Skip to content

ख़ुद से रूठे हैं हम लोग

ख़ुद से रूठे हैं हम लोग।
टूटे-फूटे हैं हम लोग॥

सत्य चुराता नज़रें हमसे,
इतने झूठे हैं हम लोग।

इसे साध लें, उसे बांध लें,
सचमुच खूँटे हैं हम लोग।

क्या कर लेंगी वे तलवारें,
जिनकी मूँठें हैं हम लोग।

मय-ख़्वारों की हर महफ़िल में,
खाली घूंटें हैं हम लोग।

हमें अजायबघर में रख दो,
बहुत अनूठे हैं हम लोग।

हस्ताक्षर तो बन न सकेंगे,
सिर्फ़ अँगूठे हैं हम लोग।

मत पूछिए क्यों पाँव में रफ़्तार नहीं है

मत पूछिए क्यों पाँव में रफ्तार नहीं है।
यह कारवाँ मज़िल का तलबग़ार नहीं है॥

जेबों में नहीं, सिर्फ़ गरेबान में झाँको,
यह दर्द का दरबार है बाज़ार नहीं है।

सुर्ख़ी में छपी है, पढ़ो मीनार की लागत,
फुटपाथ की हालत से सरोकार नहीं है।

जो आदमी की साफ़-सही शक्ल दिखा दे,
वो आईना माहौल को दरकार नहीं है।

सब हैं तमाशबीन, लगाए हैं दूरबीन,
घर फूँकने को एक भी तैयार नहीं है।

आदमी की अजब-सी हालत है 

आदमी की अजब-सी हालत है।
वहशियों में ग़ज़ब की ताक़त है॥

चन्द नंगों ने लूट ली महफ़िल,
और सकते में आज बहुमत है।

अब किसे इस चमन की चिन्ता है,
अब किसे सोचने की फुरसत है?

जिनके पैरों तले ज़मीन नहीं,
उनके सिर पर उसूल की छत है।

रेशमी शब्दजाल का पर्याय,
हर समय, हर जगह सियासत है।

वक़्त के डाकिये के हाथों में,
फिर नए इंक़लाब का ख़त है।

सतह के समर्थक समझदार निकले /

सतह के समर्थक समझदार निकले
जो गहरे में उतरे गुनहगार निकले

बड़ी शान-ओ-शौकत से अख़बार निकले
कि आधे-अधूरे समाचार निकले

ये जम्हूरियत के जमूरे बड़े ही
कलाकार निकले, मज़ेदार निकले

बिकाऊ बिकाऊ, नहीं कुछ टिकाऊ
मदरसे औ’ मन्दिर भी बाज़ार निकले

किसी एक वीरान-सी रहगुज़र पर
फटे हाल मुफलिस वफादार निकले

गुलाबों की दुनिया बसाने की ख़्वाहिश
लिए दिल में जंगल से हर बार निकले

सौ-सौ प्रतीक्षित पल गए

सौ-सौ प्रतीक्षित पल गए
सारे भरोसे छल गए
किरणें हमारे गाँव में
ख़ुशियाँ नहीं लाईं ।

महका नहीं मुरझा हृदय
चहकी नहीं कुछ ताज़गी
मानी नहीं, मानी नहीं
पतझर की नाराज़गी

मरते रहे, खपते रहे
प्रतिकूल धारों में बहे
लेकिन सफलता दो घड़ी
मिलने नहीं आई ।

अपना समय भी ख़ूब है
भोला सृजन जाए कहाँ
छल-छद्म तो स्वाधीन है
ईमान पर पहरा यहाँ

औ’ इस कदर गतिरोध पर
जग वृद्ध के गतिरोध पर
नाराज़ बिल्कुल भी नहीं
नादान तरुणाई ।

पर ख़ुदकुशी होगी नहीं
छाई रहे कितनी ग़मी
हर एक दुख के बाद भी
जीवित रहेगा आदमी

हर लड़खड़ाते गान को
गिरते हुए ईमान को
अक्षर किसी दिन थाम लेंगे
प्रेम के ढाई ।

चढ़ गया दिल पर इशारों का नशा 

उनके कहने से गुनहगार हुए बैठे हैं,
उनकी ख़ातिर ही सज़ावार हुए बैठे हैं ।
एक कारण है महज़ अपनी मुस्कराहट का,
उनकी नज़रों में गिरफ़्तार हुए बैठे हैं ।

