Skip to content

सुनील कुमार पाठक की रचनाएँ

हम आ हमार बाबा 

हमरा झाँझर पलनिया पर-
अभियो हरसिंगार झरेला,
ओ गछिया से-
जवना के हमार बाबा
लगवले रहस,
बाकिर, अब हम
पलनिया के दुआरी पर-
‘जटहवा’ रोप देले बानी।
पलानी से बहरा निकलि के
जब हम चाहीले-
पसीनइल सूरज से
आपन अँखिया मिलावे के,
लउक जाला हमरा-
पलानी के टटिया पर
टँगल-टटाइल घाम,
आ बाहर छितराइल
सेराइल बालूई रेगिस्तान,
जवना पर अभी काल्ह ले
हमरा बाबा के गोड़न के
निशान रहे,
शायद रात में
जंगल के मनबहक भेड़िया
ओकरा के रौद देले बाड़े स॥

Leave a Reply

Your email address will not be published.