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ख़ुश्क ज़ख़्मों को कुरेदा जाएगा

ख़ुश्क ज़ख़्मों को कुरेदा जाएगा
दश्त में दरिया को ढूँढा जाएगा

याद-ए-माज़ी इक तिलिस्मी ग़ार है
मुड़ के जो देखेगा पथरा जाएगा

तर्क-ए-मय अज़-राह-ए-तौबा कर भी लूँ
कोई बादल आ के बहका जाएगा

ज़लज़ले सब ईंट पत्थर खा गए
रेत का अब घर बनाया जाएगा

हाल-ए-दिल ‘ताहिर’ सँभाल कर कह ज़रा
लफ़्ज़ को मआनी से तौला जाएगा

तू सुख़न-ए-फ़हम है कुछ हौसला-अफ़्ज़ाई कर

तू सुख़न-ए-फ़हम है कुछ हौसला-अफ़्ज़ाई कर
शेर अच्छा है तो फिर खुल के पज़ीराई कर

यूँ सर-ए-राह मुझे देख के अनजान न बन
तू शनासा है तो कुछ पास शनासाई कर

यूसुफ़ी-हुस्न है तक़्दीस-ए-नुबुव्वत का अमीं
ऐ ज़ुलेख़ा तू कहीं और ज़ुलेख़ाई कर

कोरे काग़ज़ पे भी अल्फ़ाज़ तड़प कर बोलें
अपने अशआर में पैदा वो तवानाई कर

ठेस लगते ही उधड़ जाएँगे बख़िए ‘ताहिर’
लाख तू दामन-ए-उम्मीद की तुरपाई कर

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