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अच्छी तरह ज़रा मुझे पहचान ज़िंदगी

अच्छी तरह ज़रा मुझे पहचान ज़िंदगी
इंसान हूँ मैं हज़रते -इन्सान ज़िंदगी।

पहने हुए है रेशमो -कमख़्वाब का क़फ़न
याराने-बेज़मीर की बेजान ज़िंदगी।

गैरों से पूछती है तरीक़ा नजात का
अपनों की साजिशों से परीशान ज़िंदगी।

मनमानियों का राज है सारे समाज में
जैसे हो कोई अहद न पैमान ज़िन्दगी।

बातिल के इक़्तिदार पे चीं-बर-जबीं नहीं
हक़ के सिपाहियों की तन आसान ज़िंदगी।

हमने लिखा है अपने शहीदों के ख़ून से
मक़्तल की दास्तान का उन्वान ज़िंदगी।

वो ज़ख़्म हूँ कि जिस पे बड़े एहतिमाम से
ख़ाली करे है अपने नमकदान ज़िंदगी।

कमज़र्फ़ मुहसिनों का सताया हुआ हूँ मैं
मुझ पर न कीजियो कोई एहसान ज़िंदगी।

मैंने बुरा किया जो तुझको बेवफ़ा कहा
अपने ‘ हफ़ीज़ का न बुरा मान ज़िंदगी।

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