Skip to content

मरने के बाद
मेरी अस्थियाँ गंगा में विसर्जित कर देना
और राख थोड़ी बिखरा देना
हवाई जहाज़ से हिमालय की चोटियों पर
और थोड़ी कन्याकुमारी के महासंगम में
और किसी को हक़ नहीं देश से इतना प्यार करने का
थोड़ी-सी भस्म एक हण्डिया में भर
गाड़ देना मेरी समाधि में
लोग देखने आएँ मेरे अजायबघर
सौ दो सौ एकड़ ज़मीन ज़रूर घेर लेना
सबसे शानदार जगहों पर
और मेरे जन्म दिन पर छातियाँ भी पीटना
एक और बात जो दिलचस्प हो सकती है
बच्चों से मुझे कभी कोई लगाव नहीं रहा
लेकिन इसी बहाने अगर उनकी छातियों पर मूँग दली जाए
तो चलेगा
हालाँकि मेरे कोई पुत्री नहीं थी
वर्ना मैं उसके नाम
चार पाँच किलो चिट्ठियाँ भी छोड़ ही जाता
मैं दिन में एक सौ बयालीस घण्टे काम करता था
और उनसे नफ़रत करता रहूँगा
जो इससे कम कर पाते हैं
जीवन में सभी विषयों पर पढ़ा सोचा और लिखा
और कुछ छूट न जाए इसलिए
तैंतालीस में जब मुझे फ़्लू हुआ
मैंने दूरअन्देशी दिखाते हुए
एड्स वैक्सीन पर एक लेख लिखा
अब मिल नहीं रहा
उसे दोबारा लिखकर छपवा देना
और अगर फिर भी ख़ून बचा हो
आने वाली नस्ल में
तो मैं अपनी प्रिय मेज़ की दराज़ में
एक पाण्डुलिपि छोड़े जा रहा हूँ ।

जनादेश एक मज़ेदार चीज़ होती है 

जैसे 93 के चुनावों ने धर्मनिरपेक्षता का जनादेश दिया
जैसे 91 के चुनावों ने साम्प्रदायिकता का जनादेश दिया था
जैसे हिमाचल के सेबों ने
डंकल को समर्पण का जनादेश दिया
जैसे आर्थिक गड़बड़ और भ्रष्टाचार को और बढ़ाने का जनादेश मध्य भारत से मिला
जैसे राजस्थान ने साम्प्रदायिक और धर्मनिरपेक्ष भ्रष्टाचार के बीच आवाजाही का जनादेश दिया
जैसे अयोध्या साम्प्रदायिक और फैज़ाबाद धर्मनिरपेक्ष साबित हुए
और दिल्ली ने मन्दिर वहीं बनाने का जनादेश दिया
फिर जो माँगोगे वही मिलेगा
बुद्धिख़ोरों को बुद्धिख़ोरों जैसा
लालू को लालू जैसा
हेगड़े को जो जनादेश मिला
उससे वी०पी० सिंह को बड़ी मुश्क़िल होती
सो उन्होंने लालू वाले जनादेश को हेगड़े के पीछे लगाया
ऐसा कुछ माँ का आशीर्वाद है
लोकतन्त्र के दरबार से कोई ख़ाली नहीं जाता
चाहे जो मजबूरी हो
वामपन्थियों को हमेशा वामपन्थियों जैसा मिलता था
भाजपा को भाजपा जैसा
चुनाव कहीं भी हों
जनादेश मिलता था हरकिशन सिंह सुरजीत और भजनलाल को
और उत्तर प्रदेश में तो वोटिंग पैटर्न पर विचार इस कदर हावी रहा
कि कल्याण सिंह को कल्याण सिंह वाला मिला
मुलायम सिंह को मुलायम सिंह वाला
कांशीराम ने कांशीराम वाला जनादेश लेकर
पासवान वाले जनादेश में गड़बड़ कर दी
और जो जनता 91 में साम्प्रदायिक थी
वह तो 93 आते-आते हो ली धर्मनिरपेक्ष
और इस भगदड़ में किसी को ध्यान ही नहीं रहा
कि किसी को ब्रीफ़केस वाला जनादेश मिला
किसी को सूटकेस वाला
इतना इन्तज़ाम तो इन्दिरा जी कर ही गईं
कि पत्रकारों-वकीलों-प्रोफ़ेसरों के जनादेश
उनकी नियुक्तियों में निहित होते थे
आर्थिक विषमता के इस लोकतन्त्र में
अपने-अपने मुवक्किलों के ऐतबार से
सबको अपने-अपने जनादेश
मतदान से पहले ही मिल जाते थे
लेकिन इनमें सबसे दिलचस्प होते थे
कवियों लेखकों चिन्तकों विश्लेषकों को मिले परदेसी जनादेश
जो बुद्धिघुट्टी के साथ पहुँचते थे और घर तक पहुँचाते थे
किसी को रूस से किसी को चीन से किसी को अरब से
बाक़ी बचे हुओं को अमरीका से
इतने मुस्तनद और होशरुबा
कि सच्चाइयाँ बदल जाएँ
बन्द मतपेटियां इकट्ठा करके समुद्र में फेक दी जाएँ
इनके जनादेश पर शिकन नहीं आती थी ।

1995

जनादेश 

चालीस प्रतिशत लोगों ने वोट नहीं डाला
इनमें अधिकांश चाहते तो वोट डालते
उन्हें लगा इससे क्या होगा
या उन्होंने इसके बारे में कुछ सोचा ही नहीं

साठ प्रतिशत लोगों की निर्वाचन कवायद से जो सांसद निकले
वे तेईस प्रतिशत के समर्थन से बने
सैंतीस प्रतिशत लोगों ने किसी और को वोट दिया
और जिसे जनादेश माना गया
चालीस प्रतिशत लोग उससे बाहर कहीं रहते थे
इस तरह जिन लोकनिरपेक्ष नुमाइन्दों की संसद बनी
सतहत्तर प्रतिशत लोग उनसे निरपेक्ष थे

पच्चीस प्रतिशत सांसद लेकर जो सबसे बड़ी पार्टी उभरी
उसने अन्य पार्टियों का
जो चुनाव में उसकी मुख़ालफ़त करती थीं
बाहर से समर्थन प्राप्त किया
और इसके लिए जनता से नहीं पूछा जा सका क्योंकि यह संभव नहीं था

सबसे बड़ी पार्टी का जिन पार्टियों ने समर्थन किया
उन्होंने यह स्पष्ट किया
कि उनका सबसे बड़ी पार्टी से कोई सैद्धान्तिक मेल नहीं है
लेकिन सरकार चलाने के लिए
वे सबसे बड़ी पार्टी को बाहर से चलाएँगी
इसके लिए जनता से नहीं पूछा जा सका क्योंकि यह संभव नहीं था

