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श्याम सुन्दर अग्रवाल की रचनाएँ

आज हमारी छुट्टी है 

रविवार का प्यारा दिन है,
आज हमारी छुट्टी है ।

उठ जायेंगे क्या जल्दी है,
नींद तो पूरी करने दो ।
बड़ी थकावट हफ्ते भर की,
आराम ज़रूरी करने दो ।

नहीं घड़ी की ओर देखना,
न करनी कोई भागम- भाग ।
मनपसंद वस्त्र पहनेंगे,
आज नहीं वर्दी का राग ।

खायेंगे आज गर्म पराँठे,
और खेलेंगे मित्रों संग ।
टीचर जी का डर न हो तो,
उठती मन में खूब उमंग ।

होम-वर्क को नमस्कार,
और बस्ते के संग कुट्टी है ।
मम्मी कोई काम न कहना,
आज हमारी छुट्टी है ।

चंदा मामा

चंदा मामा बड़ा ही प्यारा,
दोस्त वह गुड़िया का न्यारा।
घर -पर जा पहुँचे जब सूरज,
दूर करे थोड़ा अँधियारा ।

छत पर जाकर गुड़िया रानी,
रोज़ रात बतियाती है ।
चमक रहे चंदा मामा को,
बातें बहुत सुनाती है ।

जब पूनो के बाद चाँद को
रोज़-रोज़ यूँ घटते देखा ।
गुड़िया के चेहरे पर आई
फिर चिन्ता की इक रेखा ।

क्या बात है मित्र बतलाओ
क्यों तुम दुबले होते जाते ।
दूध नहीं पीते हो या फिर,
भोजन नहीं चबा कर खाते।

मोटे-ताजे अच्छे लगते,
मुझको तुम गोल-मटोल।
दो बार तुम्हें दूध पिलाए,
मम्मी जी से देना बोल ।

चिड़िया और बच्चा

फर-फर करती आई चिड़िया,
चोंच में तिनका लाई चिड़िया।

जगह सुरक्षित उस को रख गई,
नीड़ बनाने में वह लग गई ।

एक-एक तिनका खूब सजाया,
उसने सुंदर नीड़ बनाया ।

बिस्तर जैसे नर्म गदेला,
उसमें अंडा दिया अकेला ।

सेया अंडा तो निकला बच्चा,
बड़ा ही प्यारा, बड़ा ही सच्चा।

चिड़िया चोंच में दाना लाती,
डाल चोंच में उसे खिलाती ।

रोज़ रात को लोरी गाती,
बड़े प्यार से उसे सुलाती ।

बच्चे से बतियाती चिड़िया,
सब कुछ उसे सिखाती चिड़िया ।

उड़ना सीख वह बड़ा हो गया,
दूर गगन में कहीं खो गया ।

चिड़िया

सुबह-सवेरे आती चिड़िया,
आकर मुझे जगाती चिड़िया ।
ऊपर बैठ मुंडेर पर,
चीं-चीं, चूँ-चूँ गाती चिड़िया ।

जाना है, नहीं स्कूल उसे
न ही दफ़्तर जाती चिड़िया ।
फिर भी सदा समय से आती,
आलस नहीं दिखाती चिड़िया ।

थोड़ा सा चुग्गा लेकर भी,
दिन भर पंख फैलाती चिड़िया ।
इससे सेहत ठीक है रखती ,
नहीं दवाई खाती चिड़िया ।

छोटी-सी है फिर भी बच्चो,
बातें कई सिखाती चिड़िया ।
रखो सदा ध्यान समय का,
सबको पाठ पढ़ाती चिड़िया ।

छुट्टियाँ हुईं स्कूल में

छुट्टियाँ हुईं स्कूल में,
लग गई अपनी मौज ।
शर्बत पीते, कुलफ़ी खाते,
मिलते नए-नए भोज ।

