ज़िन्दगी हमारे लिए आज भार हो गई!
ज़िन्दगी हमारे,
लिए आज भार हो गई!
मनुजता की चूनरी,
तो तार-तार हो गई!!
हादसे सबल हुए हैं
गाँव-गली-राह में,
खून से सनी हुई
छुरी छिपी हैं बाँह में,
मौत ज़िन्दगी की,
रेल में सवार हो गई!
मनुजता की चूनरी,
तो तार-तार हो गई!!
चीत्कार, काँव-काँव,
छल रहे हैं धूप छाँव,
आदमी के ठाँव-ठाँव,
चल रहे हैं पेंच-दाँव,
सभ्यता के हाथ,
सभ्यता शिकार हो गई!
मनुजता की चूनरी,
तो तार-तार हो गई!!
वानर बैठा है कुर्सी पर, हुई बिल्लियाँ मौन!
वानर बैठा है कुर्सी पर,
हुई बिल्लियाँ मौन!
अन्धा है कानून हमारा,
न्याय करेगा कौन?
लुटी लाज है मिटी शर्म है,
अनाचार में लिप्त कर्म है,
बन्दीघर में बन्द धर्म है,
रिश्वत का बाजार गर्म है,
हुई योग्यता गौण!
अन्धा है कानून हमारा,
न्याय करेगा कौन?
घोटालों में भी घोटाले,
गोरों से बढ़कर हैं काले,
अंग्रेज़ी को मस्त निवाले,
हिन्दी को खाने के लाले,
मैकाले हैं द्रोण!
अन्धा है कानून हमारा,
न्याय करेगा कौन?
संसद में ज़्यादातर गुण्डे,
मन्दिर लूट रहे मुस्टण्डे,
जात-धर्म के बढ़े वितण्डे,
वार बन गये सण्डे-मण्डे,
पनप रहे हैं डॉन!
अन्धा है कानून हमारा,
न्याय करेगा कौन?
अडिग रहे हैं, अडिग रहेंगे
अडिग रहे हैं, अडिग रहेंगे
सदा बढ़े हैं, सदा बढ़ेंगे!
हम तो दरिया का पानी है
रुककर हम तो नहीं सड़ेंगे!!
कितनों ने सन्देशे भेजे
कितनों से भिजवाए गए
कितनों ने आकर धमकाया
कितनों ने जमकर फुसलाया
हम भारत के हैं बाशिन्दे
पर्वत बन कर डटे रहेंगे!
हम तो दरिया का पानी है
रुककर हम तो नहीं सड़ेंगे!!
हममें गहराई सागर की
चाह नही हमको गागर की
काँटों पर हम चलने वाले
हम अपनी धुन के मतवाले
हम जमकर के लोहा लेंगे
दुश्मन से हम नही डरेंगे!
हम तो दरिया का पानी है
रुककर हम तो नहीं सड़ेंगे!!
छाँव वही धूप वही, दुल्हिन का रूप वही
छाँव वही धूप वही
दुल्हिन का रूप वही
उपवन मुस्काया है!
नया-गीत आया है!!
सुबह वही शाम वही
श्याम और राम वही
रबड़-छन्द भाया है!
नया-गीत आया है!!
बिम्ब नये व्यथा वही
पात्र नये कथा वही
माथा चकराया है!
नया-गीत आया है!!
महकी सुगन्ध वही
माटी की गन्ध वही
थाल नव सजाया है!
नया-गीत आया है!!
सूखा आषाढ़ है
भादों में बाढ़ है
कुहरा गहराया है!
नया-गीत आया है!!