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सरस्वती कुमार दीपक की रचनाएँ

चिड़िया आई

चिड़िया आई, तिनके लाई,
उड़ी फुर्र से, फिर से आई।

चिड़ा चिड़चिड़ा, चिड़िया भोली,
चूँ-चूँ-चूँ चिड़िया की बोली,
बोली, जैसे शरबत घोली,
सुन-सुन मन की बगिया डोली,
चिड़िया रानी, सबको भाई!

तिनके तोड़े, तिनके जोड़े,
ऊपर खींचे, नीचे मोड़े,
चिड़ा-चिड़ी के खेल निगोड़े,
काम अधूरे कहीं न छोड़े,
कितनी प्यारी बात सिखाई!

अपना घर, हम आप बनाएँ,
तिनका-तिनका जोड़ सजाएँ,
नहीं आँधियों से घबराएँ,
अपने घर बैठे, मुसकाएँ,
प्यार भरी हम लड़ें लड़ाई!

मिट्ठू का बाजा

कुछ परदेसी भूल गए,बरगद के नीचे बाजा-
बैठ गए संगीत सिखाने, अपने मिट्ठू राजा!
बाजा सुन सारे पशु आए
बाजा सुन, पंछी मुसकाए,
मोर नाचने लगा थिरककर,
कोयल ने भी गीत सुनाए।
बंदर मामा लेकर आए, केला ताजा-ताजा!
सा-रे-गा-मा की धुन न्यारी
सबको लगती थी अति प्यारी,
राम-राम जब मिट्ठू बोले
लगी बोलने टोली सारी।
सूँड पकड़कर भालू बोला, ‘हाथी भैया आ जा!’

हाथ उठा नाची तरकारी 

ताक लगाकर बैठी थीं,
मालिन की डलिया में तरकारी!
अवसर पाया, ताक-धिना-धिन
नाच उठीं सब बारी-बारी!
नींबू और टमाटर लुढ़के,
उछल पड़े तरबूजे,
काशीफल के साथ बजाते,
ढोल मगन खरबूजे!
ककड़ी अकड़ी और थाप-
कसकर तबले पर उसने मारी!
कद्दू काट मृदंग बनाकर,
नाची भिंड़ी रानी,
नीबू काट मंजीरों पर
कहती अनमोल कहानी,
बीच बजरिया, नाच निराला-
जमकर देख रहे नर-नारी!
लौकी गोभी नाक सिकोड़े,
सेम मेम-सी नाचे,
आलू और कचालू ने, थे
बोल मटर के बांचे,
पालक बालक जैसा डोले
चुलबुल मैथी की छवि न्यारी!

गुड़ियाघर

कितना सुंदर, कितना प्यारा,
गुड़याघर, यह गुड़ियाघर!
इसमें रहती गुड़िया रानी,
इसमें रहते गुड्डे राजा,
गुड़िया कहती नई कहानी,
गुड्डा रोज बजाता बाजा।
मस्ती की बस्ती में खोए
रहते बनकर बेखबर!
घर के ऊपर छत नहीं है
और नहीं घर में दीवारें,
हँसती गुड़िया, कभी न रोई-
गुड्डा कब लाया तलवारें?
गुड़ियाघर की अजब कहानी-
इनको नहीं किसी का डर!
इतने सारे खेल-खिलौने,
रहते कब से साथ हैं,
इनके हैं सब ठाठ सलोने-
कोई नहीं अनाथ हैं!
हाय-हाय खाने-पीने की-
यहाँ कौन करता आकर?
गुड़ियाघर वाले कहते हैं-
‘घर-घर में तुम खुशियाँ बाँटो’
जो पल-छिन हँसते रहते हैं-
साथ हँसो, सब बंधन काटो!
इस दुनिया को हमें बनाना-
गुड़ियाघर-सा बढ़िया घर।

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