शांत सुभाव करो मनवा, न जरो अविवेक के फंद में आकर |
ज्ञान विचार दया उर धारके, राम चितार तू चित्त लगाकर |
धीरज आसन दृढ जमाय के या विधि से मन को समझाकर |
बंधन से गर छुटनू चाहत, तू अजपा उर सत्य जपाकर ||
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नित्त ही चित्त प्रसन्न रखो यह साधन साधू से सिख तू जाकर |
फेर भी भूल परे तुमको धृक है धृक है तन मानव पाकर |
क्रोध व तृष्णा को दूर करो कहूँ संत समागम संगत जाकर |
बंधन से गर छुटनू चाहत, तू अजपा उर सत्य जपाकर ||
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परलोक बनावन से हटके मद क्रोध भर् यो तृष्णा उर आकर |
क्रोधको जीतके तृष्णा न राखत ज्ञानी वही गति ज्ञानकी पाकर |
जो मनको न दृढावत राम, कहो किन काम के ग्रन्थ पढ़ाकर |
बंधन से गर छुटनू चाहत, तू अजपा उर सत्य जपाकर ||
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अजपा वही जो जपे दिन रैन यह होता है स्वांस के साथ सुनाकर |
ध्यान से युक्त व सत्य परायण उच्च विचार हृदय में धराकर |
भोजन अल्प एकांत निवास तू थोरी ही नींद ले जाग उठाकर |
बंधन से गर छुटनू चाहत, तू अजपा उर सत्य जपाकर ||

हे दयालु ! ले शरण में

हे दयालू ! ले शरण में, मोहे क्यो बिसार् यो ।
जुठे बेर सबरी के, पाय काज सार् यो ।। हे दयालू …
द्रोपदी की रखि लाज, कोरव दल गयो भाज।
पांडवों की कर सहाय, अरजुन को उबार् यो ।।हे…
रक्षक हो भक्तन का, किया संग संतन का ।
तारन हेतु मुझको, तुम संत रूप धार् यो ।। हे…
नरसी का भरा भात, विप्रन के श्रीकृष्ण नाथ ।
दुष्टन को गर्व गार, रावण को मार् यो ।।हे दयालू ..
शिवदीन हाथ जोडे, दुनियां से मुखः मोडे ।
ध्रुव को ध्रुव लोक अमर, भक्त जानि तार् यो ।।

हरि मेरा बेड़ा पार करो 

हरि मेरा बेड़ा पार करो |
दया राह शिवदीन दीन की विनती चित्त धरो ||
नाना दुःख सहे बहुतेरे, काम क्रोध लोभादि घेरे |
कहाँ शान्ति है इस दुनियां में, भ्रम भव दुःख हरो ||
भटक्यो जनम-जनम धर योनी, आशा तृष्णा छांडे कोनी |
जनम मरण का चक्कर अद्भुत, जनमों और मरो ||
अबकी बेर पार कर नैया , राम सियावर कृष्ण कन्हैया |
और उपाय कछु ना सूझत , यांते शरण परो ||
नरतन सफल बने बनि जाये,प्रेमभक्ति मन सहज ही पावे |
पारस परसि कुधातु लोहा , सुवरण होय खरो ||

शिवाष्टक

शिवाष्टक

पारबती सी सती शिव के, सुत सत्य गणेश धुरन्धर ज्ञानी|
कैलाश सा धाम आनंद सदा, शिव सीस जटान में गंग समानी ||
सब देवन में महादेव बड़े, सुर पूजत हैं जग के सब प्राणी |
मन कामना पूरण शीघ्र करो, मेरी अर्ज़ सुनो शिवशंकर दानी ||१||

शिव सुख करो अघ दुःख हरो, प्रभु आस भरो बरदायक ज्ञानी |
चारों ही ओर प्रकाश सदा शिव, शंभू दयामय साधू अमानी ||
तव द्वार से प्रेम अपार मिले, सब सार मिले यह सत्य कहानी |
मन कामना पूरण शीघ्र करो, मेरी अर्ज़ सुनो शिवशंकर दानी ||२||

तीनों ही ताप त्रिशूल हरे, शिव बाजत है डमरू अगवानी |
भूत पिशाच दोउ कर जोरत, नृत्य करे गुनज्ञान बखानी ||
शमशान में ध्यान विभूति चढ़े, शिव तात कथा नहीं कहू से छानी |
मन कामना पूरण शीघ्र करो, मेरी अर्ज़ सुनो शिवशंकर दानी ||३||

मृग छाल बागम्बर साजत है, शिव भाल पे चंद अमी बरसानी |
अनंत अखंड समाधि लगावत, भक्तन के हित बात ये ठानी ||
लहर तरंग में भंग के रंग में, आठों ही याम रहें शिव ध्यानी |
मन कामना पूरण शीघ्र करो, मेरी अर्ज़ सुनो शिवशंकर दानी ||४||

रावन शीश उतार धरे, शिव होय प्रसन्न दिये वर ज्ञानी |
शिव शंभू कृपा से दसानन को, वह स्वर्ण की लंका मिली रजधानी ||
सुन्दरी वाम मिले सुत सुभट, भाई विभीषण अमृत वाणी |
मन कामना पूरण शीघ्र करो, मेरी अर्ज़ सुनो शिव शंकर दानी ||५||

भक्तन के सरताज त्रिलोचन, योगी सदा शिव टेक निभानी |
संतन के हित में चित में, बल बुद्धि जगावत सुरत सायानी ||
दाता प्रताप महा महिमा, जग जानत है यह बात न छानी |
मन कामना पूरण शीघ्र करो, मेरी अर्ज़ सुनो शिव शंकर दानी ||६||

भोले कल्याण करो सबका, धन धान सुता सुत दे सुर ज्ञानी |
शिव शरण परे की रखे लजिया, भंडार भरे गुण वेद बखानी ||
सारद शेष दिनेश मुनीन्द्र, सभी गुण गावत ये गुण ज्ञानी |
मन कामना पूरण शीघ्र करो, मेरी अर्ज़ सुनो शिव शंकर दानी ||७||

राम ही राम रटे शिव शंकर, ध्यान धरे निशि वासर ध्यानी |
लीला अनंत न अंत मिले, शिव संग रहे जगदंब भवानी ||
कर जोरत है शिवदीन निरंतर, शीश झुकावत सज्जन प्राणी |
मन कामना पूरण शीघ्र करो, मेरी अर्ज़ सुनो शिव शंकर दानी ||८||

दोहा
शिव अष्टक पढि प्रेम से, पाठ करे जो कोय |
शिवदीन प्रेम भक्ति मिले, हरी का दर्शन होय ||