सबसे बड़ी पार्टी में जो सबसे काँइयाँ नेता था
उसे सबसे बड़ा ख़तरा लोगों से रहा
सो उसने प्रधान पद के लिए गुप्त मतदान का
सबसे ज़्यादा विरोध किया
इसके लिए भी जनता से नहीं पूछा जा सका क्योंकि यह संभव नहीं था

जिन्होंने व्यावहारिक तौर पर लोकतन्त्र की जड़ें कुरेदीं
उन्होंने सैद्धान्तिक तौर पर उसका समर्थन किया
और जिन्होंने सैद्धान्तिक तौर पर लोकतन्त्र की जड़ें कुरेदीं
उन्होंने व्यावहारिक तौर पर उसकी माँग में धरना दिया

फिर कुछ दार्शनिक दिक़्क़तें राजधानी में रहीं
जिन्हें लोकनिरपेक्ष शक्तियों ने साफ़ किया
बाहरी ताक़तों से सर्वसम्मत निर्वाचन
और सन्दिग्ध ताक़तों से गठन हुआ
सबसे बड़े पद पर
सबसे भयभीत आदमी बैठा
सबसे भयभीत आदमी ने सबसे भयभीत मन्त्रिमण्डल चुना
और इस तरह तेईस फ़ीसदी के नुमाइंदों से
ऐसी भयभीत सरकार निकली
जिसने एक मज़बूत लोकतन्त्र का बाहर से समर्थन किया ।

1995

ईश्वर मेरा बिगड़ा यार 

किसी मरदूद पे टमाटर फेक के मारने से बेहतर है
उसे टमाटर पे फेक के मारना
मेरी मृत्यु ने पंचांगों को भौचक्का कर दिया था
जिस तरह मेरे जन्म ने
ताकि रहे आदमी की पहल
और सभी जीवधारियों की
और उन सब की जिनमें अभी जीवन खोजा जाना है
और रहे ख़ूबसूरती इस मवाली की
भन्नाया घूमता है भौंरे की तरह
और जाने कहां है इसकी मंज़िल
कभी अशिव में शिव
कभी शिव में भटकता है अशिव बन के
ज़मीन से फूटता है फ़सल की सूरत
टूटता है विपत्ति बन के किसी दिन
दिलों में मुहब्बत
समाज में शोषण
फ़ितरत में हरामपन
कमजोरों में ताक़त
और दीवानों में जीवट बन के उतरता है
रूह में उतरता है शैतान की तरह
हड्डियों में ख़ून, आँख में रौशनी, दिमाग़ में अन्धेरा
चीड़ में तारपीन का तेल
और देवदारों के हरे में क़यामत का नूर बनके
समुद्रों में सोम, सूर्य में रस
भ्रूण में फ़ोन नम्बर, पते में पिनकोड,
ठोस चीज़ में ख़ला बनके
ख़ला में बिजली, बिजली में चुम्बक, चुम्बक में लकीर
लकीर से आती है चीख़
अनन्त सूक्ष्म और अनन्त विस्तार की एकरूप
धरती पर आया कोयले की चाशनी में प्राण बनके
और जाने कितने लोकों में फूटा हो यह विलक्षण फव्वारा
दिखता है तमाम गतियों में लॉजिक की सूरत
जो वहाँ भी रहता है जहाँ बुद्धि नहीं रहती
जो तब भी था जब नहीं थी यह मग़रूर और फूली हुई चीज़
काली रातों में रम्ज़-ओ-इशारा
पर्वतों में सवेरा
एक दिन अचानक उत्पन्न हुआ हो जैसे
जैसे ली हो किसी ने साँस
बिना पदार्थ और ऊर्जा के
तमाम लॉजिक को ऊट-पटाँग करते हुए
फोड़ा हो किसी ने नारियल पंडिज्जी की खोपड़ी पर
और यह उलटबख़्त फैला विडम्बना बनके रायते की तरह
घर की नाली से आकाशगंगा तक ।

गोलियाँ चलने से पहले 

हर मूर्ख अपने आपको तपस्वी समझता है
हर लफंगा मनीषी
मुझे चाहकर भी ग़लतफ़हमी नहीं हो पाई
मैं सिर्फ़ एक मूर्ख लफंगे की तरह नमूदार हुआ
दुनिया के पापों और पुण्यों के बीच अपनी जगह बनाने के लिए
न मैंने क्रिश्चियन को केवल क्रिश्चियन कहा
न मिशनरी को केवल मिशनरी
मैंने मक्का-मदीना जाने का मन बना लिया पक्के तौर पर
लेकिन मेरी काफ़िरी को देखते
मेरे मुस्लिम दोस्तों ने ऐसा न करने की सलाह दी
फिर मैंने करबला जाने की कोशिश की
लेकिन तब तक स्वतन्त्रता के रखवाले
इराकी सीमाओं को बन्द कर चुके थे
मैं वृन्दावन गया अलबत्ता
जहाँ मुझे वेणुगोपाल मिला
जो स्कूटर के पीछे बैठा गन्ना चूस रहा था
मैंने संटी से धमकाकर एक बकरी को भगाया
और निधिवन में प्रवेश किया
हरिदास बाबा की समाधि पर मुझे सचमुच रोमांच हो आया
लेकिन वहाँ मिला मुझे एक पण्डा
जो अभी-अभी कृष्ण भगवान से मिलकर आया था
और थरथर काँप रहा था
जब उस लीला-पुरुषोत्तम ने देखा मैं सुस्त घोड़े की तरह उसे देखे जा रहा हूँ
तो उसने चलते-चलते कोशिश की
कि मैं उसे दो दौ रूपये चन्दे के दे दूँ
अब मेरी हँसी छूट गई और उसने मुझे कस के श्राप दिया
रात स्टेशन की बेंच पर
खटमलों ने मार-मार जूते मेरा परलोक सुधार दिया
मैंने कनॉट प्लेस से बाँसुरी ख़रीदी और चाँदनी चौक से पेड़े
मैं हरी कमीज़ पहन कर मन्दिर में घुसा और भगवा ओढ़ कर तवाफ़ को निकला
मैंने ढेर सारी कविताएँ लिखीं
लेकिन आलोचकों ने अपनी सुविधा के हिसाब से छह-सात चुनीं
और भुनगे की तरह मुझे उन पर ठोक दिया
फिर मैंने केले खाने शुरू किए
और छिलके आमतौर पर पैग़म्बरों के रास्ते में फेकता गया
मैंने तमाम ज्योतिषियों के हाथ बाँचे
औलियाओं मुल्लाओं के फाल निकाले
एक मुबारक दरगाह पर मुझे एक मुबारक महात्मा की मुबारक पूँछ का बाल मिला
मैंने उसकी खाल निकाल ली
जिसकी जैकेट बनवाकर मैं फ़ायरिंग स्क्वाड के सामने चला
गोलियाँ चलने से पहले मैं दो-एक बातें और आपको बता दूँ
पवित्र आत्माओं के दिन
गोल्फ़ लिंक का एक क्रान्तिकारी
मार्क्सवाद की चाँदनी में नौकाविहार कर रहा था
मैंने उसका बजरा पलट दिया
जब उसने देखा यह तो सचमुच की हुई जा रही है
उसने दिल कड़ा करके गोता लगाया
और गुनगुनी रेत की तरफ भागा
अगले दिन वह तमाम अख़बारों में बयान देता डोला
क्रान्ति के दुश्मनों का नाश हो
मेरा बजरा पलट दिया हरामख़ोरों ने
मैंने कौए की चोंच और छछून्दर के नाखून एक ताबीज़ में भरे
और मकर संक्रान्ति के दिन कमर तक गंगा में खड़े हो भविष्यवाणी की
2053 के तेईसवें गुरूवार को
दुनिया के सारे ज्योतिषी नष्ट हो जाएँगे
मुझे यक़ीन था कि मेरी भविष्यवाणी सच साबित होगी
क्योंकि दुनिया में भविष्यवाणियाँ बस ऐसे ही साबित हो जाती हैं
मुझे अलीगढ़ी के लिए ज्ञानपीठ मिला
और हाथरसी के लिए साहित्य अकादमी
हालाँकि मैं लगातार हिन्दी में लिखता रहा
मेरी सूरत देखकर किसी की तबीयत नहीं ख़राब होती थी
इसलिए मुझे विद्वान नहीं माना गया
मैंने तीज-त्यौहारों पर अपनी प्रतिबद्धताओं के बक्से नहीं खोले
मैं कभी कहीं इतना महत्वपूर्ण नहीं हो पाया
कि लोग बहस करते
यह शैतान की औलाद था या भगवान की
मैंने विचारहीन गर्भ का मज़ाक उड़ाया
लेकिन मैंने कभी जन्म का मज़ाक नहीं उड़ाया
मृत्यु को तो मैंने सदा बड़े आदर के साथ देखा
मैंने कुछ राजनीतिक और सांस्कृतिक भविष्यवाणियाँ भी की थीं
जिन पर किसी ने ध्यान नहीं दिया ।