उनकी हर शिकायत का ज़हर पी लूँगा,
उनकी हर एक शरारत का ज़हर पी लूँगा ।
बाद मरने के मेरे उनको मुहब्बत तो रहे,
इसलिए झूम कर नफ़रत का ज़हर पी लूँगा ।

रात को है चाँदतारों का नशा,
फूल को मधुमय बहारों का नशा ।
आँख क्या उनसे मिली है प्यार से,
चढ़ गया दिल पर इशारों का नशा ।

रूप की रेशमी बाँहों का गिला क्या करना,
उनकी रूठी-सी निगाहों का गिला क्या करना ।
ख़ुद ही लाख प्रयत्नों पे भी न सुधरे हमीं,
आज फिर उनके गुनाहों का गिला क्या करना !

तुम मिल गए किरण से

दुख की अधीर बदली छितरा गई गगन से ।
तुम मिल गए किरण से, हम खिल गए सुमन से ।

ये प्राण बेसहारे
संकेत पर तुम्हारे
कुछ कह गए अधर से, कुछ कह गए नयन से ।
तुम मिल गए किरण से, हम खिल गए सुमन से ।

मृदु प्यार में युगों से
पाले हुए भरोसे
फिर होड़ ले रहे हैं हर सृष्टि के सृजन से ।
तुम मिल गए किरण से, हम खिल गए सुमन से ।

हर सांस का नयापन
विश्वास का नयापन
कहता महक-महक जा बहके हुए पवन से ।
तुम मिल गए किरण से, हम खिल गए सुमन से ।

कुछ इस तरह दशा है
छाया हुआ नशा है
ज्यों मुक्ति मिल गई हो नवसत्य को सपन से ।
तुम मिल गए किरण से, हम खिल गए सुमन से ।

दादी अम्माँ 

हलवा खाने वाली अम्माँ,
लोरी गाने वाली अम्माँ ।
मुझे सुनातीं रोज़ कहानी,
नानी की हैं मित्र पुरानी ।
पापा की हैं आधी अम्माँ,
मेरी पूरी दादी अम्माँ ।

राजा-रानी 

रामनगर से राजा आए
श्यामनगर से रानी,
रानी रोटी सेंक रही है
राजा भरते पानी ।

गुड़िया की शादी

लड्डू, बरफी जमकर खाओ
ढोल-मँजीरे खूब बजाओ ।
है नन्ही गुड़िया की शादी
नहीं किसी बुढ़िया की शादी ।

चूहा-बिल्ली

बिल्ली-चूहा, चूहा-बिल्ली,
साथ-साथ जब पहुँचे दिल्ली।
घूमे लालकिले तक पहले,
फिर इंडिया गेट तक टहले।
घूमा करते बने-ठने से,
इसी तरह वे दोस्त बने से।

चिड़िया

फुदक-फुदककर नाची चिड़िया,
चहल-पहल की चाची चिड़िया ।
लाई ख़बर सुबह की चिड़िया,
बात-बात में चहकी चिड़िया

लड्डू ही लड्डू

एक-एक यदि खाएँ लड्डू
तो कितने ले आएँ लड्डू,
केवल दो लड्डू ले आएँ
एक-एक हम दोनों खाएँ।

अगर चार ले आएँ लड्डू
तो फिर दो बच जाएँ लड्डू,
तब कैसे बच पाएँ लड्डू
दोनों दो-दो खाएँ लड्डू!

हाथी ने हाथ दिखाए 

हाथी ने यों हाथ दिखाए,
लम्बे दाँत बहुत शरमाए।

एक हाथ से गन्ना खींचा,
कसकर उसे सूँड से भींचा।

झूम-झूम सारा रस गटका,
कम से कम होगा दो मटका।

Leave a Reply

Your email address will not be published.