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हमारे माँ-बाप / समझदार किसिम के लोग

चाहते हो
मायूस होना ?
क्यों चाहते हो ?
किसलिए चाहते हो ?
किसके लिए चाहते हो !!
कितने आज मायूस हैं
कभी जानने की इच्छा
जाहिर की है !
नहीं की न !
करोगे भी नहीं।
क्योंकि रौंदकर चलना
तुम्हें पसंद हैं
जैसे माँ सारा दिन
सारी रात खटती है
अपने में जीती है
और
परिवार की
महत्वाकांक्षाएं
माँ के सपने को
रौंदकर आगे
बढ़ती है
और माँ
उफ़ भी नहीं करती
हकीकत है यही
सड़क पर चलती गाड़ियां
सड़क वही है
माँ-बापू देश में
पेंशन और टेंशन में
काट रहे है जीवन के
शेष दो-चार दिन
और
बहू-बेटा
पेरिस में मना रहे
छुट्टियां!!
वाह रे मेरे बच्चो
काश
जान जाते
कि बूढ़े माँ-बाप के
किसी कोने में
एक दिल है
और उस दिन दिल की एक
किताब है
जिस पर लिखा है
मेरे बच्चो
तुम्हें तकलीफ ना हो
और उसके लिए
मैं हूँ ना!
बच्चों की नजर में
बूढ़े माँ-बाप का-
कोई मोल नहीं
वाकई में सच है
आज का सच
जिसे नकारा नहीं जा सकता
मानो या ना मानो

दुष्टता / समझदार किसिम के लोग 

अपने स्वार्थ की खातिर
दुष्ट
आपको ऐसी कंटीली झाड़ में
फंसा देगा
कि आप निकलोगे और फंसोगे
और
कोसोगे उसको
जो आपका कभी सगा नहीं था
और तुम अब तक उसे
पिलाते रहे दूध!

विश्व हिंदी सम्मेलन / समझदार किसिम के लोग

हिंदी की सेवा करते
हिंदी विद्वान
कितनी करते हैं सेवा
या
स्वाह!
आप-हम बेहतर जानते हैं
फिर भी मुंह ताकते हैं
रस्मी हिंदी दिवस का
या
मंत्रालय की ओर
कि कब अपना नाम भी
विश्व हिंदी सम्मेलन में
नेतृत्व करते अभियान से
जुड़ सके!
और हम यह भूल जाते हैं
कि आज हिंदी
संपर्क भाषा के साथ
ऐसे लोगों से जुड़ चुकी है
जो हर सम्मेलन में
नजर आते हैं
जिनके पांव कब्र में है
लेकिन
मगर
किंतु
परंतु
उन्हें यकीनन भरोसा है
कि उनके सहारे ही
हिंदी का भला होगा
और वे चकाचक कपडे़
चमकाए
सिल्क आवरण पहने
मंद-मंद मुस्कुराते हुए
विश्व में हिंदी का
परचम
और कई पेग चढ़ाकर
स्वदेश लौट आते है।
अपने को एक नये अध्याय
से जोड़ने के लिये

आज की परिभाषा / समझदार किसिम के लोग

इंसान ने आज गढ़ ली परिभाषा
खुद की
वो बन गया है ‘उत्पाद’
बिक रहा है बाजार में
चाहे आटो एक्सपो हो या
किसी नामी कंपनी का
अंडरवियर
उसे अब शरम नहीं
वैसे भी
कोणार्क की मूर्तियां हो
या
खजुराहो
की
क्या फर्क पड़ता है!
संबंधों में ही
कड़वाहट घुल चुकी है
चाय की मिठास भूले लोग
चांदनी चौक से
कतराने लगे हैं
लेस्बियन/जिगे़लो के
इस जंजाल में
अंतरजाल की चमक में
अपना पड़ोस और
अपनी अहमियत
तलाशते हम
गुगल युगीन लोग
उस दिन के इंतजार मंे हैं
जब बच्चों के नाम होने लगेंगे
याहू मैसेंजर
ट्वीटर या फेसबुक!
नई पीढ़ी की दुल्हनें
ब्याह संग लाने लगंेगी
अपने नवजात शिशु
उसे दहेज में माँ-बाप देंगे
लेपटॉप, नोटबुक और
अत्याधुनिक मोबाईल
एंड्रॉयड फोन
और हम आप
तस्वीरों में टंगे
अपने नौनिहालों की
हरकतों पर
तमाशाबीन बनकर
चुपचाप देखेंगे
इस जुनूनी हलचलों को
जिस पर हमारा कोई वजूद
नहीं चलेगा!
हमारी तस्वीरों पर
उनका हक होगा
वे जब चाहे
किसी को भी ‘टैग’
कर देंगे
कोई ना चाहते हुए भी
हमें ‘लाईक’ कर देगा
इच्छा हुई तो
कमेंट भी दे देगा
हमारी बला से
और क्या