1991

माया 

गाढ़े लेपों और प्राचीन मसालों की गंध में
वह मिस्र के शाही ख़ानदान की
ताज़ा ममी जैसी दिखाई दी
उसकी गतियों में भी
जीवन से अधिक निष्प्राणता की उपस्थिति थी
निर्जीव जगत की विराटता
उसे एक विराट सच्चाई देती थी
जीवन तुच्छ था और दहशत से भरा हुआ था
चमक और महक के निर्जीव आतंक में
रक्त, लार और विचार जैसे जीवद्रव्य झूठ थे ।

1998

वे साधारण सिपाही जो कानून और व्यवस्था में काम आए

शायद कुछ सपनों के लिए
शायद कुछ मूल्यों के लिए
कुछ-कुछ देश
कुछ-कुछ संसार
लेकिन ज़्यादातर अपने अभागे परिवारों के भरण-पोषण के लिए
हमने दूर-दराज़ रात-बिरात
बिना किसी व्यक्तिगत प्रयोजन के
अनजानी जगहों पर अपनी जानें लगाई
जानें गँवाई

हम कानून और व्यवस्था की रक्षा में काम आए
लेकिन हमारे बलिदान को आँकना
और उस बलिदान के सारे पहलुओं को समझना
एक आस्थाहीन और अराजक कर देने वाला अनुभव रहेगा

जो अपने कारनामों के दम पर
इस मुल्क की सड़कों पर चलने का हक़ भी खो चुके थे
हमें उनकी सुरक्षा में अपनी तमाम नींदें
और तमाम ज़िन्दगी ख़राब करनी पड़ी
उन्माद और साम्प्रदायिकता का ज़हर और कहर
सबसे पहले और सबसे लम्बे समय तक हम पर गिरा
हम उन इलाकों की हिफाज़त में ख़र्च हुए
जहाँ हमारे बच्चों का भविष्य चुराकर
काला धन इकठ्ठा करने वालों के बदआमोज़ लड़के-लड़कियाँ
शिकार करें और हनीमून मनाएँ
या उन विवादास्पद संस्थाओं की सुरक्षा में
जहाँ अन्तर्राष्ट्रीय सरमाए के कलादलाल
हमारी कीमत पर अपनी कमाऊ क्राँतियां सिद्ध करें

हमें बन्धक बनाया गया
या शायद हम जब तक जिए बन्धक बनकर ही जिए
लेकिन हमारे सगे-सम्बन्धी इतने साधन सम्पन्न नहीं थे
कि राजधानी में दबाव डाल सकते
और उन्होंने हमारे बदले किसी को रिहा कर देने के लिए
छातियाँ नहीं पीटीं

जो क्रान्तिकारी थे
उन्होंने हमें बेमौत मारने वालों के लिए छातियाँ पीटीं
जो बुद्धिजीवी और पत्रकार थे
उन्होंने क्रान्तिकारियों के लिए छातियाँ पीटीं
हम साधारण परिवारों से आए मनुष्य ही थे आख़िरकार
लेकिन ह्यूमैनिटीज़ के प्रोफ़ेसर और विद्यार्थी
जो शाहज़ादों की शान में पेश-पेश थे
हमें दबी ज़ुबान व्यवस्था का कुत्ता बोलते थे
व्यवस्था दबी ज़ुबान बोलती थी
बेमौत मरने के लिए
हमें तनख़्वाह मिलती तो है
हम इस यातना को सहते हुए
चुपचाप मरे
लेकिन हमारे बीवी-बच्चे जो आज भी बदहाल हैं
हवाई जहाज़ पर उड़ने वाले नहीं थे
इसलिए न उन्हें पचास हज़ार डॉलर मिले
न फ़ोर्ड फ़ाउन्डेशन के मौसेरे पुरस्कार
ये चीज़ें समाज के लिए नहीं
समाजकर्मियों के लिए बनी थीं

हम भी समाज का हिस्सा थे
हमें माना नहीं गया
हम भी समाजकर्मी थे
हमारी सुनी नहीं गई

और यह हम तमाम गीतों और प्रार्थनाओं के बीच कह रहे हैं
कि हमारे अपने अफसरों नें
जिन्हें ख़ुद एक सिपाही होना था
हमें अपने घर झाड़ुओं की तरह इस्तेमाल किया
और यह भी हम तमाम गीतों और प्रार्थनाओं के बीच कह रहे हैं
कि कोई उल्लू का पट्ठा इतना अच्छा होगा
जो हमें बताए
कि अपने बीवी-बच्चों के साथ
जिस तरह की ज़िन्दगी जिए हम
वह क्या किसी आन्दोलन या सम्मेलन में
कभी कोई महत्वपूर्ण एजेण्डा रही ?

