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शिवचरण चौहानकी रचनाएँ

आ गया जाड़ा

खोलकर खिड़की किवाड़ा
आ गया जाड़ा!
दाँत पढ़ते हैं पहाड़ा
आ गया जाड़ा!

टोप कानों पर चढ़ा
सीने कसा स्वेटर,
अंग सारे ढके फिर भी
काँपते थर-थर।
ताल में आया सिंघाड़ा
भा गया जाड़ा!

दाँत उग आए-
लगा अब काटने पानी,
अब नहाने से बहुत
डरने लगी नानी।
पीटता आया नगाड़ा-
छा गया जाड़ा!

मेरे साथी रोबो प्यारे

थका बहुत हूँ आज काम से-
करवा लो कुछ काम हमारे!
मेरे साथी रोबो प्यारे!

बस्ते से कापियाँ निकालो,
प्रश्न गणित के हल कर डालो,
फिर आकर बैठो कुर्सी पर-
पियो संग में चाय हमारे!
मेरे साथी रोबो प्यारे!

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