आज की दुनिया / समझदार किसिम के लोग

कितनी बार
आप मरते हो ?
जीवन में
एक बार !
नहीं कई-कई बार
मास्टर, प्रेयसी, पिता, पत्नी
बच्चों, सगे-संबंधियों की
टीका-टिप्पणी पर
पड़ोसियों से बदसलूकी पर
बॉस की कुटिलताओं पर
आप अनदेखी भी तो
नहीं कर सकते!
इसलिए मरते रहो
खुद ब खुद
एक दिन हकीकत का
अमली जामा खुद ब खुद
पहना दिया जाएगा
फ्लाने दिन फ्लाना
मर गया!!
बड़ा चंगा बंदा था
मिलनसार था
सबके काम आता था
पर जी
होनी को कौन टाल सकता है
फ्लाने के जनाजे में
कईयों ने साथ दिया
लोग आए रस्मी हुए
आंसू टपकाए
निकल लिए
कुछ इतने सहृदय निकले
फेस बुक पर
श्रद्धांजलि दी
फोटो भी चस्पां कर दी
फ्लाना लेखक
संसार छोड़ गया
बड़ी बेहतरीन गज़लें थी इनकी
और लाईक कमेंट का
सिलसिला शुरू

साहब और बड़े साहब / समझदार किसिम के लोग

साहब
और बड़े साहब क्या होते हैं ?
एक मक्खन की छोटी टिक्की
और
दूसरी आधा किलो की
दोनों को चापलूसी पसंद है
किसी को कम
या किसी को ज्यादा
यदि आप इस पवित्र यज्ञ की
परिभाषा से परिचित हैं
तो वर्षभर में
आपकी अनगिनत यात्राएं
होंगी
और यदि आप इस
पुराण प्रक्रिया से
अनभिज्ञ हैं तो
आप बैठे रहेंगे कतार में
और दूसरे महसूस करेंगे
आपके बारे में
जिस व्यक्ति का नंबर
मिला रहे हैं
वह आपके संपर्क दायरे से
बाहर है
आप प्रयास करते रहें!!!

ये जिंदगी / समझदार किसिम के लोग 

मसरूफ़ होती इस जिंदगी में
समय नहीं किसी के पास
कोई पगला रहा है किसी को
तो
कोई पागल बना रहा है
कोई बाल सुखा रहा है
या सुखा रही है
या जमाना है जो बड़ा
कारगर है
जहां कोई कारीगर है
तो कोई कारपेंटर है
कोई सुनार तो कोई लुहार
जान लीजिए
आप जो है
वो बने रहिए
दूसरे के मामले में
टांग ना अड़ाएं
अगर
अड़ाएंगे तो
परेशानी में पड़ जाएंगे
और मुझे पता है
कि आप कोई परेशानी नहीं चाहते
है ना!
बी.पी. शुगर, कमर में दर्द
इत्यादि वगैरह-वगैरह
मसलन
कई चीजें, कई दिक्कतें
शुरू हो सकती हैं
इनसे बचें
जब तक
हो सकता है…
एक दिन लपेटों में
आएंगे
यह तय है