2000

क्षमा हर गति की नियन्ता है

हम इस समुद्र का हिस्सा हैं
सूरज और चन्द्रमा हमारे हैं
पवित्र आत्माओं की धरती पर
क्षमा हर गति की नियन्ता है

वायु में जीवन की महक हूँ
जल में हूँ सोम की प्रभा
अग्नियों में प्रेरणा की अग्नि हूँ
दम्भ भी किसी की क्षमा से है

तीन बजे रात फ़ोन की घण्टी
बादलों में सतर्क-सी चुप्पी
पर्वतों में अजीब आवाज़ें
जंगल में पशु भी भयभीत हैं

धरती पर कहीं कुछ गड़बड़ है
उसकी क्षमा पर हम निर्भर हैं
धरती पर अगर कुछ गड़बड़ है
उसमें हमारा भी हिस्सा है

मुक्ति का रास्ता अकेले नहीं
प्रकृति रहेगी तो हम भी हैं
तीन बजे रात फ़ोन की घण्टी
कौन आवाज़ दे रहा है हमें

वायु में जीवन की महक हूँ
अग्नियों में प्रेरणा की अग्नि हूँ
पवित्र आत्माओं की धरती पर
जंगल में पशु क्यों भयभीत हैं ।

1992

निरन्तरता ही संसार को बचाएगी

छियासी चिन्तकों ने सामूहिक आत्महत्या की
छियासी कलावन्तों ने

डायनोसॉर संघर्ष करके तैयार हुए थे श्रेष्ठ
डायनोसॉर नष्ट हो गए
वह सिर्फ़ एक आकाशीय दुर्घटना थी
या और कोई समझ में आ सकने वाली बात
इतिहास भरा पड़ा था दिग्गजों के इतिहास से
जो नहीं बदल पाए अपने आपको
चूहे निकल गए उनके ऊपर से
दीमकें निकल गईं
चींटियों ने लम्बी यात्राएँ कीं
हालाँकि पर निकलते ही भागे चमक की तरफ़
पर कीड़े नष्ट नहीं हुए

छियासी डॉल्फ़िनों ने सामूहिक आत्महत्या की
छियासी सिंह छियासी बाघ छियासी हाथी
खड़े हैं अपने वज़नी दिमाग़ों के साथ
अपने हिस्से की आख़िरी ज़मीन पर
छियासी श्रेष्ठ दर्शन छियासी श्रेष्ठ विचार
पलट भी सकते हैं गतियों को
हो सकता है डायनोसॉर नष्ट नहीं हुए हों
हो सकता है वे चिड़िया बनके उड़ गए हों आसमान में
भर के अपनी हड्डियों में हवा
हो सकता है जो नीलकण्ठ बैठा है टेलीफ़ोन के तार पर
उसका जीवन हो सामूहिक निरन्तरता की सनद

जुलाहे ख़तरे में हैं
कुम्हार और लुहार लड़ रहे हैं अपनी आख़िरी लड़ाई
किसान का लड़का नहीं बनना चाहता किसान
और बाज़ार में आया है पैप्सी
छियासी हज़ार श्रेष्ठ कामगार
निराशोन्माद में कर सकते हैं सामूहिक आत्महत्या
छियासी हज़ार श्रेष्ठ कामगारों को लग सकते हैं पंख
छियासी लाख लोग उड़ सकते हैं बाज़ार पर
छियासी करोड़ आंखें देख सकती हैं
लड़ाई श्रेष्ठता की नहीं निरन्तरता की है
उड़ान की निरन्तरता ही संसार को बचाएगी ।

1992

ऐन्थ्रोपॉइड 

एक बूढ़ा दर्ज़ी
जो डॉक्टरों के एप्रन और अस्पतालों के पर्दे सिलता है
और जिसको एकेडेमिक ब्लॉक की पाँचवीं मंज़िल पर एक कमरा मिला है
ग्राउण्ड फ़्लोर से लिफ़्ट पकड़ता है
पाँच हज़ार मीटर की ऊँचाई पर
जब शेरपाओं के आख़िरी गाँव भी पीछे छूट चुके हैं
एक आठ फ़ुट ऊँचा आदमी लिफ़्ट में आता है
खोपड़ी उसकी उठी हुई है
और सारे शरीर पर भूरे सिलेटी रंग के रूखे घने बाल हैं
लिफ़्ट चुपचाप ऊपर बढ़ती रहती है
उसने एक बगल में हिरन
और दूसरी बगल में तेन्दुआ दबा रक्खा है
और उसकी अजीब सी गन्ध लिफ़्ट में भर गई है
धीरे-धीरे वह बताता है कि वह आदमी का मौसेरा भाई है
बचपन के तूफ़ान में अपने कुनबे से बिछड़ा
और भागते-भागते आज वह यहाँ है
वह अजीब तरह से खुजाता है
जिसे देखकर डर-सा पैदा होता है
बीच में वह पर्यावरण और जीव विज्ञान के सम्बन्धों पर प्रकाश डालता है
जब दो क़रीबी भाईयों के कुनबे
एक ही ईकोसिस्टम में फैलते हैं
तो हिंसक संघर्ष होता है
और किसी एक को भागते हुए अपना ईकोसिस्टम बदलना पड़ता है
और बहुधा लुप्त होना पड़ता है
दर्ज़ी उसे बताता है
जीतते हुए लोग
हारते हुए सम्बन्धियों को किस तरह बेदखल और नष्ट करते हैं
यह बात अब जीव विज्ञान से काफ़ी बाहर निकल चुकी है

