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‘शेवन’ बिजनौरी की रचनाएँ

ग़म से भीगे हुए नग़मात कहाँ से लाऊँ  

ग़म से भीगे हुए नग़मात कहाँ से लाऊँ
दर्द में डूबी हुई बात कहाँ से लाऊँ

जिन में यादों को तेरी झोंक दूँ जलने के लिए
वो सुलगते हुए दिन रात कहाँ से लाऊँ

जो पसंद आए तुझे ख़ून-ए-जिगर के बदले
सोने चाँदी की वो सौग़ात कहाँ से लाऊँ

दिल भी तिश्‍ना है मेरी रूह भी तिश्‍ना है मगर
तेरे जल्वों की वो बरसात कहाँ से लाऊँ

तेरे वादे तो तुझे याद दिलाएँ ज़ालिम
हाए माज़ी के वो लम्हात कहाँ से लाऊँ

जब मेरे भाग में तन्हाई का अँधियारा है
फिर भला प्रेम की प्रभात कहाँ से लाऊँ

दिल मेरा रोता है तन्हाई में पहरों ‘शेवन’
वो बुज़र्गो की हिदायत कहाँ से लाऊँ

होती है लबों पर ख़ामोशी आँखों में मोहब्बत होती है

होती है लबों पर ख़ामोशी आँखों में मोहब्बत होती है
जब उन से निगाहें मिलती हैं उस वक़्त ये हालत होती है

रंगीनी-ए-बज़्म-ए-दुनिया में ऐसा भी ज़माना आता है
वो दर्द कज़ा बन जाता है जिस दर्द में राहत होती है

ये तुझ पे फ़लक ने ज़ुल्म किया वो मुझ से जुदा मैं उन से जुदा
ख़ुशियाँ तो मनाओ अहल-ए-जहाँ बर्बाद मोहब्बत होती है

आते हैं वो सैर-ए-गुलशन को काँटों से बचाए दामन को
होंटों पे तबस्सुम है उन के आँखों से शरारत होती है

देखा है हमारी आँखों ने ये बात हक़ीक़त होती है
हर शख़्स मेहरबाँ होता है जब उस की इनायत होती है

तन्हाई के आलम में अक्सर दिल उस से बहलता है ‘शेवन’
तारीकी-ए-शाम-ए-हिज्राँ में ग़म की भी जरूरत होती है

मौसम भी ख़ुशगवार ज़माना भी रास है

मौसम भी ख़ुशगवार ज़माना भी रास है
लेकिन तिरे बग़ैर मिरा जी उदास है

ऐ हुस्न-ए-पुर-हिजाब ज़रा सामने तो आ
इन तिश्‍ना-लब निगाहों को जलवे की आस है

अर्सा हुआ है तर्क-ए-मोहब्बत किए हुए
फिर भी न जाने क्यूँ तेरे मिलने की आस है

कहते हैं किस को इश्‍क मुझे ये ख़बर नहीं
इक मीठा मीठा दर्द मेरे दिल के पास है

यूँ तो बहुत हैं दुनिया में ज़ी-रूह हस्तियाँ
बस आदमी वही है कि जो ग़म-शनास है

बस आप का ही नाम है विर्द-ए-ज़बाँ हुज़ूर
ये सारी ज़िंदगी का मेरी इकितबास है

‘शेवन’ ये इजि़्तराब-ए-मोहब्बत का है करम
दिल क्या उदास सारा ज़माना उदास है

मिरी आह बे-असर है मैं असर कहाँ से लाऊँ

मिरी आह बे-असर है मैं असर कहाँ से लाऊँ
तिरे पास तक जो पहुँचे वो नज़र कहाँ से लाऊँ

मुझे भूल जाने वाले तुझे किस तरह भुलाऊँ
जिसे दर्द रास आए वो जिग़र कहाँ से लाऊँ

मिर रिज़्क-ए-बंदगी को तिरे दर से वास्ता है
जो झुके बरू-ए-काबा मैं वो सर कहाँ से लाऊँ

मिरे पास दिल के टुकड़े मिरे पास ख़ूँ के आँसू
तू है सीम ओ ज़र की देवी तो मैं ज़र कहाँ से लाऊँ

शब-ए-ग़म के अये अँधेरे मिरा साथ दे रहे हैं
जो मिटाए ज़ुल्मतों को वो सहर कहाँ से लाऊँ

वही बर्क़ जिस ने गिर कर मिरी ज़िंदगी जला दी
मैं उसी को ढूँडता हूँ वो शरर कहाँ से लाऊँ

तिरी निगाह ने अपना बना के छोड़ दिया

तिरी निगाह ने अपना बना के छोड़ दिया
हँसा के पास बुलाया रूला के छोड़ दिया

हसीन जल्वों में गुम हो गई नज़र मेरी
ये क्या किया कि जो पर्दा उठा के छोड़ दिया

जुनूँ में अब मुझे अपनी ख़बर न ग़ैरों की
ये ग़म ने कौन सी मंज़िल पे ला के छोड़ दिया

जो मआरिफ़त के गुलाबी नशे से हो भर-पूर
वो जाम तू ने नज़र से पिला के छोड़ दिया

किसी ने आज ज़माने के ख़ौफ़ से ‘षेवन’
हमारा नाम भी होंठों पे ला के छोड़ दिया

वो रक्स करने लगीं हवाएँ वो बदलियों का पयाम आया 

वो रक्स करने लगीं हवाएँ वो बदलियों का पयाम आया
ये किस ने बिखराईं रूख़ पे ज़ुल्फें ये कौन बाला-ए-बाम आया

मुझे ख़ुशी है कि आज मेरा जुनूँ भी यूँ मेरे काम आया
समझ के दीवाना-ए-मोहब्बत तुम्हारे होंठों पे नाम आया

मुझे सुराही से क्या ग़रज़ है मेरा नशा अस्ल में अलग है
इधर तुम्हारी उट्ठी उधर सुरूर-ए-दवाम आया

ये हुस्न फ़ानी है मेरी जाँ ये जवानियों पे ग़ुरूर कैसा
जहाँ चढ़ा महर-ए-नीम-रोज़ी उसी जगह वक़्त-ए-शाम आया

चहकती ये बुलबुलें ये गुलचीं चमन पे हक़ है सभी का लेकिन
किसी के हिस्से में फूल आए किसी के हिस्से में दाम आया

दिया मुझे मौत ने सँभाला लहद में भी हो गया उजाला
ये क़ब्र पर किस ने गुल चढ़ाए ये कौन माह-ए-तमाम आया

न तो फ़ऊलन न फ़ाएलातुल न बहर कोई न कोई तख़्ती
ये है इनायत किसी की ‘शेवन’ तुझे शुऊर-ए-सलाम आया

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