अच्छी कविताएँ नौकरों द्वारा नहीं लिखी जा सकतीं
कम-से-कम उनके द्वारा तो नहीं जो अपनी नौकरी के प्रति सचेत नहीं हैं

हर नौकरी एक छुरी होती है छोटी या बड़ी
जो हमारे कवि-हृदय को
थोड़ा-थोड़ा छीलती रहती है

एक दिन वह ठूँठ रह जाता
यद्यपि तब तक हमें रहने को
अच्छा घर मिल चुका होता
और हमारे बच्चे अमेरिका में
एम.बी.ए.या ऐसा ही कुछ पढ़ने गये होते हैं

तब हम कविताएँ नहीं लिखते
बस अँगीठी के पास आरामकुर्सी पर बैठे
चर्चित युवा कवियों की किताबें देखते हैं
कभी-कभार कविता भी लिख डालते हैं
यद्यपि मन-ही-मन उनकी व्यर्थता के प्रति आश्वस्त होते हैं
कोई नया संकलन भी आ सकता है हमारा
जो कि बहुत जल्दी छप जाता है
बनिस्पत उन दिनों के जब हम युवा थे फटेहाल
और ऊर्जा से भरी जानदार कविताएँ लिखते थे

यह हमारी मृत्यु का एक और लक्षण होता है
कि हमें इस फर्क का ख़्याल कभी नहीं आता।