सब बेगाने / समझदार किसिम के लोग

अपना नहीं रहा कोई अपना-सा
इस संसार में
सब बेगाने लगते हैं
खुशियां भर तलाश रहे
हम उद्यानों में
घर की बगिया उदास है
तुलसी का पौधा मायूस है
सुस्त है
बगल का मनीप्लांट
खामोश है सुस्त है
उसको भी तो
चाहिए आपका दुलार
प्यार और स्नेह
लेकिन एक आप हैं
जो तलाश रहे हैं बाहर
जहां कुछ नहीं
कुछ खास
और यही है आपको
उम्मीद और विश्वास
देखें कर पाते हैं

कौन चतुर सुजान / समझदार किसिम के लोग 

सबने कन्नी काट ली
मुंह मोड़ लिया
पैसे की दोस्ती
कितने दिन की!
यह मुहब्बत या
मौका परस्ती कितने दिन की
कोई नहीं जानता!
पर
मैं जानता हूँ
समय कम है
आप पागल बना रहे हैं
किसी को
यह आप का भ्रम है
और दूसरा जिसे
आप बेवकूफ समझ रहे हैं
वह अपनी
मूर्खता पर मुस्करा रहा है
बिना कहे

ठस्स होती जिंदगी / समझदार किसिम के लोग

ठस्स होती जिंदगी में
बचा ही क्या है
खोने को और बोने को
बीज अंकुरित होने से पहले ही
नष्ट हो गए
गोद में खिलाने से पहले ही
भ्रूण हत्या
अपनी फिगर खराब न हो जाए,
बोतल का दूध
दूसरे के कंधे पर बंदूक
अपना उल्लू सीधा करते लोग
जिस्म बेचती आधुनिकाएं
किडनी किंग
गोदामों में बंद पड़ी किताबें
चौराहों पर एंट्री उगाहते
ट्रैफिक हवलदार
खोने को मुद्रा शेयर बाजारी-कारोबार
अवैध निर्माण, प्रभात फेरी
हर-हर महादेव का जोर
बजरंग दल, सिमी की खबरें
नेताओं का भाषण
आर्थिक मंदी से घबराए लोग
सोना महंगा होगा
बाजार में खरीदारी का जोर
हलवाईयों की दुकान में
सजी मिठाइयां इतराती हैं
मॉल में पंडित जी ‘हाथ’ देखते हैं
चौराहे चुगलियां करते हैं
मॉरिस-नगर हो या
छात्रावास के दरवाजे
सभी उमंग से भरे पड़े हैं
दुर्घटना, घटना, बहना,
गहना, सजना, बिकना
अनिवार्य अंग हो चुके हैं
रोजमर्रा के
बूढे भी दे रहे गति
वर्तमान को
समाज को
अपने अतीत पर इतराते हैं
च्वयनप्राश खाते हैं
अनार का रस पीते है।
महिलाएं किटी में या कीर्तन में रमी हैं
और अधेड़ होते मर्द
रेव पार्टी में मस्त हैं
नीम हकीम भी ऐंठ रहे
निम्न आय वाले रोगियों को
बार बालाएं ‘बार’ से निकल
नौटंकियों में बारातों में
झक़ास मस्त है
व्यापारी अपना मुनाफा कमाने में व्यस्त है
चाहे मिलाना पड़े उसे आलुओं को सीमेंट में
उसको फर्क नहीं पड़ता
ना ही पड़ेगा
सरकारी मास्टर ट्यूशन पर
जोर देता है
राशन की चीनी कार्डधारियों को
नहीं मिलती
कितने ही फार्म भर लो
डी.डी.ए. क्या जी.डी.ए. का
मकान क्या फ्लैट नहीं निकलेगा
25 की उम्र में रोजगार
कार्यालय में आवेदन कर गए
अगर गलती से
रिटायर उम्र तक भी चिट्ठी
नहीं आएगी कि प्यारे
नौकरी खाली है
मकान बनाओ तो रिश्वत
लाइसेंस बनाओ तो रिश्वत
और तो और
डेथ सर्टिफिकेट के लिए भी
‘घूस’ माँगते हैं
क्या जमाना है यारो
कुछ महिला पत्रकार
‘नीट’ पीती है
शाम होते ही विचारों का
मंथन प्रेस क्लब में