रस्ते में उन्हें स्पेस शटल कोलम्बिया
और उसके कारिन्दे मिलते हैं
जो किसी आसमानी कबाड़े से स्पेयर-पार्ट्स निकालने की कोशिश कर रहे हैं
वे अचकचाकर देखते हैं और “नासा” को रिपोर्ट करते हैं
अभी-अभी उन्होंने अन्तरिक्ष में एक लिफ़्ट को देखा है
जिसमें शायद एक एशियन दर्ज़ी और एक घृणास्प्द ऐन्थ्रोपॉइड था
पृथ्वी के बुद्धिमान सतर्क कर दिए जाते हैं
ऐन्थ्रोपॉइड्स लिफ़्ट में अन्तरिक्ष विहार कर रहे हैं
और अमेरिका को कोई ख़बर ही नहीं
इधर जब दस दिन तक लिफ़्ट पाँचवीं मंज़िल पर नहीं पहुँचती
तो मामला जाँच एजेंसियों को दे दिया जाता है
लम्बे रुसूख़ और अन्तरराष्ट्रीय समझदारी का कोई हिन्दुस्तानी
जिसे सभी ख़ास लोग जानते हैं लेकिन जिसकी शिनाख़्त नहीं हो पाती
फ़ाइल पेण्टागन तक पहुँचा देता है
दर्ज़ी की शिनाख़्त तुरन्त हो जाती है
और भारतीय दूतावास से सम्पर्क
अन्तरिक्ष में लिफ़्ट इण्टेलेक्चुअल प्रॉपर्टी का मामला बनता है
फ़ैसला होता है कि हिन्दुस्तानी दर्ज़ियों को उनकी औक़ात बता दी जाए
सरकार कहती है कि वह अमेरिका की दादागीरी के आगे झुकेगी नहीं
और दर्ज़ी के नाम वॉरण्ट निकाल दिया जाता है
उधर व्हाइट हाउस से भी एक विज्ञप्ति जारी होती है
जिसे अन्तरराष्ट्रीय वॉरण्ट माना जा सकता है
एशिया के दर्ज़ियों को हिदायत है
कि वे सस्ते क़िस्म के गारमेण्ट्स बनाने पर ध्यान दें
जीव विज्ञान और समाजशास्त्र के आन्तरिक सम्बन्ध
हमारे ऊपर छोड़ दें

लिफ़्ट लगभग स्वर्ग के दरवाज़े पर है
कि समाजशास्त्रियों और संस्कृतिकर्मियों का एक डेलीगेशन
जो शिकागो यूनिवर्सिटी की फ़ेलोशिप पर जा रहा था
लेकिन एटलाण्टिक में हवाई जहाज़ गिरने से ख़ुदा के दरवाज़े आन पड़ा
धड़धड़ाकर लिफ़्ट में घुसता है
उनमें एक पादरी भी है
जिसकी पोशाक देखकर लगता है
कि या तो वह कोई ऑपरेशन करने जा रहा है
या करवाने को तैयार है
उसकी पोशाक देखकर यह भी लगता है
कि अपने करियर में उसे दर्ज़ी की बहुत ज़रूरत होगी
एक ख़ामोश तबलची
जो तमाम रईसों के आस्तानों पर
एशिया की इज़्ज़त बढ़ा चुका है
एक अजीब-सी गन्ध महसूस करता है
और जिससे सटकर वह खड़ा था
उस आठ फुटे बनमानुस को देख चिल्लाता है – मम्मी !
यति उसके मुँह पर उँगली और पीठ पर हाथ रखता है
और बोलता है – साथी !
कुनबे से बिछड़कर मैंने भी
अपनी मम्मी को याद किया था
जो आपकी मम्मी की दूर की बहन रही होगी
और कोई प्राकृतिक चूक न हुई होती
हज़ारों साल पहले
तो शायद मैं भी ब्रॉडवे पर किसी बड़े शो का कण्डक्टर होता आज
चलो हाथ मिलाकर भाइयों में पैदा हिक़ारत को समझते हैं
जीव विज्ञान और समाजशास्त्र के सम्बन्धों का निर्धारण
बपौती नहीं है किसी एक नस्ल या वर्ग की
वर्ना जिस तरह जन्नत की हक़ीक़त देखकर
भगोड़ों की तरह घुसे हो लिफ़्ट में तुम सब
इसी तरह भागते-भागते एक दिन मेरी जगह होगे
और जिनकी बपौती के हो तुम खिलौने
वे तुम्हें समझेंगे ऐन्थ्रोपॉइड
और तब तुम्हारी तकलीफ़ को
हिन्दुस्तान का कोई बूढ़ा दर्ज़ी
या फ़िलीपीन्स का कोई मोटर मेकैनिक ही समझ पाएगा ।

1992

आए बादल हँसने

देखो पानी लगा बरसने
सूरज भागा पूँछ दबा के आए बादल हँसने

झींगुर-झिल्ली कीट-पतंगे
जगह देखकर करते दंगे
मोटे ताज़े कई केंचुए
खुले घूमते नंग-धड़ंगे
मेंढक अपनी आवाज़ों के लगे तार फिर कसने

इन्द्रधनुष ने डोरी तानी
खेत हो गए पानी-पानी
ऐसे में सैलानी बगुले
खूब कर रहे हैं मनमानी
जले जेठ का दुख कीचड़ में गिरा दिया सारस ने

गर्मी का भीषण युग बीता
वहाँ लगा पर्जन्य पलीता
गरजी महातोप जलधर की
ऋतुविस्तार तड़िस्संगीता
दफ़्तर में बैठे बाबू भी मन में लगे तरसने ।

2000

सखी समन्वय 

ऊपर है कुश्ती का आलम
नीचे-नीचे मिले पड़े हैं
सतत पराभव हुआ काव्य का
फिर भी ससुरे पिले पड़े हैं ।

2003

दोहावली

तिकड़म सखियाँ जीवन सतगुरु दोनों में घमसान हुआ
सखियन मार भगाया सतगुरु ये कैसा मैदान हुआ
2003

कल्चर की खुजली बढ़ी जग में फैली खाज
जिया खुजावन चाहता सतगुरु रखियो लाज
2003

सखी पन्थ निर्गुन सगुन दुर्गुन कहा न जाय
सखियन देखन मैं चली मैं भी गई सखियाय
2003

छन्द भए बैरी परम दन्द-फन्द अनुराग
सतगुरु खटकै आंख में ऐसा चढ़ा सुहाग
2003

चिन्तक बैठे घात में लिए सुपारी हाथ
जो सर्किट पूरा करै सो चलै हमारे साथ
2003

सर्किट ने सर्किट गह्यौ सो सर्किट बोल्यौ आय
जो सर्किट बोल्यौ चहै तौ सर्किट निकस्यौ जाय
2003

कौन वतन साहित्य का कौन गली का रोग
कौन देस सें आत हैं सर्किट बाले लोग
2003

कनक सरवरी चढ़ गई सदासिन्धु जलजान
गद्य पद्य सुख मद्य है मत चूकै चौहान
2003

खुसुर पुसुर खड़यंत्र में फैले सकल जुगाड़
निकल रही यश वासना तासें बंद किबाड़
2003

सरबत सखी जमावड़ा गजब गुनगुनी धूप
कल्चर का होता भया सरबत सखी सरूप
2003

सरबत सखियन देख कै लम्पट रहे दहाड़
करै हरामी भांगड़ा सतगुरु खाय पछाड़
2003

कविता आखर खात है ताकी टेढ़ी चाल
जे नर कविता खाय गए तिनको कौन हवाल
2003

जनता दई निकाल सो अब मनमर्जी होय
मन्द-मन्द मुस्काय कवि कविता दीन्ही रोय
2003

लाली मेरी चाल की जित देखौ तित आग
जिसने कपड़ा रंग लिया सो धन-धन ताके भाग
2003

कवियन के लेहड़े चले लिए हाथ में म्यान
इत फेंकी तलवार उत मिलन लगे सम्मान
2003

ँची कविता आधुनिक पकड़ सकै ना कोय
औरन बेमतलब करै खुद बेमतलब होय
2003

सरबत सखी जमावड़ा – सरबत सखी निजाम

सतगुरु ढूंढे ना मिलै सखियां मिलें हज़ार
किटी पार्टी हो गया कविता का संसार
2003

रूपवाद जनवाद की एक भई पहचान
सखी सखी से मिल गयी हुआ खेल आसान
2003

कविता में तिकड़म घुसी जीवन कहाँ समाय
सखियाँ बैठीं परमपद सतगुरु दिया भगाय
2003

घन घमण्ड के झाग में लम्पट भये हसीन
खुसुर-पुसुर करते रहे बिद्या बुद्धि प्रबीन
2003

