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खिड़कियाँ खोल दो

वक़्त के सामने
दीवार बनकर
खड़े मत रहो।
लकीर के फ़क़ीर बनकर
अड़े मत रहो।

बन्दरिया के लिपटाये रहने से
उसका मरा बच्चा जी तो नहीं जाता!
सड़कर-गलकर
उसका अस्तित्व घुलकर
बह जाता है
समय के साथ।

तुम्हारी तो नाक भी है
और दिल और दिमाग़ भी है
फिर क्यों सड़ाँध को
अपनाए हुए हो?
इनसान को इनसानियत से
बेदख़ल करने वाला मनु
आज भी तुम्हारे लिए
पूजित क्यों है?
न्यायालय के ऐन सामने
तुमने
अन्याय के इस प्रतीक की प्रतिमा लगाकर
किस समझ और प्रगतिशीलता का
परिचय दिया है?
इतिहास
मात्र पढ़ने और डिग्रियाँ लेने की
वस्तु नहीं होती मित्रो!

वह तो सबक़ और सीख का
एक आईना है
अपनी पराजयों और
पिछड़ेपन का प्रतिबिम्ब
इसमें देखकर भी
फूट और विद्वेष के जनक हो तुम
नहीं पहचान पाते तो
तुम्हें क्या कहें?

इतना ही कहूँगा
वक़्त के सामने
दीवार बनकर
खड़े मत रहो
उसके किसी झोंके से
ध्वस्त और भूसात होने से पहले
खोल दो खिड़कियाँ
दिल की और दिमाग़ की भी
आने दो ताज़ा हवा

ताकि सड़ाँध से घुट-घुट कर
जीने से बच जाएँ
हमारी आने वाली पीढ़ियाँ!

पीढ़ियों के सवाल

खुल गयी हैं खिड़कियाँ
आने लगी है ताज़ा हवा
युगों-युगों की घुटन
अब घट रही है
तुमने तो हमें बना दिया था
अभागा और पतित
अधिकारों से वंचित
सेवा भर करने वाला
मानव-पशु
किन्तु तुम्हारा वह सच
दुनिया का सबसे बड़ा झूठ था

हम जान गये हैं कि
हम अभागे नहीं हैं
हमारा भी हक़ है, हिस्सा है
देश के धन
देश की धरती
और सत्ता में
हमें इनसे वंचित करने की
तुमने जो साज़िश की थी
उसकी अब पोल खुल चुकी है
तुम्हारे ज़ुल्मों का खाता-बही
अब हम पढ़ सकते हैं
उनका हिसाब भी माँग सकते हैं
भरपाई भी करा सकते हैं
यह सवाल हमारे अकेले का नहीं
पीढ़ियों का है
जिसका उत्तर तुम्हारे पास नहीं है

हम जानते हैं
अभी कई लोग सोये हुए हैं
तुमने उन्हें दूध में
जो अफीम मिला-मिलाकर
पिलायी थी
उसका असर एकदम जाएगा भी नहीं
फिर भी
सवेरा को तुम कब तक
रोक सकते हो?

सूरज का रथ तो चल पड़ा है
उषा की लालिमा
तुम भी तो देख रहे हो
पैसों की दीवारों
और शब्दों के अम्बारों से
उसे कब तक
ढँक सकते हो
आने वाली पीढ़ियाँ भी
बिना पेट के
पैदा होने वाली नहीं हैं
न बिना मष्तिष्क के
जब रात थी
तब तुम्हारी चल गयी
खूब डाके मार लिये
किन्तु दिन के उजाले में
यह कब तक चलाओगे?
कोटि-कोटि मानव
तुम्हारी डाकेज़नी को
कब तक करेंगे दरगुज़र

फूँका जा चुका है
संघर्ष का शंख
इस संघर्ष के समापन पर
तुम्हें सिंहासन ख़ाली करना होगा
करना ही होगा!

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