दिखना शुरू होता है
कला दीर्घाओं को आत्मसात
करते कला चिपकू
श्रीराम सेंटर में
या तो नाटक देखेंगे
या नुक्कड़ पर चाय पियेंगे
कुछ साथी हो संुदर से
तो समोसा लेंगे
कहेंगे, नहीं तो
सुंदर-सा बहाना ठांेक कट लेंगे!
‘मेट्रो’ में आते लोग
जाते लोगों की
जीवन शैली बदल गई है
लेकिन रिक्शा वालों की नहीं
दस बनते हांे तो पच्चीस माँगते हैं
अपने को धकेलते लोग
चल रहे हैं
मुरगे बिक रहे हैं
कहीं 100 में कहंी 120 में
क्वालिटी का भरोसा नहीं
हलक से उतर जाएंगे
तभी न ठीक होंगे
दो पेग पी चुके
घिस्सू ने कहा था
कबाड़ियों का संसार भी
विचित्र है
जमाने भर का गंद बटोर लायेंगे
बदले में देंगे
स्टील के बर्तन
दो साड़ी की जगह एक बाल्टी
चार पेंट की जगह
एक स्टील की परात
इसी उधेड़बुन में लगी है
औरतें!
औरतें जानती हैं
खर्च करना
गृहस्थी बनाना और
बिगाड़ना
या बुद्धू बनाना
तरीके से सलीके से
आदमी बुद्धू बनता है
यह वह भी जानता है
टेलिविजन चैनल समाचार बनाता है
इतना पेलता है
कि सोचने वाला दिमाग सुन्न हो जाए
रही सही ताकत कहीं लुट जाए
‘वियाग्रा’ को अपनाते लोग
लोग ही कहां रहे
अध्यात्म से दूर अब
उन्होंने राह पकड़ ली है
भोग की
और अब वे निकल गए
उस गली से
जहां नुक्कड़ को सड़क
मुड़ती है
नाले से सटे श्मशान घाट को
लकड़ियों के ढेर पर लेटा हो
फूलसिंह पूर्व नेता
या दस्यु सुंदरी चमेली बाई
तो पत्रकार साथी
कैमरा कंधे पर लटकाये
यहां-वहां शॉट लेंगे
या किसी कि ‘बाइट’
और निकाल लेंगे
‘नवयौवना’ एक ही रात में
कंप्रोमाइज कर बैठी
एक ‘सी’ ग्रेड की फिल्म
में अभिनेत्री और
फिर
वही होना था जो
उनका हुआ था
जी हां!
मेहनत करना कोई नहीं चाहता
पंजाब के गांव बिहारियों से
भरे पड़े हैं
अपने खेत में जुतना
मजूरी करना पसंद नहीं
अमृतसर हो या दिल्ली
गाजियाबाद हो या फरीदाबाद
रिक्शा चलाते मिल जायेंगे
बीसियों, तीसियों
चौराहे भरे पड़े हैं
ऐसे लोगों से
जिन्हें काम की तलाश है
और कामियों को कामगारों की
प्रूफ रीडरों, लेखकों
कवियों को मंच की
रचनाओं को कुशल संपादक की
रचनाओं को प्रकाशक की
यानि कारवां लंबा है
ओ माई
क्या गंगा में डुबकी लगाई है
जरा वहां लेना
वहां काई बहुत थी
शायद उसने सुना नहीं
निकल गया
ऐसे ही जिंदगी निकल
जाती है
बहुत पास से और बहुत पास रहते हुए
भी
दो पड़ोसी कभी नहीं मिल पाते
पति-पत्नी में अनबन
रहती है
पता नहीं
जिंदगी कहां रहती है ?
कहां हो जिंदगी
तुम्हारी ही तलाश है
मेरा पता नोट कर लो
या मेरे मेल पर मेल कर देना
मिलते ही जवाब दूंगा
जवाब मुझे पसंद है
चाय पिलाऊंगा गरम-गरम
खांसी ठीक हो जाती है
माँ कहती थी
माँ तो रही नहीं
कोई बात नहीं
चाय तो तुम्हें
पिलाऊंगा ही
यह वायदा रहा
और वायदा मैं –
कभी तोड़ता नहीं
सुना तुमने…

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