कवियों ने धोखे किये कविता में क्या खोट
कवि असत्य के साथ है ले विचार की ओट
2003

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

पिछली सदी में दक्षिण एशिया से
एक बहुत बड़ा राजनीतिक संगठन उभरा
जिसने सारे क्षेत्र में सत्ता के केन्द्रों पर
निर्णायक असर डाला
और मोहनदास करमचन्द जैसे लाखों लोगों ने
जिसमें सेवक कार्यकर्ता और नेता की तरह बरसों काम किया

हिन्दुस्तान और पाकिस्तान में ख़ुदमुख़्तार सरकारें बनने से पहले ही
महात्मा को मार दिया गया
इससे पहले कि हिन्दू महासभा हरकत में आती
जिन्ना और जवाहरलाल उस काम को निपटा चुके थे
वह जब तक जिया
सबके लिए मुश्किल बनकर जिया
उसकी विरासत
पाकिस्तान में नामंज़ूर हो गई
और हिन्दुस्तान में सत्ता का फ़र्नीचर

सन साठ और अस्सी के बीच
जब देश का सबसे बड़ा राजनीतिक संगठन
एक पारिवारिक गिरोह में तब्दील होता गया
तो मध्यवर्ग में राजनीतिक हलचल हुई
खाते पीते लोग जो लोकतन्त्र के उपभोक्ता थे
उन्हें लगा लोकतन्त्र ख़तरे में है

लेकिन इस अखण्ड तमाशे से दूर
सारी सदी इस भूभाग के बहुजन
एक रोज़मर्रा के आपात्काल में जिए
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस उनके जीवन में
न अपना कोई आपात्काल पैदा कर सकी
न कोई टाल सकी ।

2000

तेरी रबूबियत में मेरा नक़्श-ए-पा भी हो

तेरी रबूबियत में मेरा नक़्श-ए-पा भी हो
मंज़िल तो है मक़्सूद कोई रास्ता भी हो

हक़ है अज़ीज़ हमको हक़ीक़त भी है अज़ीज़
ज़िक़्र-ए-ख़ुदा के साथ में फ़िक़्र-ए-ख़ुदा भी हो

उसमें निगाह-ए-शौक़ हो ठण्डी हवा भी हो
रहमत का इन्तज़ाम फ़क़ीर-आशना भी हो

दे तीस मार ख़ान को जन्नत का आसरा
फिर मार दिए तीस तो दोज़ख़ अता भी हो

1996

दिन में साए रात के रातों को ये झिलमिल है क्या

दिन में साए रात के रातों को ये झिलमिल है क्या
देख तो आदम तेरी उम्मत का मुस्तक़बिल है क्या

ये नुमाइश औरतों की दिल में बच्चों के ज़हर
है ख़ुदी का कारनामा तो ख़ुदा बातिल है क्या

लोग ले आए हैं सहरा में समन्दर का सराब
बदचलन ऐसे सितारे रौशनी ग़ाफ़िल है क्या

इस हरारत में कहीं बौरा गया है आदमी
बेदिली गिरती हुई उम्मीद का हासिल है क्या

1996

ये नूर उतरेगा आख़िर ग़ुरूर उतरेगा

ये नूर उतरेगा आख़िर ग़ुरूर उतरेगा
जनाब, उतरेगा बन्दा हुज़ूर उतरेगा

जो चढ़ गया है वो ऊपर नहीं निकलने का
उतर ही जाएगी फिर वो ज़ुरूर उतरेगा

ज़मीन सोख़्ता-सामां है ख़ाक कर देगी
नशा गुमान तकब्बुर सुरूर उतरेगा

वजूद पञ्चमहाभूत में उतर लेगा
हुनर उलूम अदा का उबूर उतरेगा

ख़ला में ताहिर-ए-दरमादा बोलता होगा
जहां सवाब रुकेंगे क़ुसूर उतरेगा ।

2014

दौर-ए-मुश्किल है, रेख़्ता कहना

दौर-ए-मुश्किल है, रेख़्ता कहना
जुर्म को जुर्म हर दफ़ा कहना

चाँद कहना तो दाग़ भी कहना
जो बुरा है उसे बुरा कहना

जब किताबों में दर्ज़ हों मानी
एक नन्हीं सी इल्तिजा कहना

हम मुकम्मल नहीं मुसल्सल हैं
अक़्लमन्दी को ज़ाविया कहना

दर्द है तो तज़ाद भी होंगे
चुटकुले में मुहावरा कहना

असद उल्लाह ख़ां नहीं होंगे
तुम तो होगे तुम्हीं ज़रा कहना ।

1995

क्या करामात है धरती पे जो फैला पानी

क्या करामात है धरती पे जो फैला पानी
बावला-सा कभी दरिया कभी सहरा पानी

उसकी आवाज़ ख़ला में है दुआओं की तरह
चाँद तारों में जो पिन्हा है ज़रा सा पानी

ज़ुल्म शहकार-सा लगता है कई बार हमें
सूखे पत्तों के बड़े पास से गुज़रा पानी

कोई क्यों ख़ून बहाए हमारा ख़ून है वो
उन दिमाग़ों को भी मिलता रहे सादा पानी

बाज़ औक़ात कोई राह चली आती है
पहाड़ काट के आया है उबलता पानी

वही एजाज़ वही रंग है सय्यारों का
है दरक्शां मेरी आँखों में ये किसका पानी

2012

पानी में नबूवत

सावन झरता है
जैसे पेड़ों पर उतरती हो रहमत
मीलों तक फैली है जलवायु
सृष्टिकर्ता का दूरदर्शन बून्दों में उतरता है घास पर
सताई हुई धरती पर इलहाम बरसता है
ख़ुदा जिन्हें तौफ़ीक़ देता है उन्हें सब्ज़ियाँ खाने को मिलती हैं
और मसख़री ख़ुदा तक पहुँचने का आसान रास्ता है
प्रकृति तू हमें भय से मुक्त कर
और जो खुलकर हँस नहीं सकतीं
वे क़ौमें नष्ट हो जाती हैं

