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कुत्ते की दुम

जब भी
किसी कोने से
उठती है पुकार
कोयल की

तभी
भौंकने लगता है
मेरे पड़ौसी का
कुत्ता

और मैं
कोयल की पुकार अनसुनी कर
कुत्ते की दुम के बारे में
सोचने लगता हूँ

झील

ऊपर से
जमी हुई है
झील

सतह
के नीचे
कितनी हलचल है

कौन जाने !

आईना-1

आईना दिखाता है
दूसरों को उनका चेहरा
आईने के पास
अपना कुछ नहीं होता!

आईना-2

तुम उस पर भरोसा कर सकते हो
क्योंकि वह
चापलूस नहीं होता।

वह उतना ही दिखाता है
जो तुम होते हो
जो तुम होना चाहते हो
उसका अक्स नहीं होता आईना।

चिड़िया

कहीं से
एक चिड़िया आती है
और मेरी आँखों में
समा जाती है

वह चिड़िया
क्यों आती है अक्सर
मैं अपने आप से पूछता हूँ ।

शायद
चिड़िया भी अक्सर
अपने आप से
यही प्रश्न करती होगी ।

अभियान 

मैदान साफ़ है
आगे बढ़ो
उसने आख़िरी तिनका
तोड़ते हुए कहा ।

मैदान कभी साफ़ नहीं होता
अगर वह मैदान है
मैंने उस कोने की ओर
इशारा करते हुए कहा
जहाँ नए सिरे से
घास जमना शुरू हो गई थी

और फिर से
मैदान साफ़ करने में जुट गया ।

मक्खीमार

मक्खी
एक दरवाज़े से अन्दर आई
और दूसरे से
बाहर निकल गई ।

न उसने
इस दरवाज़े से घुसते हुए कुछ सोचा था
न उससे
बाहर निकलते हुए।

सब जानते हैं
मक्खी
दुनिया का सबसे तेज़ रफ़्तार
जानवर है
और उसे पकड़ना आसान नहीं

फिर भी
मक्खीमारों से
खाली नहीं है यह दुनिया ।

बीसवीं सदी

सबके बारे में
बहुत-बहुत बोलते हुए
सिर्फ़ अपने आप से
मुख़ातिब है यह लड़की

साल-दर-साल
अपने आप से बातें करते हुए !

अपने आप से बातें करती हुई लड़की
कहाँ
कौन से दरीचों में गुम हो जाती है
अंततः !

इन दिनों

यह तुम्हारी प्रसाधन की मेज़ है
कभी इस पर शीशियों की लम्बी
कतार रहा करती थी
इन दिनों यह बिल्कुल खाली है ।

इन दिनों
तुम्हारे बेटे के हाथ
पहुँचने लगे हैं
मेज़ की ऊँचाई तक ।

विसर्जन

अभी-अभी बरस कर
रुका था बादल
कि फिर बरसने लगा ।
बरसते-बरसते फिर रुक गया बादल

फिर कई बार रुका
कई बार बरसा

आख़िरी बार तब तक बरसता रहा
जब तक कि
बूंद-बूंद
बिखर नहीं गया बादल ।

मैदान

जहाँ तुम खड़े हो
वहीं से शुरू होता है एक हरा मैदान
यात्रा के लिए आमंत्रित करता हुआ ।

उसकी सीमा कहाँ है
सवाल बेमानी है
चलते-चलते
जहाँ पहुँच कर तुम रुक जाते हो
और मुड़कर पीछे देखते हो
वहीं ठहर जाता है मैदान ।

यानी, तुम्हीं से शुरू
और तुम्हीं पर ख़त्म हो जाता है मैदान ।

परवरिश 

बनाते-बनाते
तुमसे गिर गया था चुटकी भर आटा फ़र्श पर
उसे चींटियाँ अपने सिरों पर उठा ले गई हैं

खाते-खाते
तुम्हारे हाथ से छूट गया था एक टुकड़ा
उसे चूहा अपने बिल में खींच ले गया है

रोज़ जितना अंश छूट जाता है
तुम्हारी थाली में
वह भी बेकार नहीं जाता है
उसके बाद भी
जो बच रहता है
वह धरती में मिल जाता है

जितना लेती है
उससे कई गुना
वापस कर देती है हमें धरती ।

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