चंद और शेर

निगहे-क़हर ख़ास है मुझपर।यह तो अहसाँ हुआ सितम न हुआ॥

अब करम है तो यह मिला है मुझे।

कि मुझी पर तेरा करम न हुआ।।

गुल में वो अब नहीं है जो आलम था खार का।

अल्लाह क्या हुआ वो ज़माना बहार का॥

उसको भूले हुए तो हो ‘फ़ानी’।

क्या करोगे अगर वोह याद आया॥

बा-खबर है वोह सबकी हालत से।

लाओ हम पूछ लें न हाल अपना॥

फुटकर शेर

अल्लाह रे एतमादे-मुहब्बत[1] कि आज तक।हर दर्द की दवा है वोह अच्छा किये बगैर॥

निगाहें ढूँढ़ती हैं दोस्तों को और नहीं पाती।

नज़र उठती है जब जिस दोस्त पर पड़ती है दुश्मन पर॥

न इब्तदा की ख़बर है न इन्तहा मालूम।

रहा यह वहम कि हम हैं, सो वोह भी क्या मालूम?

यह ज़िन्दगी की है रूदादे-मुख़्तसिर[2] ‘फ़ानी’!

वजूदे-दर्दे-मुसल्लिम,[3] इलाज ना मालूम॥

किस ज़ाम में है ऐ रहरवेग़म![4] धोके में न आना मंज़िल के।

यह राह बहुत कुछ छानी है, इस राह में मंज़िल कोई नहीं॥

कुछ फुटकर शेर

रफ़्तए-नज़र[1] हो जा, सबसे बेख़बर हो जा।खुल गया है राज़ अपना खुल न जाये राज़ उनका॥

फ़रेबे-जल्वा और कितना मुकम्मिल ऐ मुआ़ज़ल्लाह।

बड़ी मुश्किल से दिल को बज़्मे-आलम से उठा पाया॥

हाय क्या दिन है कि नक़्शे-सजदा है और सर नहीं।

याद है वोह दिन कि सर था और वबालेदोश[2] था।

घर खै़र से तक़दीर ने वीराना बनाया।

सामाने-जुनू[3] मुझ से फ़राहम [4]न हुआ था॥

बालींपै [5] जब तुम आये तो आई वोह मौत भी।

जिस मौत के लिए मुझे जीना ज़रूर था॥

थी उनके सामने भी वही शाने-इज़्तराब[6]

दिल को भी अपनी वज़अ़पै कितना ग़रूर था।

कुछ और फुटकर शेर

यूँ सब को भुला दे कि तुझे कोई न भूले।दुनिया ही में रहना है तो दुनिया से गुज़र जा॥

क्या-क्या गिले न थे कि इधर देखते नहीं।

देखा तो कोई देखनेवाला नहीं रहा।।

एक आलम को देखता हूँ मैं।

यह तेरा ध्यान है मुजस्सिम क्या॥

फ़ुरसते-रंजेअसीरी दी न इन धड़कों ने हाय।

अब छुरी सैयाद ने ली, अब क़फ़स का दर खुला॥

मंज़िले-इश्क़ पै तनहा पहुँचे कोई तमन्ना साथ न थी।

थक-थक कर इस राह में आख़िर इक-इक साथी छूट गया॥

माल-ए-सोज़-ए-ग़म हाए

माल-ए-सोज़-ए-ग़म हाए! निहानी देखते जाओ
भड़क उठी है शम्मा-ए-ज़िंदगानी देखते जाओ

चले भी आओ वो है क़ब्र-ए-फ़नि देखते जाओ
तुम अपने मरने वाले की निशानी देखते जाओ

अभी क्या है किसी दिन ख़ूँ रुलायेगा ये ख़ामोशी
ज़ुबान-ए-हाल कि जद्द-ओ-बयानी देखते जाओ

ग़रूर-ए-हुस्न का सदक़ा कोई जाता है दुनिया से
किसी की ख़ाक में मिलती जवानी देखते जाओ

उधर मूँह फेर कर क्या ज़िबाह करते हो, इधर देखो!
मेरी गर्दन पे ख़ंजर की रवनी देखते जाओ

बहार-ए-ज़िन्दगी का लुत्फ़ देखा है और देखोगे
किसी का ऐश मर्ग-ए-नागहानी देखते जाओ

सुने जाते न थे तुम से मेरे दिन रात के शिकवे
कफ़न सरकाओ मेरी बे-ज़ुबानी देखते जाओ

वो उठा शोर-ए-माताम आख़री दीदार-ए-मय्यत पर
अब उठा चाहते हैं नाश-ए-फ़नि देखते जाओ

कारवाँ गुज़रा किया हम रहगुज़र देखा किये

करवाँ गुज़रा किया हम रहगुज़र[1] देखा किये
हर क़दम पर नक़्श-ए-पा-ए- राहबर[2] देखा किये

यास जब छाई उम्मीदें हाथ मल कर रह गईं
दिल की नब्ज़ें छुट गयीं और चारागर[3] देखा किये

रुख़[4] मेरी जानिब[5] निगाह-ए-लुत्फ़[6] दुश्मन की तरफ़
यूँ उधर देखा किये गोया[7] इधर देखा किये

दर्द-मंदाने-वफ़ा की हाये रे मजबूरियाँ
दर्दे-दिल देखा न जाता था मगर देखा किये

तू कहाँ थी ऐ अज़ल[8] ! ऐ नामुरादों की मुराद !
मरने वाले राह तेरी उम्र भर देखा किये