सूरज के सामने सभी ग्रह अस्त हो जाते हैं
हालाँकि बुध काफ़ी देर तक नहीं मानता
और आदमी की खोपड़ी में घुस जाता है
बादलों के सामने सूरज अस्त हो जाता है
और आदमी बादलों के सामने अस्त नहीं होता

जिस तरह आलू को सब्ज़ी और पालक को हरी सब्ज़ी कहना भाषाई बेवकूफ़ी है
उसी तरह ईश्वर को सृष्टिपालक कहना आध्यात्मिक सूझबूझ
कि पालक और सृष्टिपालक का समुचित सेवन
दीन और दुनिया दोनों को फ़िट रखता है
और इतने तरह की सब्ज़ियाँ बना दी हैं उसने
कि हम तो उसका ठीक से शुक्रिया भी अदा नहीं कर सकते

कि ईश्वर ने कभी अवतार नहीं लिया
या फिर वह हर जन्म में छुपा होता है
और पुत्र तो उसके सभी बराबर हैं
और क्या पता यह बात ईश्वर को भी पता न हो
कि वह है भी या नहीं
हालाँकि उसका इतिहास पढ़कर ऐसा लगता है
कि उसपर श्रीमतभगवत्कृपा रही होगी

कि नेकी के रास्ते परलोक संवरता है
और बदी के रास्ते इहिलोक
हालाँकि जो बदी करते हैं वे कभी ठीक से सो तक नहीं पाते
फिर वे संवारते क्या रहे ज़िन्दगी भर

इन्सानों ने ऐसी बहुत सी किताबें लिखीं
जिन्होंने इन्सानों को नेकी के रास्ते पर बुलाया
लेकिन उन्हीं की कृपा से इन्सान अक्सर बदी के रास्ते चला

कि अपराध में छुपा जो इन्साफ़ है
और भद्रता में छुपा जो अपराध है
इसे कोई सिनेमा नहीं दिखा सकता
कि हम पापियों को नष्ट किए जाते हैं
और पाप नष्ट नहीं होता
और अख़बारों में बनाने बिगाड़ने वाले नहीं जानते
कि ईश्वर ने कभी अख़बार नहीं पढ़ा

कि पृथ्वी में कितना पारा है
यह तो तभी पता चल गया था
जब पिण्ड में अण्ड आया और प्राणों ने ओढ़ी प्रोटीन की चादर

कि कुछ शर्तों से ही अगर कविता हो जाती
तो कौन हाथ पैर मारता
कुएँ में गिरे तो काम से बचे

कि चन्द्रमा जिसकी गति मन की तरह चंचल है
और जो पृथ्वी पर द्रव-स्थैतिकी का नियन्ता है
इस समय होगा कहीं बादलों के पीछे
कि शायरी अल्ला मियाँ का सीरियल है
जो सारी अज्ञात चैनलों पर एक साथ चलता है
की गेहूँ और चावल जैसे और भी तमाम सीरियल
ईश्वर ने इस धरती को दिए
लेकिन उनपर बदी का कब्ज़ा है
कि गेहूँ और चावल के विजेता शायरी पर कब्ज़ा नहीं कर सके
आत्मा देखती है जो मन नहीं देखता
कि जल में उतरता है अन्तरिक्ष
जैसे बुध उतरता हो चन्द्रमा में
शायर एक छोटा-मोटा नबी होता है
औघड़ प्रवेश करता है ईश्वर की सत्ता में
ऋतुओं ने गर्म तवे पर रखी है बर्फ़
भाप से उठती है नबूवत
जड़ें तोड़कर उड़ती है सौ पंखों की सौदामिनी
दिशाओं में काम करती हैं चुम्बकीय रेखाएं
और यहाँ सावन है
हवाओं में बनते हैं ऋतुमहल
और जलवायु में जो काव्य है
वह पृथ्वी के पारे पर गिरता है रिमझिम ।

1993

भटकते अब्र में

कल भगत सिंह को लालू प्रसाद से आशीर्वाद माँगते देखा
चन्द्रशेखर अपनी राजनीतिक ग़लतियों पर
शाहबुद्दीन से कुछ सीख रहे थे
दुःस्वप्न ही रहा होगा
लोगों और तादाद से ज़्यादा इन्क़लाबी कोई नहीं रह पाता
इतिहास भी नहीं

जिस उत्साह, साधन और मदद से
आमाल
राह-ए-तलब में चल पड़े हैं
बाज़ औक़ात ये मंज़र भी अयां हो लेगा
हम भी जिस राह से बहकें ये गुज़र देखेंगे
और पता भी नहीं चलेगा
नई नस्ल में इस दुर्विचार का बीज बो दिआ
कि अम्मा
दादाजी जिन्हें नायक महानायक कहते हैं
क्या वे भी ऐसे ही थे ?

2016

फ्रॉड में मक्कार लोगों के हरारत आएगी

फ्रॉड में मक्कार लोगों के हरारत आएगी
नीम पोशीदा लफ़ंगों में शराफ़त आएगी

और टेढ़े रास्ते होंगे सचाई के लिए
साथ ही घटिया तरीक़ों में सलासत आएगी

इन्क़लाबी पार्टी बैठे वहाबी गोद में
और जैजैकार होगी ये भी नौबत आएगी

मुफ़लिसों के वास्ते स्मगलरों से राबिता
किस जहन्नुम से ये जन्नत की बशारत आएगी

जिस तरफ़ तहज़ीब करवट ले रही है इन दिनों
उस तरफ़ सब कुछ रहेगा पर मुसीबत आएगी

1997

ईसा की जो खाल बेच दें उन्हें मिली इन्जील 

आतंकी हैं परगतिसील
ज़िनाकार-हत्यारे-तस्कर सभी हुए जिबरील

वामन्थ से हाल मिल गया
मालपन्थ से माल मिल गया
कलापन्थ में अख़बारों में
उनको सुघड़ दलाल मिल गया
एक हाथ में मक्कारी है एक हाथ कन्दील

बड़े शहर का ये आलम है
हर दल्ला साहिब-ए-हशम है
हम नंगे तो घोर जहालत
वो नंगे तो कलाकरम है
उनको जो नंगा बोले उसकी निगाह अश्लील

कल्चर के जो मालबटोरा
सरमाए के रिशवतख़ोरा
उन्हें खुली ’आज़ादी’ इसकी
कर कुकर्म सम्मान-चटोरा
हर ज़लील हरक़त के हक़ में उनके पास दलील

पाँच सितारा अपरम्पारा
लगा उसी में लाल सितारा
जिसको फ़ौजें हरा न पाईं
उसे चरकटों ने दे मारा
ईसा की जो खाल बेच दें उन्हें मिली इन्जील ।

