्या हो कि क्या कहो
ख़ंजर कहो कटार कहो नीमचा कहो

टुक वास्ते ख़ुदा के मेरा इज्ज़ जा कहो
बे-कस कहो ग़रीब कहो ख़ाक-ए-पा कहो

आशिक़ का दर्द-ए-हाल छुपाना नहीं दुरुस्त
परघट कहो पुकार कहो बर्मला कहो

इस तेग़-ज़न नीं दिल कूँ दिया है मेरे ख़िताब
बिस्मिल कहो शहीद कहो जाँ-फ़िदा कहो

शाह-ए-नजफ़ के नाम कूँ लूँ ‘आबरू‘ सीं सीख
हादी कहो इमाम कहो रह-नुमा कहो

यार रूठा है हम सीं मनता नईं 

यार रूठा है हम सीं मनता नईं
दिल की गर्मी सीं कुछ ऊ पहनता नईं.

तुझ को गहना पहना के मैं देखूँ
हैफ़ है ये बनाओ बनता नईं.

जिन नीं इस नौ-जवान को बरता
वो किसी और को बरतता नईं.

कोफ़त चेहरे पे शब की ज़ाहिर है
क्यूँके कहिए कि कुछ वो चुनता नईं.

शौक़ नईं मुझ कूँ कुछ मशीख़त का
जाल मकड़ी की तरह तनता नईं.

तेरे तन का ख़मीर और ही है
आब ओ गिल इस सफ़ा सीं सनता नईं.

जीव देना भी काम है लेकिन
‘आबरू’ बिन कोई करंता नईं.