होमवर्क की रही न चिंता,
अब खेलेंगे सब खेल ।
सैर-सपाटे को निकलेंगे,
चढ़कर लम्बी रेल ।

घूमेंगे मम्मी-पापा संग,
ऊटी और बैंगलूर ।
राजा का महल देखेंगे,
जब जाएंगे मैसूर ।

हैदराबाद का म्यूजियम,
और सुंदर चारमीनार ।
दिखलाएंगे पापा हमको,
अवश्य ही इस बार ।

नहीं व्यर्थ बहाओ पानी

सदा हमें समझाए नानी,
नहीं व्यर्थ बहाओ पानी ।
हुआ समाप्त अगर धरा से,
मिट जायेगी ये ज़िंदगानी ।

नहीं उगेगा दाना-दुनका,
हो जायेंगे खेत वीरान ।
उपजाऊ जो लगती धरती,
बन जायेगी रेगिस्तान ।

हरी-भरी जहाँ होती धरती,
वहीं आते बादल उपकारी ।
खूब गरजते, खूब चमकते,
और करते वर्षा भारी ।

हरा-भरा रखो इस जग को,
वृक्ष तुम खूब लगाओ ।
पानी है अनमोल रत्न,
तुम एक-एक बूँद बचाओ ।

फैशन का बुखार 

टी०वी० देख चुहिया को चढ़ गया,
फैशन का तेज़ बुख़ार ।
चूहे से वह कड़क के बोली,
मुझे लेकर चलो बाज़ार ।

फैंसी वस्त्र, सुंदर गहने,
मुझको तुम बनवा दो ।
फैशन शो में जाऊँगी मैं,
सबको तुम बतला दो ।।

तंग वस्त्र जब पहन चली,
तो राह में लग गया जाम ।
फैंसी सैंडल धोखा दे गये,
वह सड़क पर गिरी धड़ाम।

हाथ-पाँव तुड़वाकर दोनों,
वह जा पहुँची अस्पताल ।
दो टीके जब लगे शरीर पर,
तो बुरा हो गया हाल ।

मीठा बोलो

काले रंग का कौवा होता,
काली ही कोयल होती ।
कोयल का सम्मान करें सब,
कौवे की दुर्गति होती ।

रंग से कुछ फ़र्क न पड़ता,
पड़े गुणों का मोल ।
कौवे की कर्कश काँव-काँव,
कोयल के मीठे बोल ।

प्यार अगर पाना है बच्चो,
मिश्री-सा मीठा बोलो,
मधुर आवाज़ निकालो मुख से,
कानों में रस घोलो ।

मेंढक नाचे ता-ता-थैया

उमड़-घुमड़ कर आए बादल
छाई घटा घनघोर ।
हर्षाये सब पशु और पक्षी,
जंगल में नाचा मोर ।

रिमझिम-रिमझिम वर्षा आई,
नन्नू-मन्नू सब को भाई ।
नाच उठी नन्ही गुड़िया भी,
वह तो मींह में खूब नहाई ।

तपती धरती शीतल हो गई,
मिला खेत को पानी ।
सूख रहे थे पेड़ और पौधे,
उन्हें मिली नई जिंदगानी ।

जी भर कर जब बरसे बादल,
भर गए सूखे ताल-तलैया ।
कोयल और पपीहा गाएँ,
मेंढक नाचे ता-ता-थैया ।

मेरी प्यारी दादी-माँ

मेरी प्यारी दादी-माँ,
सब से न्यारी दादी-माँ।
बड़े प्यार से सुबह उठाए,
मुझको मेरी दादी-माँ।

नहला कर कपड़े पहनाए,
खूब सजाए दादी-माँ।
लेकर मेरा बैग स्कूल का,
संग-संग जाए दादी-माँ।

आप न खाए मुझे खिलाए,
ऐसी प्यारी दादी-माँ ।
ताज़ा जूस, गिलास दूध का,
हर रोज़ पिलाए दादी-माँ।