1999

करते करते ये ख़यालात ख़्वाब तक पँहुचे 

करते-करते ये ख़यालात ख़्वाब तक पहुँचे
चरते-चरते मेरे घोड़े सराब तक पहुँचे

आए उश्शाक़ सनम से हिसाब करने लगे
दायर-ए-इश्क़ में लग्ज़िश के बाब तक पहुँचे

ख़ुदा का कौल भी हथियारबन्द होता गया
इसी तज़ाद में वहशी किताब तक पहुँचे

1996

चिन्ताएँ वाजिब ही होती हैं 

लेकिन जब हमने तय कर ही लिया
कि गीताप्रेस से हमें नहीं सीखना
लोकप्रकाशन, लघुपत्रिका
सांस्कृतिक विकल्प, साक्षरता का कोई सबक़
और हनुमान प्रसाद पोद्दार के पास
हमें देने को धरा ही क्या
तो फिर हमें नहीं बचा सकती
लोर्का, शिम्बोर्स्का की लज्जास्पद नक़ल ।

2005

हम बोले हम ख़ुदमुख़्तार

न्यायपालिका ने अपना काम किया
हमने उसे हत्यारा घोषित कर दिया
तो विश्वविद्यालय और पुलिस ने अपना काम शुरू किया
तब हम न्यायपालिका की तरफ़ भागे
जब उसने हमें फटकार लगाई
हमने चुपके-चुपके न्यायाधीश को गालियाँ देना शुरू कर दिया
इस बीच विश्वविद्यालय ने अपना काम कर दिया
अब हमने कहा न्यायपालिका को अपना काम करने दो
तमाशा देखकर जनता बोली
भाई लोगो ये सिर्फ़ आपका नहीं
सबका विश्वविद्यालय है
आप लोग ये कर क्या रहे हो
हमने कहा सवाल पूछने वाले राष्ट्रवाद का शिकार हैं
हमें राष्ट्र से क्या मतलब
फ़िलहाल हमारे पास ज़्यादा ज़ुरूरी काम हैं
भटकाइए मत
देखते नहीं हम मतलब की ख़ातिर
हाल ही इस्तेमाल किए साथियों तक को दग़ा दे चुके हैं
इन्क़लाब बोला भाई लोग आप चाहते क्या हो
हम बोले तेरी हिम्मत कैसे हुई यह पूछने की
हम न्यूनतम ज़ुरूरत वाले ख़ुदमुख़्तार लोग
हमें चाहिए ही क्या

बाक़ी सब तो भगवत्कृपा से हो ही जाता है
अपने बन्दों के लिए कुछ पोशीदा फ़िक्सिंग
पट्टीदारों को गालियाँ देने के लिए स्वायत्त साधन
और दूसरों के जवान बच्चों को
दौलेशाह के चूहों में तब्दील करने का सनातन तिलिस्म ।

2016

दिल्ली में इस डर को देखा

असली को लतियाने वाले नकली के तेवर को देखा
खुसुर-पुसुर की कुव्वत देखी नैनामार ग़दर को देखा
गंगाजमनी लदर-पदर में गोताख़ोर हुनर को देखा
जे० एन० यू० की हिन्दी देखी परदेसी ने घर को देखा
मरियम जैसा भेस बनाए सखियों के लश्कर को देखा
निराधार बातों पर पैदा निराधार आदर को देखा
गयी शायरी मिले वज़ीफ़े दिल ने नई बहर को देखा
छक्के छूट गए भाषा के माया ने ईश्वर को देखा ।

2002

महाक्रान्ति का झटपट नूडल

सीत्कार हुंकार हो गई
फूत्कार ललकार हो गई
जन्नत भीतर ग़दर हुआ है
इन्कलाब में हुनर हुआ है

सब कुछ सब कुछ सब कुछ सब कुछ
कुछ नईं कुछ नईं कुछ नईं कुछ नईं
वतनपार-आतंकवाद की नई-नई कुछ खाद लगी है
सुविधाओं के गमले में कुछ लाल रंग के फूल खिले हैं

आयातित सरमाए के भी भाँति-भाँति के रंगबिरंगे
लचक भचक की लल्लू-लम्पट नारेबाज़ी बोल रही है
हर ज़लील हरक़त के हक़ में हैं हिसाब के नए सूरमा
महिला को जननाङ्ग दिखाते इन्कलाब के नए सूरमा

कलाकार व्यभिचार कुचाली खुसुर-पुसुर के सटक-शिरोमणि
राजकुँवर के वरदहस्त से अन्टा चढ़ी नकेल लगी है
पेशेवर पाखण्डी चमचे रूपवाद के लटक-शिरोमणि
मार्क्सवाद सब गया भाड़ में नाट्यवाद की सेल लगी है

तड़ीबाज़ गुरुओं का गूगल
महाक्रान्ति का झटपट नूडल
इसके भीतर कौन छुपा है
यह तिलिस्म कुछ होशरुबा है

ले सिस्टम से माल-मलाई अभय कुञ्ज के भीतर खिसको
अभी तो पार्टी शुरू हुई है इन्कलाब का चौकस डिस्को
वर्ग युद्ध की बड़ी लड़ाई रिन्कू-पिन्की करें चढ़ाई
सारे सन्त सुमन बरसावें जै जै धुनि चहँओर बधाई

मुबारक हो बच्चा बड़ा हो रिया है
मुबारक हो बन्दा ख़ुदा हो रिया है
मुबारक हो सबको समां ये सुहाना
ठहर के तो देखो जे क्या हो रिया है ।

2016

भक्तिकाल

कई दिनों से लिखना भूले
यहाँ लोग कविता लिखते थे
शायद ऊब गए हैं बन्दे
पहले असल ख़ुदा लिखते थे

वे दिन भी मुश्किल के दिन थे
शोषण और दमन का हल्ला
उथल-पुथल नागर जीवन में
दुखी गाँव घर गली मुहल्ला
पर सन्तों ने हार न मानी
कठिन कर्म का थामा पल्ला
सच्चे की सच्चाई लेकर
छोटे लोग बड़ा लिखते थे

दुनिया में फैली हिंसा को
कितनी बार सहा लोगों ने
सगुण विश्व की चिन्ताओं से
आगे भी देखा लोगों ने
जो भी देखा उसे सगुण का
प्रतिसंसार कहा लोगों ने
कोलाहल में घिरे मनीषी
ध्वनि से बाहर क्या लिखते थे

घोर अभाव अन्धेरा आँगन
टिमटिम-सी सच्चाई होगी
बालसुलभ उम्मीद लगाए
सदियों की बीनाई होगी
बेसूरत की ख़ूबसूरती
पंचभूत में पाई होगी
सूरदास जैसे लोगों में
रूपाकार दुआ लिखते थे ।

Leave a Reply

Your email address will not be published.