सुंदर कपड़े और खिलौने,
मुझे दिलाए दादी-माँ।
बात सुनाए, गीत सुनाए,
रूठूँ तो मनाए दादी-माँ।

यह करना है, वह नहीं करना,
मुझको समझाए दादी-माँ।
लोरी देकर पास सुलाए,
ये मेरी प्यारी दादी-माँ।

रविवार 

रविवार का दिन है प्यारा,
आज हमारी छुट्टी है।
नहीं दोस्ती यूनिफार्म से ,
स्कूल-बैग से कुट्टी है।

मित्रों -संग मस्ती मारेंगे,
मन-पसंद का खाएँगे।
झूम-झूम कर नाचेंगे हम,
गीत खुशी के गाएँगे।

आओ शोर मचाएँ

बड़ा मजा आता है हमको,
हम तो शोर मचाएँगे,
हमको पता है टीचर जी,
आकर डाँट लगाएँगे।

करे न ज़रा शरारत कोई,
ज़रा नहीं शोर मचाएँ।
चुप रहना है खेल बड़ों का,
हम कैसे समय बिताएँ?

बच्चों का पेड़ 

आँगन में जो पेड़ नीम का,
मीठा उसे बना दो।
भगवन सुन लो बच्चों की तुम,
फलों से उसे सजा दो।

एक डाल पर लगें संतरे,
एक डाल पर लीची-आम।
मीठे केले लगा नीम पर,
करो उसे बच्चों के नाम।

वर्षा आई

काले-काले बादल आए,
छाई घटा घनघोर।
चमक-चमक के बिजली गरजी,
खूब मचाया शोर।

लगी चहकने चिड़िया रानी,
नाची खूब गिलहरी।
बच्चों ने इतना शोर मचाया,
दादी हो गई बहरी।

बिल्ली-चूहा

आगे-आगे चूहा दौड़ा,
पीछे-पीछे बिल्ली।
भागे-भागे, दोनों भागे,
जा पहुँचे वो दिल्ली।

लाल किले पर पहुँच चूहे ने,
शोर मचाया झटपट।
पुलिस देखकर डर गई बिल्ली,
वापस भागी सरपट।

सूरज दादा रहम करो 

सूरज दादा रहम करो,
गरमी को कुछ कम करो।

सुबह सवेरे आते हो,
बहुत देर से जाते हो।

इतना न तुम काम करो,
थोड़ा तो आराम करो।

धरती खूब तपाते हो,
बच्चों को झुलसाते हो।

खूब पसीना आता है,
काम नहीं हो पाता है।

न ही पाते हैं हम खेल,
घर में ही बन गई है जेल।

पंखा, कूलर, ठंडा पानी,
देते है थोड़ी ज़िंदगानी।

चली जाए जब बिजली रानी,
सबको याद आती है नानी।

लू ने किया हाल-बेहाल,
सूख गए सब पोखर-ताल।

नहीं मिलता पीने को पानी,
सुस्त हो गई चिड़िया रानी।

बच्चों से थोड़ा प्यार करो,
छुट्टियाँ न बेकार करो।

विनती है तुम सेंक घटाओ,
चंदा-मामा से बन जाओ।

मोटू राम गये बारात 

मिला निमंत्रण, शादी का तो
मोटू राम गये बारात ।
फल कोई उनको न भाया,
और न ही दाल और भात ।
दो प्लेट जलेबी खाई,
और खाई रसमलाई ।
आइसक्रीम खूब छक गये,
और उड़ाई सभी मिठाई ।
दोना भरकर रबड़ी खा ली,
तो तन गया उनका पेट ।
दर्द से जब लगे ऐंठने,
तो धरती पर गये वे लेट ।
एम्बुलेंस में लदकरके ,
फिर जा पहुँचे अस्पताल ।
हफ्ते भर तक करनी पड़ी,
मोटू को भूख हड़ताल ।

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